य कसि आजादी - कुमाऊँनी लेख

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य कसि आजादी?

लेखक: पूरन चन्द्र काण्डपाल
कुर्मांचल अखबार अल्मोड़ा में 16 अगस्त 2021 को प्रकाशित 
श्री पूरन चन्द्र काण्डपाल जी का कुमाऊँनी लेख
दिल्ली बै चिट्ठी ऐरै 

स्वतंत्रता दिवसकि ७४ वर्षगांठ कि शुभकामना। हमर स्वतंत्र देश में आजक माहौल में आपण इर्द-गिर्द में देखीणी कुछ अटपट तस्वीरों के आज कि य व्यंग्य चिट्ठी समर्पित छ।  लगभग द्वि सौ वर्ष फिरंगियों कि गुलामी क बाद देश १५ अगस्त १९४७ हुणि आजाद होछ।  २६ जनवरी १९५० हुणि हमर संविधान लागू हौछ जमें आज तक १२७ संशोधन लै है गई।  संविधान ल हमुकें जो आजादी दि रैछ उपर हमूल नि सोच क्यलकि हमार दिमाग में आपणि।  आजाद संहिता पैलिक वै ड्यार डाइ बेर भै।  हमरि य अणलेखी आजादी कि न क्वे सीमा और न क्वे रूप।  औरों कि परवाह करिए बिना ज्ये हमुक भल लागूं या हमर मन ज्ये कहें।  करू हम उई करनू भलेही थैल कैक परेशानी हो, या क्वे छटपटो, क्वे मरो या कैक के नुकसान हो।  

आब हमरि आपण बनाई आजादी कि चर्चा करनू तो सबू है पैली छ बलाण कि आजादी।  हमुक बवे लै टैम पर, के लै, कत्तीकै लै बिना सोची-समझिए खप्प पाणी खायीन जस बलाण कि पुरि छूट छ।  न नान-ठुल क ख्याल और न स्यैणि-मैंस क ध्यान। हमरि भाषा जतु लै अभद्र या अश्लील हो बेरोकटोक निडर हैबेर जोर-जोरल चिल्लाण है हमूक क्वे रोकि नि सकना उसी हमरि संसद में लै कुछ लोगों के असंसदीय भाषा बलाण कि छूट छ।  गन्दगी फैलूण हमर जन्मसिद्ध अधिकार छ। हम मैं लै-गली, मोहल्ला, ग्वर, सड़क, कार्यालय, सार्वजनिक स्थान, प्याऊ, जीना-सीड़ी, रेल, बस में बेझिझक धुकि सकनूं।  बस में भै बेर भ्यार कैकै लै ख्वार में, द्वि पईंय क सवार में या कार में चुकण कि हमुक खुल्ली छूट छ।  कार चलू रौछा तो क्ये बात नि हइ, कैं लै पच्च चारी थुकि द्यो, क्वे क्ये नि कवा।  जै में पड़ल उ द्वि-चार गाइ घल, वील हमू कैं क्ये फरक पडूं?

मल-मूत्र विसर्जन कि लै हमुक पुरि छुट छ।  रेल कि पटरी, नहर-नदी-सड़क क किनार, कैलै करो क्वे रोकणी हैति।  क्वे देखें रौछ त देखण द्यो, तुम अणदेखी करि यो। क्वे बिलकुल पास बै गुजरछ तो घुना में मुनइ घुसै घो, देखणी थुकि बेर निकइ जाल।  पेशाब त तुम कत्ती कै लै करि सकछा।  दीवाल पर, पेड़ क जड़ या तना पर, बिजुलि-टेलेफोनक खम्य पर, ठाडि हई बस या कार क पहियों पर, सड़क क किनार या कुण या मोड़ पर या जो मन करो उतै।  

आपण घर छोड़ि बेर हमुक मैं लै कूड़-कभाड़ लफाउण कि लै पुरि छूट छ।  फल-मूंगफली या अण्डों क छिकल, बची हुयी खाण, पोस्टर-कागज, प्लास्टिक थैली, गुटका पान मसाला पाउच, माचिस तिल्ली, बीड़ी-सिगरेट क डाब-ठुड्ड, डिस्पोजेबल प्लेट-गिलास, बोतल, नारियल आदि मैं लै लुढ़क दियो।  झाडू लगी और कुड़ पड़ोस कि तरफ धकै घो। कुड़ क तेर बसि जाग लगी जां व दुसर कि समस्या बनो।  घर में सफेदी करी, मलू या बची हुई वेस्ट, पार्क, सड़क या गली में खेड़ो, क्वे रोकणी कैति। गांधी ज्यू समेत हमार १४ प्रधानमंत्रियों कि स्वच्छता कि बात को सुण।  के गई और कैते रोल।

