पहाड़ पर ट्रेन - 2

मित्रो
पिछ्ले भाग में मैंने अपने रेलगाड़ी देखने की उत्सुकता को आप तक पहुंचाया था और एक पहाड़्वासी होने के नाते पहाड़वालों के रेल पहाड़ पर देखने के सपने को भी आप तक पहुंचाया था। लेकिन मेरी तरह के लगभग आधा करोड पहाड़वासियों का यह सपना अभी निकट भविष्य में साकार होता नही दिखता है। पर ऊत्तराखण्ड के पहाड़ों पर रेल का सपना दिखाने वालों की गिनती जरूर बढ़ रही है। दो सपने तो अन्ग्रेजों के समय के बताये जाते हैं और एक के बारे में मुझे हाल ही में ज्ञान हुआ है ये हैं:
ऋषिकेश से रुद्र्प्रयाग तक रेलवे लाईन का
टनकपुर से बागेश्वर तक रेलवे लाईन का
और हाल का एक और सपना भी है, सहारनपुर से कालसी तक रेल चलाने का।

इस लेख को पढ़्ते समय आप भी मेरी तरह ही प्रफ़ुल्लित हो रहे होंगे कि अगर ऐसा हो गया तो हमारा उत्तराखण्ड तो रेल के मामले में हिमाचल, जम्मू कश्मीर और उत्तर-पूर्वी राज्यों को कहीं पीछे छोड़ देगा। फ़िर दोस्तो सपने हकीकत से ज्यादा सुख प्रदान करते हैं, ये बात मैं और आप समझें ना समझें हमारे ये सियासतदां बहुत अच्छी तरह जानते हैं। आखिर हमारा ये आजाद मुल्क पिछ्ले ६० सालों से सपनो पर ही तो चल रहा है। सपने दिखाने वाले सपने दिखाकर चले गये और सपने देख्नने वाले सपने में ही दुनियां से चले गये, जैसे उनके लिये तो शायद उनका पुरा जीवन ही सपना था। पर यह जानते हुये भी कि मेरे जीवनकाल में तो शायद यह सम्भव नही है, कभी न कभी ये सपना मुझे भी जरुर आ जाता है। और फ़िर शायद सपने आते भी तो इसलीए ही हैं कि मेरे जैसा मुन्गेरीलाल उनको देखकर सपने में ही सही, पर प्रफ़ुल्लित होता रहे। हमारे देश के राजनितिज्ञों को भी तो कुछ काम चाहिये, तो वह है वादे करना और मेरे जैसे मुन्गेरीलालों को सपने दिखाना।

पहाड़ पर बेशक रेल ना पहुंची हो और इसके लिए हम अपनी सरकार को कोसें, पर हमारे पहाड़ की तलहटी तक हर स्थान देहरादून, ऋषिकेश, कोट्द्वार, रामनगर, काठ्गोदाम तथा टनकपुर तक रेलसेवा उपलब्ध है। इसके लिये हमें सरकार का धन्यवाद करना चाहिये पर किस सरकार का, क्योन्कि ये सेवा हमारी आजाद देश की सरकार ने नही अन्ग्रेजों की सरकार ने उपलब्ध करायी है।

जब मेरा विश्वास राजनितिज्ञों पर नही रहा तो मैंने अपनी इस जिज्ञासा को एक पर्यावरणविद जो वैज्ञानिक भी हैं, के सामने रखा तो उनके विचार थे कि:-

