
खाल्लि फसक् - चोख्
लेखक - ज्ञान पंत
हमैरि नई पीढ़ी के जाँणै कि "चोख्" के हुँ कै बेरि! वील त डायनिंग टेबल और किचन देखी भ्या... "रिस्या" कूँनीं किचन कैं हमार् वां। गौं-घरन् में खाँण् पकूँणा ले सख्त नियम छी। रिस्या, अट्यायि, चुल... सब लिपी-घोसी जनेर भै। वी बाद नै-ध्वै और इकार (सिंगल) धोति पैर बेरि स्यैंणी रिस्यान जनेर भ्या। अच्छयान जसी फिनायल हालि बेरि झाड़ू-पोछा करनीं ... उसी कै हमार् घरन् लिपणैं'कि परम्परा छी। गोरु गोबर'लि लिपणौं ले एक वैज्ञानिक कारण छी कि किड़, पिटंग सब मरि जनेर भ्या या पास नि फटकनेर भ्या।
आज त भौतै सुख-सुविधा है गियीं पहाड़न् में ले मगर हमन् है पैल पीढ़ी जैल आदु है ज्यादे उमर पहाड़ मैयी खै... उनन् फाम हुन्यैलि कि रिस्यान में कस् "धुँङयोव" (धुँवां) हयी रुनेर भै। चौमासन् में लकाड़् गिल भया त और ले मुसीबत.... फुकनै रवौ, सिलगनै नि भ्या ! जनार् वां थ्वाड़् व्यवस्था भै उनार् गोठ् मुणि फाड़ि लकाड़ और दार ले हुनेरै भये जो अटिक-बटिक् काम उनेर भै। कबखतै-कबखतै मैं सोचूँ कि उन् दिनान नयी ब्वारिन कैं रिस्यान जाँण् में कतु तकलीफ हुन्यैलि ...
भल् भौ कि बिजुलि नि छी पहाड़ में ! घरन् में त लैम्फु ( कुप्पी ), लालटेन हुनेर भै। ज्यादेतर लालटेन चाख् (बैठक) में और लैम्फु रौन (अलग कोना जहाँ चाय की केतली चढ़ी रहती) छै हुनेर भै ... रिस्या में त चुला आग् मैयी सब काम हुनेर भै। कभै छियूल ले इस्तेमाल हुनेरै भ्या ... मेरि इजैलि त लखनौ में ले गौं बिरादरनां लिजी कतुकुप बखत भात पकै राखौ ! मकर संक्रान्ति मौक में गंग नाणैरनैकि भीड़ लाग्नेर भै हुसैनगंज में। कालोनी में ऊँणा बाद त में आम् ले कूँण भै गेछी ... छाड़् हारि तु लै लागि रैछै ब्वारी- तसी कै पकौ। धोति बदलणैं जरुवत न्हाँ ... नङाड़् है बेरि को बणूँ खाँणी आब्! पत्त न कब को ऐ जावौ ... भौत दिनन् बाद सिंगल धोती मतलब ले म्यार् समझ ऐ।
पहाड़न् में " व्हाइट वास " मतलब कमेट भै और यो क्वे ले करि दिनेर भ्यो । कमेट ( खड़ि मिट्टी ) घोलि और कुचैलि ( झाड़ू) दिवाल फटकै दे । छत में भरांण् और पट्याल् हुनेर भै जो धुँङैलि कावै - काव् है रुनेर भै। भ्यार'क द्वारन् में क्वे - क्वे पेन्ट ले करै ल्हीनेर भै मगर भतेर पन् त सब लिपि घोसी हुनेर भै ... रिस्यान में कतुकै कमेट घोसौ .... मैलि कभै सफेद नि देख् हो !
चोख् खाणै बात चली त करीब तीस एक बरस पैलीं हमैरि बिरादरी में एक चेली बर्यात पिठौरगड़ बटी लखनौ ऐ। मई म्हैण हुन्योल शैद किलैकि उन दिनान गरम भौतै हयी भ्यो। गौं मैंस भ्या सिद्-साद् या कैले के बतायि नै हुन्योल्.... घर बटी कोट, पैजाम्, भड्डू, स्वेटर, पंखी, मफलर, टोपि... जतु पैर सकछी, लादि-फादि बेरि ऐ ग्या। रत्तै सात बाज्या टैम में नैनताल ऐक्सप्रेस लखनौ पुजनेर भै। बरेत्तिन सकुशल सम्मान पूर्वक स्टेशन बटी लूणैंकि जिम्मेदारी मेरि छी। मैलि एक गाड़ि करी और करीब तीस एक बरेत्तिन जनवासा लि ऐयूँ ... चहा पीन पीनै तीन-चारन् भुड़भुड़ाट हुँण भै ग्यो। क्वे कूँण लाग् हार्ट अटैक जस् है रौ, कैले सांस ल्हिण में तकलीफ जतै....
