अश्वगंधा (Winter cherry)

अश्वगंधा (Winter cherry) आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में एक महत्वपूर्ण पौधा है।  Ashvagandha plant is major ingredient of many ayurvedic medicines

अश्वगंधा (Winter cherry)
लेखक: शम्भू नौटियाल

अश्वगंधा वानस्पतिक नाम विथानिआ सोम्नीफेरा Withania somnifera (L.) Dunal. Syn-Physalis somnifera Linn. हिन्दी में इसे असगन्ध, अश्वगन्धा, पुनीर, नागोरी असगन्ध; संस्कृत में वराहकर्णी, वरदा, बलदा, कुष्ठगन्धिनी, अश्वगंधा तथा अग्रेंजी में Winter cherry (विंटर चेरी), पॉयजनस गूज्बेर्री (Poisonous gooseberry) कहते हैं। अश्वगंधा एक द्विबीज पत्रीय पौधा है। जो कि सोलेनेसी कुल का पौधा है। सोलेनेसी परिवार की पूरे विश्व में लगभग 3000 जातियाँ पाई जाती हैं। और 90 वंश पाये जाते हैं। इसमें से केवल 2 जातियाँ ही भारत में पाई जाती हैं। पहली मूल अश्‍वगंधा Withania somnifera जो 0.3-2 मीटर ऊंचा, सीधा, धूसर रंग का घनरोमश तना वाला होता है। दूसरी काकनज Withania coagulans जो लगभग 1.2 मीटर तक ऊंचा, झाड़ीदार तना वाला होता है।

भारत में यह समुद्रतल से 5000 फिट ऊँचाई तक बाग-बगीचों, खेतों और पहाड़ी स्थानों में सामान्य रूप में पाया जाता है। इसे नकदी फसल के रूप में भी उगाया जाता है। अश्वगंधा, ‘अश्व’ और ‘गंध’ शब्दों के संयोजन से बना है। और जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, इसकी ताजा पत्तियों तथा जड़ों में घोड़े की मूत्र की गंध आने के कारण ही इसका नाम अश्वगंधा पड़ा। अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है।

आयुर्वेद मे अश्वगंधा को मेध्य रसायन भी कहते है जिससे हमारी दिमाग की यादास्त तथा एकाग्रता बढाने के लिए उपयोग किया जाता है। अश्वगंधा को जीणोद्धारक औषधि के रूप में जाना जाता है। इसमें एण्टी टयूमर एंव एण्टी वायोटिक गुण भी पाया जाता है। राजनिघंटु के मतानुसार अश्वगंधा चरपरी, गरम, कड़वी, मादक गंधयुक्त, बलकारक, वातनाशक और खाँसी, श्वास, क्षय तथ व्राण को नष्ट करने वाली है इसकी जड़ पौष्टिक, धातुपरिवर्तक और कामोद्दीपक है; क्षयरोग, बुढ़ापे की दुर्बलता तथा गठिया में भी यह लाभदायक है।

आचार्य चरक ने असगंध को उत्कृष्ट वल्य माना है एवं सभी प्रकार के जीर्ण रोगियों, क्षयशोथ आदि के लिए इसे उपयुक्त माना है। सुश्रुत के अनुसार यह औषधि किसी भी प्रकार की दुर्बलता-कृषता मंष गुणकारी है। चक्रदत्त के अनुसार-
पादकल्केऽश्वगंधायाः क्षीरे दशगुण पचेत्।
घृतं पेयं कुमाराणां पुष्टिकृद्वलवर्धनम्॥

पुष्टि बलवर्धन हेतु इससे श्रेष्ठ औषधि आयुर्वेद के विद्वान कोई और नहीं मानते। चक्रदत्त ही के अनुसार यदि अश्वगंधा का चूर्ण 15 दिन दूध, घृत अथवा तेल या जल से लेने पर बालक का शरीर उसी प्रकार पुष्ट होता है जैसे जल वर्षा होने पर फसलों की पुष्टि होती है। यही नहीं, शिशिर ऋतु में यदि कोई वृद्ध इसका एक माह भी सेवन करता है तो वह युवा बन जाता है।

• अश्वगंधा पौधे की पत्तियां त्वचा रोग, शरीर की सूजन एवं शरीर पर पड़े घाव और जख्म भरने जैसी समस्या से लेकर बहुत सी बीमारियों में भी बहुत उपयोगी है।
• अश्वगंसधा के पौधे को पीसकर लेप बनाकर लगाने से शरीर की सूजन, शरीर की किसी विकृत ग्रंथि और किसी भी तरह के फुंसी-फोड़े को हटाने में काम आती है।
• अश्वगंसधा पोधे की पत्तियों को घी, शहद पीपल इत्यादि के साथ मिलाकर सेवन करने से शरीर निरोग रहता है।
• यदि किसी को चर्म रोग है तो उसके लिए भी अश्वगंधा जड़ीबूटी बहुत लाभकरी है। इसका चूर्ण बनाकर तेल से साथ लगाने से चर्म रोग से निजात पाई जा सकती है।
• उच्चरक्तचाप की समस्या से पीड़ित लोग यदि अश्वगंधा के चूर्ण का दूध के साथ नियमित सेवन करेंगे तो निश्चित तौर पर उनका रक्तचाप सामान्य‍ हो जाएगा।
• शरीर में कमजोरी या दुर्बलता को भी अश्वगंधा तेल से मालिश कर दूर किया जा सकता है, इतना ही नहीं गैस संबंधी समस्या में भी ये पौधा अत्यंत लाभदायक होता है।
• सांस संबंधी रोगों से निजात पाने के लिए अश्वगंधा के क्षार को शहद को घी के साथ मिलाकर सेवन करने से बहुत लाभ मिलता है।
• वृद्धावस्था में होने वाली बीमारियों को दूर करने, तरोताजा रहने और ऊर्जावान बने रहने के लिए अश्वगंघा चूर्ण को प्रतिदिन दूध के साथ लेना चाहिए। इससे मस्तिष्क भी तेज होता है।
• इसके अलावा अश्वगंधा पौधे के और भी लाभ हैं। यह खाँसी, क्षयरोग तथा गठिया में भी यह लाभदायक है।
• अश्वगंधा पौधे की जड़ पौष्टिक होने के साथ ही पाचक अम्ल और प्लेग जैसी महामारियों से निजात दिलाता है।

