
भिटौली
लेखक: आनन्द मेहरा
'न बासा घुघुती चैत की, याद ऐ जाछो म्यूको मैत की।"
(घुघूती आवाज़ मत कर, मुझे अपने मायके की याद आती है।
घुघूती घर की छत पर घु-घु कर रही थी। चैत का महीना शुरू हो चका था। माया अपने आँगन में झाड़ लगा रही थी और बार-बार उस घनी की आवाज़ उसे विचलित कर रही थी। कल ही तो उसकी सहेली राधा ने जंगल में घास काटते हुए उसे "भै भुखो-मैं सिती" कथा सुनायी थी कि किसी गाँव की एक लड़की की शादी दूर पहाड़ के दूसरे गाँव में हुई। थी। चैत के महीने में भिटौली देने के लिए उसका भाई पूड़ी, हलवा, फल, साड़ी, मिठाई वगरैह लेकर गया था। वह सुबह से उसका इन्तजार कर रही थी और अपने छोटे से घर को मिट्टी से लीपकर सुन्दर कर रही थी। भाई के लिए स्वादिष्ट पकवान बनाने की सोच रही थी।
भाई पैदल ही अपनी बहन के घर चला था। उसका ससुराल उसके गाँव से काफी दूर था। वह काम करते-करते बहुत थक गयी। थकान के कारण उसे नींद आ गयी और वह सो गयी। दिन में भाई आया तो उसे एहसास हो गया कि उसकी बहन ने बहुत परिश्रम किया होगा, उसने उसे जगाना उचित नहीं समझा। अगले दिन शनिवार था और वह परम्परा के अनुसार बहन के घर रुक भी नहीं सकता था और गाँव में कही रुक भी जाता तो फिर शनिवार को भिटौली देने के बाद उसे लौटना उसे उचित नहीं जान पड़ा। वह भिटौली का सारा सामान बहन के घर छोड़कर वापस लौट गया क्योंकि वापसी में भी उसे वक़्त लगना था। देर शाम जब उसकी बहन की आँख खुली तो वह दरवाजे की तरफ भागी कि शायद मायके से कोई न कोई भिटौली लेकर आया होगा। पड़ोस की काकी ने जब बताया की तेरा भाई आया था दिन में, खिला पिलाकर भेजा है न तूने उसे। वह अपने कमरे की तरफ भागी।
बाँस की बनी एक छपरी रखी थी। उसने फटाफट उसके ऊपर कपडा उठाया तो उसे भिटोली नज़र आयी। पूड़ी, हलवा, खीर. साडी. फल, मिठाई और भी बहुत कुछ। बेचारी सिर में हाथ रखकर बैठ गयी और आँसुओं की धार बह निकली। उसे बड़ा दुःख हुआ कि उसका भाई उतनी दूर से आया और वह बिना कळखाये पीये और बिना मिले ही चला गया।
उसके दिल में बहुत गहरा आघात लगा और "भै भूखो, मैं सिती" (मेरा भाई भूखा रहा और मैं सोती रह गयी) कह कहकर वो पागल सी हो गयी और इस दुःख ने उसके प्राण हर लिये। पहाड़ों में मान्यता है कि वही बहन फिर घुघुती बन गयी और चैत के महीने में सब विवाहित स्त्रियों को अपने मायके की याद दिलाती है और उनसे आग्रह सी करती है की मायके से भिटौली आये तो भाई या माता-पिता का स्वागत करना और उन्हें खिला पिलाकर भेजना।
माया का मायका भी दूर ही था। पिछले साल तो उसकी माँ भिटौली लेकर आ गयी थी मगर इस बार उसके पिताजी की तबियत बहुत खराब थी तो उसने मन ही मन अनुमान लगा लिया था कि इस बार शायद ही उसकी भिटौली आयेगी। पिछले महीने जब पिताजी की कुशल जानने मायके गयी थी, उसकी माँ ने कह ही दिया था कि इस बार भिटौली लेकर कैसे आऊँगी बेटी, तू तो देख ही रही है। माया के दो भाई भी थे. मगर दोनों शहर में नौकरी करने के लिए गए हुए था गांव की विवाहित स्त्रियों की भिटौली आ ही रही थी। सब पूड़ियाँ, हलवा पूर गाँव में बाँट रहे थे। चैत के महीने में बस दो ही दिन बचे थे। उस दिन गुरूवार था, अगले दिन शुक्रवार और फिर शनिवार। माया को मन ही मन उम्मीद थी कि क्या पता माँ आ ही जाये भिटोली लेकर। जंगल में औरतें आपस में चर्चा करती रहती थी गाँव में किसकी भिटोली आ गयी और किसकी नहीं।