हमुकें आपण जानवरों के सड़कों में खुल छोड़ण कि पुरि छूट छ।  गोरु, भैंस या सुंगरक झुण्ड द क्वे टकरि बेर मरो हमरि बलाला हमूल कुकुर पाइ रई त उनुक सड़क या पार्क में त घुमूला टट्टी-पेसाब करूण लिजी त हाम उनकै वां लिजानू।  पार्क-सड़क में त सबूंक हक हया लोगों के देखि बेर आपण चात-चप्पल बचै बेर हिटण चैछ।  हमरि यातायात सम्बंधी आजादी त असीमित छ।  बिना इशार दिए मुड़ण, रात में प्रेशर होरन बजूण उ लै कैकें बलूण क लिजी, तेज रफ्तार ल वाहन चलूण, दु-पइय में पांच-छ झणियाँ क भटाउण, दुसर कि या कैकी लै जाग में आपण वाहन ठाड़ करण, प्रार्थना करण पर लै बस नि रोकण, बस में धूम्रपान करण, स्यैणियां कि सीटों पर बैठण, भीड़ क बहान ल बस में स्यैणियां क बदन दगै आपण बदन रगड़नै अघिल निकउण, सयाण लोगों कि अणदेखी करण,शराब पी बेर या नश करि बेर वाहन चलून, नागरिकों के टक्कर मारि बेर रफूचक्कर हुण कि ले हमूर्क पुरि छूट छ।  

कां तक बतूं, आपणि आजादी क अणगणत छूटक हाम खूब आनंद ल्ही रयूं।  स्वैणियां कैं टकिटकि लगै बेर चाण, उनू पर कटाक्ष करण, द्विअर्थी संवाद बलाण, बहले-फुसले बेर उनुकं आपण चंगुल में फंसूण, उनर यौन शोषण करण और उनर बनी-बनाई घर उजाड़णण कि हमुक खुल्ली छूट छ।  हमुक झुटि बलाण, कछरि में बयान बदलण, बयान है मुकरण, घूस दीण, धर्म-सम्प्रदाय क नाम पर जहर फोकण, असामाजिक तत्वों के संरक्षण दीण, कानून कि अवहेलना करण, रात के देर तक पटाखा चलूण, कटिय डाइ बेर बिजुलि कि चोरि करण, सार्वजनिक स्थानों पर नश-धूम्रपान करण, कैक लै चरित्र हनन करण, अश्लीलता देखण और पढ़ण, कन्याभ्रूण कि हत्या करण, कालाबाजारी-मिलावट और तश्करी करण, फर्जी डिग्री-प्रमाण पत्र लिहण, फुटपाथ या बाट खोदण, सड़क पर धार्मिक काम क नाम पर तम्बू लगूण, बिना बताइये जलूस या रैली निकाउण, यातायात जाम करण, गटर क डक्कन या पाणी क मीटर चोरण, पार्कों की सुन्दरता नष्ट करण या डाव-बोट काटण, विसर्जन क नाम पर नदियों में रंग-रोगन ज्येड़ी मूर्ति वगूण या धार्मिक कुड़ लफाउण, राजनीति में बिन तई लोटिय बनण, शहीदों और राष्ट्र भक्तों के भुलण और सरकारी दफ्तरों में बिन काम करिए तनख्वा ल्हीण सहित हमरि कएक स्वतंत्रता छीं।

पछिल १८ महँण बटि देश में कोरोना संक्रमण फैलि रौ । करीब ३.१९ करोड़ लोग संक्रमित है गई और ४,२८ लाख है ज्यादा लोग य बिमारीक शिकार है गई। लोग बिन देह दूरी धरिए और बिन मास्क लगाइए घुमें रई।  कोरोना रोधक वैक्सीन सबूंल लगूण चैछ।  कुछ लोग वतूं रई कि ऊं आजाद छीं।  यूँ सबै अटपाट स्वतंत्रता हमूं के कां ल्हि जालि?  के येकै लिजी हमार अग्रज शहीद हई?  के यसै मनमर्जी क तांडव करणक लिजी हम पैद हयू?  के हमूक दुसार लोगों कि जरा लै परवा छ?  हम आपण व्यवहार कब बदलुल?  यूं सवालों के हमूल अणसुणी नि करण चैन और य व्यंग्य में वर्णित आजादीक बार में आपुहँ जसर सवाल करण | चैछ और आजादीक सही मतलब समझण चैछ।

- पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी, दिल्ली

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