लाभकारी एवं प्रभावोत्पादक गुण:
*चिंता निवारक प्रभाव व मानसिक स्वास्थ्य:
ऐसा माना जाता है कि अश्वगंधा शरीर में तनाव हार्मोन, “कोर्टिसोल” की उत्पत्ति पर रोक लगा देता है जो कि अत्यधिक चिंता की समस्या को कम करने में लाभदायक है। एक अध्ययन के अनुसार, अश्वगंधा के शरीर पर होने वाले शांतिदायक प्रभावों के कारण, इसके निद्रा संबंधी परेशानियां या अनिद्रा से पीड़ित लोगों पर अत्यंत लाभकारी परिणाम पाए गए है।
*आयुर्वेद में अश्वगंधा को मानसिक क्रियाओं के लिए एक शांतिदायक औषधि (तंत्रिका टॉनिक) के रूप में वर्णित किया गया है। इसका उपयोग अल्जाइमर (भूलने की बीमारी), पार्किंसंस (केन्द्रीय मस्तिष्क का एक रोग जिसमें रोगी के शारीरिक अंगो में कंपन होता है), हंटिंगटन रोग (एक प्रकार का आनुवंशिक रोग, जो मस्तिष्क से संबंधित हैं) और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों (मानसिक कोशिकाओ के क्षतिग्रस्त होने के कारण होने वाले रोग) के उपचार के लिए किया गया है।
*इसके उपयोग से रोग दूर करने की योग्यता, रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि तथा दीर्घायु प्रदान करता है।
*संज्ञानात्मक क्षमता और स्मृति में सुधार: अश्वगंधा एमसीआई (मृदु संज्ञानात्मक हानि) से ग्रस्त लोगों की तत्कालीन स्मरणशक्ति व सामान्य स्मरणशक्ति दोनों को बढ़ाने में प्रभावशाली होने के साथ-साथ कार्यकारिणी शक्ति, ध्यान और सूचना प्रसंस्करण की गति में सुधारक सिद्ध हुआ है। अश्वगंधा के उपयोग से बुजुर्ग जनसंख्या में भी अल्जाइमर के लक्षणों में सुधार देखा गया है।
*कैंसर विरोधक (एंटीकैंसर) गुण: पशुओं पर किए गए कई अध्ययनों से यह जानकारी उभर कर आई है कि एंटीऑक्सिडेंट (ऑक्सीकारक अणु विरोधक) और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होने के फलस्वरूप अश्वगंधा में कैंसर रोधक गुण भी होते है।अश्वगंधा के कैंसर विरोधी गुण न केवल इसकी जड़ो के अर्क में, बल्कि पत्तियों के अर्क में भी देखे गये हैं, जो कि पौधे के बाकी भागो के अपेक्षाकृत कम इस्तेमाल किया जाता है।
*मांसपेशियों की मजबूती के लिए: चूहों पर किए गए अध्ययन से प्राप्त जानकारी के अनुसार अश्वगंधा मांसपेशियों को तंदुरुस्ती प्रदान करने में लाभकारी है। अध्ययन के मुताबिक, नियंत्रित पशुओं की तुलना में अश्वगंधा उपचारित पशुओं में तैराकी के समय की अवधि में उल्लेखनीय वृद्धि दिखी गई है।
*अश्वगंधा में सूजन विरोधक गुण पाए जाते है जो गठिया के कुछ प्रकार, विशेषत: संधिशोथ (रहूमटॉइड आर्थराइटिस - अस्थियों की सूजन के कारण होने वाला दर्द और जकड़न) के उपचार में प्रभावशाली होने के लिए जाना जाता है।
अश्वगंधा के अन्य लाभ
*अंडरएक्टिव थायराइड (हाइपोथायरायडिज्म) के लिए: अश्वगंधा हाशिमोटो रोग या हाइपोथायरायडिज्म (ऐसी अवस्था जिसमें थाइरॉइड ग्रंथि, पर्याप्त मात्रा में थाइरॉइड हार्मोन का उत्पादन नहीं कर पाती) से पीड़ित लोगों के निष्क्रिय थायराइड को उत्तेजित करने में सहायता प्रदान करता है।
*मधुमेह विरोधी प्रभाव: मधुमेह से ग्रसित चूहों पर किए गए एक अध्ययन में अश्वगंधा के पाये गए सकारात्मक परिणामों के अनुसार अश्वगंधा की जड़ो व पत्तियों दोनों का अर्क रक्त में शुगर के स्तर को कम करने में लाभदायक है।
*प्रजनन समस्याओं में अश्वगंधा का उपयोग प्राकृतिक कामोद्दीपक (अफ्रोदिसिअक) औषधि के रूप में किया जाता है जो यौन दुष्क्रियता में सुधार करने में मदद्कारी है। अश्वगंधा का उपयोग पुरुष प्रजननहाॅर्मोन (टेस्टोस्टेरोन) के स्तर को बढ़ाने और पुरुष प्रजनन क्षमता में सुधार करने हेतु भी किया जाता है।
*भोजन की पोसकता में सुधारक: अश्वगंधा में सूजन विरोधक व अवसाद विरोधक गुण मौजूद होते हैं। कई अध्ययनों में यह पाया गया है कि इन्हीं गुणों के कारण जब अश्वगंधा को अन्य जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर, बने बनाए खाद्य-पदार्थ जैसे लड्डू , आइसक्रीम, बिस्कुट व चाय पाउडर इत्यादि में उपयोग करने से भोजन लंबे समय तक खराब नहीं होता, साथ ही अधिक लाभप्रद भी हो जाता है।

 

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