राधा की भिटोली तो चैत शुरू होते ही आ गयी थी। इस बार तो माँ के साथ उसके भाई बहन भी आये थे उसको भिटोली देने कितना सामान लाये थे भिटौली में। राधा तो एक हफ्ते तक भिटोली. खाने का सामान लेकर आती थी जंगल और सबको बताती थी कि उसकी भिटौली में आया था। कितनी सुन्दर बनारसी साड़ी लाये उसके घर वाले इस बार।
माया ने घुघूती को घर की छत से एक पत्थर मारकर उड़ा दिया। अगले दिन वह राधा के बुलाने से भी जंगल नहीं गयी क्योंकि आज चैत का लगभग आखिरी दिन था। जंगल में सब उसको चिढ़ायेंगी कि उसकी भिटौली तो आयी ही नहीं इस बार तो वो क्या जवाब देगी। उसने सिर दर्द का बहाना बनाकर राधा को जंगल आने से मना कर दिया। वह अपने मायके की परिस्थितियाँ जानती थी मगर उसका दिल फिर भी किसी चमत्कार की उम्मीद लिए बैठा था।
आज तो सुबह-सुबह उसकी सास ने भी उससे पूछ लिया कि माया कोई नहीं आने वाला है क्या इस बार तेरे घर से भिटौली देने मेरी भी आ गयी इस बुढ़ापे में। तुझे तो तेरे घर वालों ने शादी के पाँच सालों में ही भुला दिया। कितना दर्द हुआ था माया के सीने में और वह घर के अंदर जाकर कितना रोई थी। काश वो किसी से संदेशा भिजवा पाती अपने मायके। दिन चढ़ आया था। उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। सारे काम अनमने से कर रही थी। दोपहर में अपने दो साल के बच्चे को अपने कमरे में दूध पिला रही थी कि उसको बाहर कोई जानी पहचानी सी आवाज़ सुनाई दी। वह बच्चे को गोद में लेकर दरवाजे की तरफ भागी। उसका छोटा भाई भिटोली लेकर द्वार पर खडा था। जैसे ही उसने दीदी के चरण छुए, माया ने उसे गले लगा लिया और आँखों से अश्रुधारा बह निकली।
"दीदी भुख लगी है और फिर वापस भी जाना है। रुक नहीं सकता माँ ने कहा है- कल शनिवार है, बहन का घर छाड़ नहीं कर सकते।" छोटे भाई ने कहा।
न बैठ। मैं पानी लाती हूँ और फिर खिलाती हूँ तुझे खाना। तू भूखा मापस नहीं जायेगा।" माया में बिजली सी फूर्ति आ गयी। उसने फटाफट सब्जी चढाई, रोटी बनायी और दही का एक पूरा गिलास भर दिया। जितनी देर में मामा, भांजे के साथ खेल रहा था, उतनी देर में खाना बनाकर उसने भाई के आगे परोस दिया। भाई ने माया से कहा, "दीदी, आपकी और माँ के हाथों में जादू है। कितना अच्छा खाना खिलाया आपने। पेट भर गया।"
"अब तू थोड़ा आराम कर ले।" माया ने प्यार से भाई के सिर में हाथ फेरते हुए कहा।
"नहीं दीदी, मुझे जाना होगा। वो आखिरी बस यहाँ से चार बजे चलती है और फिर कोई जीप या बस नहीं मिलती।" भाई ने दीदी से कहा।
"अच्छा ठीक है, तू आया कब शहर से?" माया ने पूछा।
