रियूड़ (गर्मी) क दिन

कुमाऊँनी कविता-रियूड़ (गर्मी) क दिन, Poem in Kumaoni Language about summer in hills, Kumaoni bhasha ki kavita, Kumaoni Kavita

रियूड़ (गर्मी) क दिन

रचनाकार: पुष्पा

जस पड़ी ठंड यां उस पड़ो घामा
हियूंम तुष्यआर पड़ो रियूड म खवर पड़ो घामा
पहाड़ का मैस मेरा यस म ले ..........
पहाड़ो क काम करणे काई हेगे कंचन काया
रुण भुण दिन आगई हमारा पहाड़ा
पाथर फुटणी धाम हैंरो काव हैंगि कावा

रत्ती पर पनारी भरी पाणी को गागरा
पहाड़ क ठंड पाणी मीठी मीठी छ यां कि वाणी
पेड़ म कफुव् बाँसु खव में घिनोड़ि
खोर बाछ का अणाट लागो बकरा क मियमांटा
रुण भुण दिन आगई हमारा पहाड़ा
पाथर फुटणी घाम हैरो काव हैंगि कावा

रत्ती पर धाम एंजा खव की भिड़ा
दतुल पर धार लगे घस्यारी पहाड़ का
जंगव म घुघति बासी लगें छ उदेखा
गौर बाछ ग्वाव जबेर ले नेह जानी उजाड़ा
रुण भुण दिन आगई हमारा पहाड़ा
पाथर फुटणी धाम हैरो काव हैंगीं कावा

रियूडा की छुट्टी मजी पहाड़ ऊनि नान तिना
हिसायु किलमाणु खाणी और खणी काफला
आड़ू खुमानी पाक गई और पाकी गईं पुलमा
जंगल मे फूल फूली, फूली गो बुरासा
रुण भुण दिन आगई हमारा पहाड़ा
पाथर फुटणी धाम हैरो काव हैंगीं कावा

सिद साद जस ले छू भल छू मेर पहाडा
पुर संसार मजी मची रो छ हाहाकार
देवभूमि कुनी यकेँ बचाला भगवाना
नजर न लागो देवो य मेरो पहाड़ा
रुण भुण दिन आगई हमारा पहाड़ा
पाथर फुटणी धाम हैरो काव हैंगीं कावा ।
धन्यवाद
पुष्पा, 17-06-2020

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