धरौट - कुमाऊँनी कविता

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धरौट

(रचनाकार: श्री महेन्द्र ठकुराठी)

जनम दिणी इजा जनमभूमि दुदबोलि, मै मयेड़ि का रूप, 
जैले समझी महिमा इनरी, उ छ सांचो पूत। 
नि भुलौ मनखी आपणि संस्कृति कैं, 
बुलावौ मनखी आपणि बोलि भाषा कैं।। 

पुरखों लै धरी छ भलि छ धरौट, उत्तराखंड महान, 
गरब छ हमरि शान छ हमरि , येमें बसीछ जान। 
नि भुलौ मनखी आपणि संस्कृति कैं। 
बुलावौ मनखी आपणि बोलि भाषा कैं।। 

स्वर्ग हैबेर प्यारो छ दुनियां हैबेर न्यारो, 
भारतै को मुकुट हिमाल। 
पौणों लिजी द्यप्त छु मितुरों लिजी 
आपण छु दुश्मनों लिजी छु काल। 
नि भुलौ मनखी आपणि संस्कृति कैं। 
बुलावौ मनखी आपणि बोलि भाषा कैं।। 

लाल बुरांसी पिङली प्यौली, जाग-जाग फैलूनी सुबास, 
हरिया जङव ऊंची डांडी कांठी, डांडयू में बासनि हिलांस। 
नि भुलौ मनखी आपणि संस्कृति कैं। 
बुलावौ मनखी आपणि बोलि भाषा कैं।। 

ठंडो मिठो पाणी मिसिरि जसि बाणी उत्तराखंडकि पछ्याण, 
धरती बुलाणै हम सबूथै कूणै, नि छोड़ौ नि छोड़ी पहाड़। 
नि भुलौ मनखी आपणि संस्कृति कैं। 
बुलावौ मनखी आपणि बोलि भाषा कैं।।


महेन्द्र ठकुराठी,
ग्रा. बड़ालू (धपौट) जिला- पिथौरागढ़ ( उत्तराखंड) 
मो.-9411126781
(‘उत्तराखंडी पत्रिका  'कुमगढ़ 'बटी साभार)

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