
परंपरा और रंगमचक प्रतीक अल्माड़क रामलील
लेखक: श्री चन्द्रशेखर तिवारीजरामलील में महिलाओंक रुचि बढ़ते जाणै।
कर्नाटकखोलाक रामलीला में सबै पात्रोंक भूमिका
महिलाओंक द्वारा निभाई जाणि रै
जो वाकई एक सकारात्मक पहल छू।
कुमाऊं में शारदीय नवरात्रनक दुसर महत्वपूर्ण पक्ष रामलीलक दगड़ लै जुड़ी हुई छु। यो वखत चौमासक गिज-गिज खतम है वेर निमैल घामक दगड़ हल्क जाड़ शुरु है जां। घर पटांगणक ढीक में खिली हजारि और गुलदाउदीक फूल लै अपुण रंगत विखेर दिनी। नवरात्रक दौरान कुमाऊं में जाग-जाग रामलीलाक मंचन उत्साह और श्रद्धाक साथ करि जां।
कुमाऊं अंचल में रामलीलक प्रति लोगन में आजि लै जवरदस्त आकर्षण दिखाइ द्यूं। पैल नवरात्र वटि रामजनमक प्रसंग वै शुरु है वेर दशमी दिन राम-रावण युद्धक दगड़ दस दिनी रामलीलाक समापन है जां। रामलीलाक जानकार लोग वतूनी कि कुमाउक पैल रामलील सन 1860 में अल्माड़ शहरक वद्रेश्वर मंदिर में करि गे। जैक श्रेय उ वखतक डिप्टी कलैक्टर पं. देवीदत्त जोशीज्यू कैं जां। बाद में अल्माड़ वटि यो रामलीलाक प्रसार कुमांउक नैनताल, वागश्यर, पिथौरगढ़ जस शहर और दुसर तमाम गौं कस्बनक तरफ ले होते रौ।
अल्माड़ बै शुरु हुई रामलीलाक य परंपरा यांक समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रुपल आघिल कै बढ़ते रै। कुमाउनी रामलीलाक पैल विशेषता यो छू कि य गीत नाट्यक रुप में प्रदर्शित करी जां और प्रस्तुतिकरण में वाचिक अभिनय कैं ज्यादा तरजीह दिई जां। कुमाउनी रामलील में अवध इलाकक प्रभाव हुणक बा बावजूद लै यैक मंचन, गायन व अभिनय में कुमाउनी विशेषताओंक दर्शन हुनी। सबन है मुख्य खासियत यो छू कि यांक रामलील में भाग लिणी वाल कलाकार क्वै लै नाटक मंडली वै जुड़ी हुई नि रुन। यो कलाकार आम लोगोंक बीच बटि निकल वेर आई साधारण कलाकार जसै हुनी। म्हैण भरिक तालीम (रिहर्सल) में यो कलाकार आपुण अभिनय में इदुक पारंगत है जानी कि कोई लै निकै सकन कि यो एक सामान्य कलाकार छन। रामलीलक स्टेज वणून बै लिबेर व्यवस्था के संचालित करण में शहर समाजक लोग एकजुट हैबेर अपुण संजैत योगदान दीनी।
शारदीय नवरात्रन में अल्माड़ शहर में सात-आठ जागन में रामलीला नाटकक मंचन करि जां। कर्नाटकखोला, खोल्टा, मुरलीमनोहर मंदिर, श्रीलक्ष्मी भंडार (हुक्का क्लब), नंदादेवी, धारानौला, नरायण तेवाड़ी देवाल व खत्याड़ी आदि मुहल्लन में रामलीलाक मंचन भौत उत्साहक दगड़ आयोजित करि जां। अल्माड में हणि वाल रामलील में जां पुराण परंपराक आजि लै पुर निर्वहन करि जां वैं आधुनिक रंगमंच व तकनीकक इस्तेमाल करि बेर रामलीला में अभिनव प्रयोग लै द्यखण में ऊं। पिछाडि कुछ सालन में रामलीला में अभिनय करणी वाल महिला कलाकारोंक संख्या में वढ़ोतरी होते जाणै।
अल्माड़क रामलील उत्तराखंडक दगड़ पुर उत्तर भारत में मशहूर छू। श्री त्रिभुवन गिरी महराज जो हुक्का क्लबक रामलीलाक दगड चालीस साल बै ज्यादा साल वै जुड़ी हुई छन बतूनी, 'पैली वखत में जां पैट्रोमैक्स व सामान्य विजलीक बल्बनक उज्याव, साधारण साउंड सिस्टम और सीमित वस्त्र परिधान व साज-सज्जा में रामलील हुंछी, वैं अब आधुनिक लाइट व साउंड सिस्टम व आकर्षक साज-सज्जा उपलब्ध हुणक कारण यैक मंचन में धरती असमानक बदलाव ऐ गो'।
सन 1995 बटि कर्नाटकखोला रामलील समितिक संस्थापक संयोजक विट्ट कर्नाटकक कूण छु कि 'रामलील में भाग लिणी वाल कलाकारों में महिलाओंक रूचि बढ़ते जाणै। पैली हम महिलाओं कैं राम सीता जस सरल अभिनय वाल भूमिका प्रदान कर छी पर यो बार हम एक अभिनव प्रयोग करण लागि रया। कर्नाटकखोलाक रामलील में सबै पात्रोंक भूमिका महिलाओंक द्वारा निभाई जाणि रै जो वाकई एक सकारात्मक पहल छु।'
रामलीला में मेघनाथ और परशुरामक जीवंत किरदार निभूणि वाल महिला कलाकार भावना मल्होत्राक कण छ कि 'रामज्यक प्रति श्रद्धा और रंगमंच कलाक प्रति लगाव हुणक कारणल उ रामलीला में अभिनय करण लिजी प्रेरित भई और रामलीला मंचन में मातृ शक्तिक व्यापक भागीदारी ही सही अर्थन में महिला सशक्तिकरणक भावना के फलीभूत करण में जुटी हुई छू'। रामलीला में मेघनाथ और परशुरामक जीवंत किरदार निभूणि वाल महिला कलाकार भावना मल्होत्राक कण छ कि 'रामज्यक प्रति श्रद्धा और रंगमंच कलाक प्रति लगाव हुणक कारणल उ रामलीला में अभिनय करण लिजी प्रेरित भई और रामलीला मंचन में मातृ शक्तिक व्यापक भागीदारी ही सही अर्थन में महिला सशक्तिकरणक भावना के फलीभूत करण में जुटी हुई छू'।

( लेखक दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, 21,परेड ग्राउण्ड ,देहरादून में रिसर्च एसोसिएट के पद पर कार्यरत हैं। मो0 9410919938)
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