बालेश्वर मंदिर परिसर, चंपावत

बालेश्वर मंदिर, उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ के चंपावत में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है, Baleshwar temple, Champawat, Baleshwar temple in hindi

बालेश्वर मंदिर परिसर, चंपावत


बालेश्वर मंदिर उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ के चंपावत शहर में स्थित भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है।  बालेश्वर मन्दिर समूह चम्पावत नगर के मुख्य बस स्टेशन के निकट ही लगभग १०० मीटर की पैदल दूरी पर स्थित है।  लगभग २०० वर्ग मीटर फैले मन्दिर परिसर में मुख्य मन्दिर के अतिरिक्त २ अन्य मन्दिर भी स्थित हैं।  उपलब्ध ताम्र पत्रों में अंकित विवरणों के अनुसार इसका निर्माण काल सन् १२७२ ईसवी माना जाता है।  परिसर में मन्दिरों के समीप ही एक नौले का भी निर्माण किया गया है।

बालेश्वर मंदिर की वास्तुकला काफी सुंदर है जिसमें पत्थर की नक्काशी का का काम अपने आप में अद्भुत है।  परिसर में स्थित मुख्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है  जिन्हें बालेश्वर भी कहा जाता था।  बालेश्वर मंदिर परिसर में दो अन्य मंदिर भी स्थापित हैं जिसमे एक “रत्नेश्वर” के नाम से जाना जाता है और दूसरा मंदिर “चम्पावती" के नाम से "माँ दुर्गा” को समर्पित है।  इस मंदिर परिसर में लगभग आधा दर्जन से ज्यादा शिवलिंग स्थापित हैं।  मंदिर परिसर का मुख्य शिवलिंग स्फुटिक का है जो अपनी चमत्कारिक शक्ति के लिए आस्था का मुख्य केन्द्र है।  

हमारी प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला के बेजोड नमूने के रूप बने इस मंदिर के समूह की दीवारों में अगल-अलग मानवों की मुद्राएं तथा देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां बनाई गई हैं।  माना जाता है कि चंद शासकों ने 13वीं सदी में बालेश्वर मंदिर की स्थापना की थी।  मंदिर पर मौजूद शिलालेख के अनुसार इस मंदिर की स्थापना ई. 1272 में की गयी है।  दरअसल यह मंदिरों का एक समूह है जिसका निर्माण चंद-वंश के शासकों ने करवाया था।  वर्तमान में यह मंदिर परिसर चंपावत जनपद का एक सुन्दर तीर्थ एवं धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है।
बालेश्वर मंदिर, उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ के चंपावत में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है, Baleshwar temple, Champawat, Baleshwar temple in hindi

मंदिर में नामकरण के नारे में लोकमान्यता यह है कि महाभारत काल में बाली द्वारा यहां पर असुरों से सुख शान्ति के लिए शिव पूजन किया गया जिस कारण इसे बाली+ईश्वर- बालेश्वर नाम दिया गया।  वर्तमान बालेश्वर मन्दिर का निर्माण चन्द शासन काल में माना जाता है तथा कालांतर में सन् १४२० में राजा ध्यानचन्द ने अपने पिता ज्ञान चन्द के पापों से प्रायश्चित के लिए बालेश्वर मंदिर का जीर्णाेद्वार कराया।  मंदिर समूह के निर्माण में बलुवा तथा ग्रेनाइट की तरह के पत्थरों का प्रयोग किया गया है। मूलतः शिखर शैली पर निर्मित बालेश्वर मंदिर ठोस चिनाई के जगत पर आधारित है। गर्भगृह तथा मंडप की छतों पर कालिया मर्दन अंकित हैं, और बाहरी दीवारों पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा अन्य देवी-देवताओं का अंकन किया गया है।

मंदिर के निर्माण के सम्बन्ध में एक अजीब कहानी भी प्रचलित है कि जिस कारीगर ने इस मंदिर में अपनी कला का हुनर दिखाया था उसका नाम जगन्नाथ मिस्त्री था।  यह कहा जाता है कि जब जगन्नाथ मिस्त्री ने मंदिर बना दिया था, तब चंद शासक जगन्नाथ मिस्त्री से काफी प्रसन्न हुए और साथ ही चंद शासकों को लगा कि जगन्नाथ मिस्त्री अपनी कला का प्रचार-प्रसार कहीं किसी और जगह ना कर दे इसलिए चंद्र शासकों ने जगन्नाथ मिस्त्री का एक हाथ कटवा दिया।  यह बात वैसे बहुत सत्य प्रतीत नहीं होती है क्योंकि ऐसी मिलती जुलती कहानियाँ हर प्रसिद्ध निर्माण के बारे में प्रचलित हैं।

कहा जाता है क्योंकि जगन्नाथ मिस्त्री, जो कि एक कुशल कारीगर था उसने चंद शासको को जवाब देने की सोची और उसने बालेश्वर मंदिर से लगभग 4 किलोमीटर दूर “अद्वैत आश्रम“ से मायावती पैदल मार्ग में एक “हथिया नौला“ का निर्माण किया।  एक हथिया नौला एक हाथ से बनी “बावली” की कहानी यह है कि जगन्नाथ मिस्त्री ने अपने एक हाथ के आधार और अपने बेटी की सहायता से एक रात में बनाया था।  

बालेश्वर मंदिर अपनी वास्तुकला की खूबसूरती के कारण अलग पहचान बनाए हुए है जो लोगों को अपनी ओर खींचती है और सोचने को मजबूर कर देती है। मंदिर परिसर के हर हिस्से में एक अनेक प्रकार की कलाकृतियाँ देखने को मिलती है।  पहले मंदिर परिसर में अनेक प्रकार की मूर्तियां थी लेकिन वर्तमान समय में मूर्ति को अलग कर दिया गया है। वर्तमान में बालेश्वर मंदिर परिसर उत्तराखण्ड के राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों में से एक है। 

चंपावत में बालेश्वर मंदिर को “राष्ट्रीय विरासत स्मारक” घोषित किया गया है और 1952 ई. से यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में है।  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण देहरादून मण्डल द्वारा इसकी देख-रेख के लिए कर्मचारी नियुक्त किये गये हैं।  पुरातत्व विभाग की देख-रेख में बालेश्वर मंदिर परिसर की स्वच्छता एवं प्रसिद्ध बालेश्वर नौले के निर्मल जल को संरक्षित किया गया है।  बालेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि के दिन एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भक्तो की भारी भीड़ देखने की मिलती है।

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