हिमालय के पहाडी क्षेत्रो में रेलमार्ग का प्रस्ताव मात्र एक राजनैतिक स्टंट, अव्यवहारिक, खर्चीला, पर्यावरण के विरुद्ध और एकदम बचकाना है। अगर आप सचमुच इस पहाडी प्रदेश का भला चाहते हैं और गंभीरतापूर्वक विचार करें तो निम्न कारणों से प्रदेश के पहाडों में रेल का विचार अव्यवहारिक है:
हिमालय पर्वत सबसे नई पर्वत श्रंखला है और भोगोलिक रूप बहुत अस्थायी है, इस पर भारी निर्माण गतिविधियाँ इसकी संरचना को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
जब मोटर मार्ग के निर्माण के लिए ही पहाडों पर जबरदस्त तोड़ फोड़ होती है और जिसके कारण बरसात में भू स्खलन जैसी दुर्घटनाएं पूरे प्रदेश में होती रहती हैं तो रेलमार्ग का निर्माण सम्भव ही नही है।
रेल के संचालन से जमीन में भयंकर कम्पन पैदा होता है जो मैदानी क्षेत्रों में भी करीब १ किलोमीटर तक महसूस होता है, यह हमारे पहाडों के लिए बहुत खतरनाक है, इसलिए हमारे पहाड़ में रेल का संचालन उपयुक्त नही है।
हम अन्य देशो जैसे चीन या दक्षिण अमेरिका की रेल से अपने पहाडों की तुलना नही कर सकते अमेरिका की एंडीज़ पर्वतमाला संसार के सबसे पुरानी पर्वतमाला है तथा चीन में तिब्बत के पठार में भी रेलमार्ग का निर्माण एवं संचालन आसान है।

अब ये सब बातें सुनकर तो मेरा सपना कुछ समय के लिए तो सचमुच धराशायी हो गया, लेकिन मित्रो वह सपना ही क्या जो आसानी से पुरा होजाये या टूट जाये। अब हमारे बापू जी ने भी तो स्वतन्त्र भारत में रामराज का सपना देखा था, पर बेचारे बापू जी खुद ही सम्प्रदायवाद के कारण रामभक्तों के द्वारा ही बलिदान हो गये। अब बापू जी ने जो सपना देखा था वो रामराज का सपना भी उनको गोस्वामी तुलसीदास जी दिखा गये थे अर्थात जो कभी तुलसीदास का सपना था, वह बापू का सपना बन गया। तुलसीदास जी और बापू दोनो ही रामराज का सपना देखते देखते इस दुनिया से रुखसत हो गये और उसके बाद किसी ने रामराज का सपना देख्नने या दिखाने की हिम्मत तो नही की। परन्तु अभी भी रामराज पर टीवी सीरियल और फ़िल्म बनाकर अपनी जेब भरने का सिलसिला जारी है और कई कलाकारों की रोजी का भी ईन्तजाम हो गया है।

अब तो मुझे अपने सपने पर सचमुच गर्व होने लगा कि अगर पूरा नहीं हुआ तो क्या ये कई लोगों की रोजी रोटी का जरिया तो बन ही गया। इस सपने को दिखाकर कई नेता विपक्ष में रहकर धरना प्रदर्शन करेंगे, कुछ नये छुट्भैये नेता भी पैदा हो जायेंगे और युवाओं को रोजगार मिलेगा। सत्ताधारी नेता पहले उनका विरोध करेंगे जब दो चार दुर्घट्नाऎ ना हो जायें फ़िर अपने जन्मजात स्वभाव के अनुसार शोक व्यक्त करेंगे। फ़िर योजना बनेगी कुछ चाटुकारों को यहां भी रोजगार मिलेगा आखिर जन हित का प्रश्न है। अब जनहित में जनता के प्रतिनिधि अपनो का ख्याल नही रखेंगे तो देशहित के बारे में में कैसे सोचेंगे।

वैसे मेरे इस सपने की योजना का सर्वेक्षण तो अन्ग्रेजों के टाईम में हो चुका बताया जाता है। ये बात हमें माननी भी पड़ेगी क्योंकि यह बात हमारे वर्तमान रेलमंत्री जी ने जो बतायी है। अब ये बात अलग है कि मन्त्री जी के अनुसार सर्वे की वह फ़ाइल अंग्रेज अपने साथ ले गये, ऐसा लगता है कि मन्त्री जी के किसी बुजुर्ग को ये बात अंग्रेज जाते हुये बता गये हों। अब इस बात में आप को हंसी आ रही हो तो भई इसका श्रेय मुझे नही माननीय रेलमंत्री जी को जाता हैं, मैं तो आप को बोर ही कर सकता हुं। अपने रेलमन्त्री जी काम की वजह से जाने जायें या नही पर अपने हंसोड अंदाज की वजह से वह संसद और मीडिया में हमेशा छाये रह्ते हैं। यही नही माननीय मन्त्री जी के इसी गुण की वजह से माननीय मन्त्री जी को भारतीय प्रबंध संस्थान तथा विदेश के एक प्रसिद्ध विश्व्विद्यालय द्वारा विशेष लेकचर देने के लिये आमंत्रित किया गया।