तुरन्त डाक्टर ले बलैयी ग्यो पैं। इत्तफाक छी कि डाक्टर ले पहाड़ी निकलौ ... वीलि पुजन् चोट सबनाक् थिकाव् उतरवैयीं और सबन् कैं ठंड पाँणिल नांण तै कौ और गायि ले करी... तुमन् एक कैं ले अकल न्हाँ। यां गरम भै और यतु गरमी में तुम नि मरला त को मरौल्... कोट पैंट टोपि पैर ल्ही रौछा? .... फिर सबन् कैं कुर्त पैजाम् पैरायी ग्यो, तब जै बेरि उनैरि सांस में सांस ऐ कूँछा । थ्वाड़् देर है जानी त फिर कां ब्या-कैक ब्या हुँछी! बाद में उनन् ले गलती आभास भौ ... च्याला तु नि हुनै त आज भल्ली कै मरी गेछियाँ -- शाल् कैले गव् जस् च्याप दे। तुम लोग शहरी भया और हम भयां भुस्स ... कै अंदाजै नि भै हो ... जग्गुवा ब्या परसाद रेल देख् हाली । जी रये मुन्ना .... मैं कैं ले खूब आशीश मिली फ्री में ।
दिन में गरम भ्यो त मैलि एक ड्रम में रसना घोलौ और खूब चिन मिलै। मस्तु बरफ हाली .... शिबौ! उनैलि दिनमान रसना पी-पी बेरि गर्मी काटी! खाँणि कां खाँछी बुड़ बाड़ि... एक गास ले खाप् नि हाल् हो। नान्तिनैलि नास्ता करौ दिन में भात ले खा... चोख् खानेर फल-फूल मैयी रयीं पुर दिन। उनींण ले हैयी रौछी उनार् लिजी त .... ब्याव-ब्यावा टैम में जब मणी फूक जै ऐ त भिन् ज्यू बलांण् कि बार बरेत्ती चोख् खाणीं छन्। उनार् लिजी इंतजाम करै दिया महाराज... मैलि ले होय कै दे किलैकि जनवासा ब्यवस्था ले म्यार हाथ् में छी और परिचय ले स्टेशन में म्यारा दगाड़् भौ.... आब् में कसिक् कूँछियौं कि महाराज मूँ ले तीन दिनी बिरादर छूँ ... साक्कै न्हाँत्यू जो तुम मैं छैं कुणौछा, खैर ...। मैलि ले फिर उनैरि सेवा टहल में के कोर कसर नि छाड़ि हो।
ब्याव कै बर्यात ले टैम पर मोव थैं पुजि गे। बैंड वालैलि ले खूब बजा... बेड़ू पाको बारा मासा और कांछा रे कांछा रे प्रीत मेरि सांचा। नागिन में लौड-मौड , लोट पोट है ग्या। पहाड़ि डिस्को (भांगड़ा ) देखण् लैक छी। भिन ज्यू आंगुव् नचै बेरि मैं कैं कका लिजी चोख् खाणां बावत ईशार् करण् लागि रौछी ... मैलि गट् नि मान्। खुटन में हाथ धरि बेरि नमस्कार करौ और सिद शुक्ला ज्यू रिस्यान दिखै लायूँ। साफ चकाचक रिस्यान देखि बेरि भिन् ज्यू गदगद है ग्या। उनैलि मूँ आंङ् हालि दियूँ और फिर मैलि उनौर् मूँख न देख् ... कयीं मस्त है रौछी बल्।
उसी ले जब शुक्ला ज्यू तीन दिन बटी खेल्लुवा वां खाण् पिण् रौछिया त किचन गंद का बटी होल् कै हरौछा... उनैलि एक कमर् छाड़ि बेरि पुर घर दियी भ्यो। ... पैलि यसी कै ब्या, काम काज हुनेर भै। गेस्ट हाऊस, लान, बेडिंग प्वाइंट और होटलन् में ब्या बाद में हुँण बैठ। आब् कि छी पैं... एक तरफ द्वाराचार है रयो, नान्तिन चाय काफी में लागी भ्या और दुहैरि तरफ चोख् खानेर स्टीला गिलासन् में एक किनार् चहा सुणकण में लागी भ्या। खाँणै शुरुआत ले है गे... बरेत्ती उसी कै घायल भ्या और जो ठीक ले छ्या त बैंड वालैलि भल्ली कै नँचै बेरि ठोकि द्या। दिन में जै कैं जरा ले फूक छी उ अमीनाबाद जानै रौ। वां बटी क्वे तीन किलो त क्वे चार किलो रियुड़ि या गजक लि आय्। क्वे तमाख् त क्वे लुकुड़ खरीद ला... खूब शापिंग करी गे या खूब ठगौ दुकानदारनैलि कौओ, बात एक्कै भै।
बीस-तीस बरस पैली लखनौ में चैली ब्या में बिरादर लोग नि खानेर भ्या। क्वे दूर जांणी या रात में रुकनेर भये त उ ले बरेत्तिनां बाद खानेर भै... लोकल मिलै बेरि करीब साठ एक बर्यात और इतुकै घरेत्ती ले छी। मैं चोख् खानेरन् एकबट्यै बेरि शुक्ला घर ल्ही गियूँ। सबनैलि धोति पैरि और भीं में बैठ ग्या। भान् कुन सब इंतजाम भै... रिस्यान में एक अधबुड़ी स्यैंणि पैलियै बटी समझै-बुझै बेरि बैठायी भै। मली बाट् पुरि कचौड़ि, साग पात सब मंगैयी ग्यो... गैस में कढ़ै चढ़ै बेरि छ्वां ले करी गे। साग गरम करी ग्यो .... आब् चोख् खाणै बारि छी। गरमा गरम कचौड़ि और गरम मस्याल् (अशोक) हाली आल् गोबी साग जै परसी ग्यो त सबा सब हाथ चाटण् लाग्.... दिगौ! चोख् खानेर कि जांणनी हलवायी हाथौ स्वाद? मैलि यो पाप जरुर करौ हो.... लासण प्याज सब धरियै रै ग्यो। कैं कै ले पत्त नि चल्। हलवायि ले गजब भ्यो... वीले पैलियै कै हाछी कि कैं कै ले प्याज 'कि भनक लागी त मैं एक डबल झन दिया और यसो भ्यो ले.... खांण् पिणौं रिकार्ड टुट पड़ौ! तीन दिनां भुकान्... पत्त न कसी रै ग्या! ड्वां-ड्वां करण् जांणैं सब चोख् खाणैं में रयीं बाद में मिट्ठै लै पचकायी गे... आब् कां ब्या और कां मानू मुड़ि रै ग्यो... खान् खानै नींन ऊँण लागी। अनाज पेट में पुजो त नस्स जस् क्याप है पड़ौ... बुड़ खुड़नौक् सितणौं इंतजाम शुक्ला ज्यू घर में छी। उँ सब वयीं हड़ी रया।
दुहार् रत्तै उनैलि आपणैं हाथ'लि दाव-भात पकै। क्वैलन्कि अँगिठी इंतजाम करि ग्यो। बुड़ मैंस खै पी बेरि हड़ी ग्या त लौड-मौंड खै बेरि घुमणीं न्है ग्या। टिक्-पिठ्या रत्तै है गोछी पैं.... फिर रात नौ बाजी और लोगनां दगाड़् चारबाग स्टेशन मूँ ले गियूँ। गाड़ि सिटि पाड़ण् जांणै सबनलै खूब आशीष दे.... त नि हुनै त मरि जाना हम लोग! बची रये, त्योर ब्या है जौ पोथा! तेरि चौल है जौ .... साँचि उयी साल नवम्बर में म्योर ब्या भौ और चौल ले हयी रै पैं! विदाई दिन ले गरमी कारण बुड़ मैंस अमीनाबाद घुमणै हिम्मत नि कर सक्.... दुहार् केबिन में बैठी बरेत्ती अमीनाबाद 'कि चर्चा में मगन है रौैछी।
ज्ञान पंत, 22-09-2015
बी-1392 इन्दिरा नगर लखनऊ

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