"परसों ही आया दीदी, मोहन अभी शहर में ही है। मैं चार दिनों के लिए पिताजी की तबियत देखने आ गया। कल ही माँ ने बताया कि माया को भिटोली नहीं दी है अभी तक तो मैं चला आया अपनी प्यारी दीदी को भिटोली देने। रिवाज खत्म नहीं होना चाहिए न दीदी और इसी बहाने मुलाकात भी हो गयी और पप्पू से भी मिल लिया।" भाई ने कहा।
माया कैसे उसे बताती कि इस भिटौली की कितनी जरुरत थी उसे। उसके साथ की महिलायें कितनी बार ताना मार चुकी चुकी थी और सास भी सुनाने से परहेज नहीं कर रही थी।
"अच्छा दीदी, आपके लिए चन्देरी साड़ी लाया हूँ। वो पिछले महीने कंपनी के काम से मध्य प्रदेश गया था तो एक माँ के लिए और आपके लिए ले आया था।" भाई ने कहा।
माया खुशी से फूली नहीं समा रही थी। भाई को छाछ का गिलास थमाकर वह भिटौली टटोलनी लगी और फिर जल्दी से सारा सामान सासु माँ को भी दिखा दिया।
"शुक्र है, आ ही गयी तेरी भिटौली, मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी। सासु माँ ने कहा।
"आयेगी क्यों नहीं सासु माँ, अभी दीदी के भाई जिंदा है।" माया के भाई ने छाछ पीते-पीते ही उत्तर दिया।
घोड़ी देर बाद जब भाई जाने के लिए तैयार हुआ तो माया उसे थोड़ी दूर तक बेटे को गोदी में रखकर छोड़ने आयी। एक मोड़ पर उसने भाई को रोककर उसके हाथ में सौ रुपये रखने चाहे तो भाई बोला, "दीदी, अब मैं बड़ा हो गया हूँ। नौकरी करने लगा हूँ। आप फिर भी।"
"मेरे लिए बड़ा नहीं हुआ है तू अभी भी मेरा छोटा सा भाई राजू ही है। उसने रुपये उसकी बुशर्ट में लूंस दिए। राजू ने जेब से दो सौ रुपये निकाले और भाजे के हाथ में रख दिये।
"दीदी, मैं जल्दबाजी में पप्पू के लिए कुछ खिलौने नहीं ला पाया, आप इससे खरीद लेना।" भाई ने कहा।
फिर दीदी से विदा लेकर भाई उसकी आँखों से उस मोड़ के बाद ओझल हो गया। थोड़ी देर वही खड़ी रहने के बाद उसे होश आया कि भिटौली गाँव में बँटवानी भी है और शाम को राधा को बताना भी है कि उसकी भिटौली में उसका भाई चन्देरी साड़ी लाया है। वह बड़ी खुशी-ख़ुशी घर की तरफ चल दी।
"भिटौली" की परम्परा उत्तराखंड की लोक संस्कृति का एक हिस्सा है। भिटौली का अर्थ भेट से है। पुराने जमाने से विवाहित स्त्रियों के घर चैत के महीने में उसके मायके से माता-पिता या सगे-सम्बन्धी अपनी बेटियों से मिलने जाते थे और उसकी कुशल क्षेम पूछते थे। ज़माना भले ही बहुत आगे बढ़ गया हो मगर आज भी यह परम्परा गाँवों में जारी है और हर उत्तराखंड की विवाहित स्त्री को चैत के महीने में अपनी भिटौली का इन्तजार रहता है। लोक मान्यता के अनुसार, यदि आप अपनी विवाहित बेटी या बहन को जो भी यह भिटौली भेंट के रूप में देते हैं उसका कई गुना आपको आशीर्वाद के रूप में मिलता है, यह भी कहा जाता है कि जो भी भिटौली अपनी विवाहित बेटी या बहन को दिया जाता है, उसका प्रसाद सीधे देवी के चरणों में समर्पित होता है।
जय देवभूमि, जय उत्तराखंड।
चित्र साभार - गूगल
आनंद मेहरा के कथा संग्रह बुरांश के फूल से साभार
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