अब ये आप पर निर्भर है कि मेरे जैसे पहाड़ में रहने वाले लाखों लोगों के सपने को सिरियसली लेते हैं या मजाक में, आप मज़ाक समझे तो अच्छा ही है क्योंकि आजकल गम्भीर बात कोई सुन भी तो नहीं सकता। दूसरी बात यह भी है कि इस सपने को दिखाने वाले जिनका ऐसी जिम्मेदार जगह पर होना अपने आप में एक मजाक है गम्भीरता की उम्मीद भी नही की जा सकती। पर दोस्तो बापू का या तुलसीदास का सपना पूरा हो ना हो मेरा सपना जरुर पुरा होगा और एक दिन रेल पहाड पर दौड़ेगी। सुना है कि टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन निर्माण की मांग एक बार फिर जोर पकड़ती जा रही है और इसके लिए एक संघर्ष समिति भी बन गयी है। संघर्ष समिति ने एक बैठक करते हुए रेल लाइन निर्माण की मांग को लेकर आंदोलन करने का निर्णय लिया है और प्रधानमंत्री जी को ज्ञापन भेजा है।
आपको और मुझे इस बात से भी कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर ये ज्वलन्त मुद्दा मिडिया वालों और मोबाईल कम्पनी को भी कुछ करोड़ नही तो लाखों तो दिला ही देगा। टीवी पर एस.एम.एस. पोल के जरिये पूछा जायेगा कि क्या उत्तराखण्ड के पहाड़ों पर ट्रेन चलनी चाहिये? अब इससे आसान सवाल हो भी क्या सकता है, जबाब देने के लिए क्योंकि एस.एम.एस. पोल में हमेशा ऐसे सवाल ही पुछे जाते हैं तो मिडिया वालों के लिए भी इस सपने में फ़ुल स्कोप है।

दोस्तो अपने पहाड़ पर रेल देखने का यह सुन्दर सपना अगर जल्दी पुरा हो गया तो फ़िर सपनो का क्या होगा, इसीलिए तो सरकार ने सर्वे की अनुमति तो दे दी पर बजट पास नही किया। भई वह सरकार ही क्या जो सपना पूरा कर दे और वह सपना ही क्या जो आसानी से पूरा हो जाये फ़िर सरकार की जिम्मेदारी है कि किसी को शिकायत ना रहे। अब देखिये कुछ समय पहले हम लोगों ने अलग राज्य का सपना देखा और हमारे देश की जिम्मेदार सरकार ने वह सपना पूरा भी किया। परन्तु हम सब के सपने पुरे हुये हों ना हुये हों पर अभी तो इस नवस्रजित राज्य में सभी राजनैतिक दल अपने तथा अपने पालितों के सपने पूरे करने में लगी है।
पर पिछ्ले कुछ समय से वह लोग भी आन्शिक रूप से साझेदारी में ही सही पर अपने सपने पूरे करने लगे हैं, जो इस राज्य निर्माण के आन्दोलन में अग्रणीय थे। इससे मुझे उम्मीद जगी है कि इसी तरह कभी न कभी हमारे सपने भी पूरे होंगे, पर ईन्तजार करना होगा जोकि मुशकिल है। हमारे पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है, तो क्यों न ईन्तजार करते हुये ही सपना देखते रहें। फ़िर सपने का एक यह भी फ़ायदा है कि यह बिल्कुल हकीकत लगता है और इसके लिये बहुत प्रयास भी नही करना पडता। अब प्रयास तो हमारी सरकार कर रही है और उसका प्रयास जल्दी से जल्दी सफ़ल हो तो हमारा सपना पूरा हो पर शायद फ़िर कोई और सपना आ जाये। जैसे अपने पर्वतीय राज्य के सपने के पूरे होने से पहले ही यह रेलगाड़ी का सपना सताने लगा।

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