कलबिष्ट देवता मन्दिर - कफड़खान, अल्मोड़ा

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कलबिष्ट देवता मन्दिर - कफड़खान, ताकुला रोड, अल्मोड़ा

लेखक: नीरज चन्द्र जोशी

अल्मोड़ा से बाइस किलोमीटर दूर कफड़खान में ताकुला सड़क मार्ग के निकट स्थित यह प्रसिद्ध देवालय कल बिष्ट को समर्पित है। देव गाथाओं के अनुसार यह कोटच्यूडाकोट के केशव कोट्यूडी का पुत्र था। इसके साथ एक मुरली, मोचन्ग, पखाई, रमटा-कुल्हाड़ी, घुंघरू, झपुवा कुकुर, लखमा बिराली, खनवा लाखो, रुमेली घुमली गाय, भगवा रांगो भैंसा, नागुली भागुली भैंसी, सुनहरो दांतुलो हमेशा रहते थे।

माना जाता है कि यह बिनसर में सिद्ध गोपाली के यहां दूध पहुंचाने जाता था। इसके घर के नजदीक ही श्रीकृष्ण पांडेय का भी घर था और दोनों में मित्रता थी। श्रीकृष्ण राजा का मुख्य पुरोहित था, उसकी नौलखिया पांडेय नामक व्यक्ति से शत्रुता थी। नौलखिया पांडे श्रीकृष्ण को मारने के लिए बुक्सा से भराड़ी नामक प्रेत शक्ति को बुला लाया। कलुवा कल बिष्ट ने भराड़ी प्रेत को त्यूनरी गाड़ में चट्टान से दबाकर मार डाला। तब नॉलखिया पांडे ने श्रीकृष्ण और कल बिष्ट में फूट डालने के लिए अफवाह फैला दी कि कल बिष्ट के श्रीकृष्ण की पत्नी से अवैध सम्बन्ध हैं।

जब यह बात श्री कृष्ण पांडे के कानों तक पहुंची तो उसने राजा से शिकायत करके कल बिष्ट को मारने की योजना बनाई। राजा ने पांच पान के बीड़े भेजे ओर घोषणा की कि जो कल बिष्ट को मल्ल युद्ध में मारेगा वह पान के बीड़े स्वीकार करे। आस पास के क्षेत्र में कल बिष्ट के साहस के बहुत चर्चे थे। कल बिष्ट अत्यंत बल शाली था। जय सिंह टम्टा के अलावा किसी ने बीड़ा नहीं स्वीकार नहीं किया।

शर्त लगी कि जो जीतेगा वह दूसरे की नाक काट देगा। कल बिष्ट जब दरबार में आया तो इतने बड़े डेको में बर्तनों में दूध दही लाया कि उसकी ताकत की चर्चा चारों तरफ फैल गई। राजा ने देखा कि कल बिष्ट के मस्तक में त्रिशूल ओर पैर में कमल का चिन्ह है जिससे राजा समझ गया कि यह अत्यंत वीर नवयुवक है। कल बिष्ट की मल्ल युद्ध में विजय हुई और टम्टा को नाक कटानी पड़ी। इससे दरबार में कल बिष्ट की धाक जम गई।

राजदरबार में कल बिष्ट की खूब आवाभगत हुई तो कुछ दरबारी कल बिष्ट से ईर्ष्या करने लगे। राजा के दरबारी पाली पछाऊं के दयाराम पछाईं ने राजा को प्रस्ताव दिया कि कल बिष्ट राजा की भैंसों को चराने के लिए चौरासी माल ले जाएगा। चौरासी माल शेरों से भरा हुआ इलाका था। वह मन ही मन चाहता था कि शेर कल बिष्ट को खा जाएंगे। कल बिष्ट राजा की आज्ञा मानकर भैसों को लेकर नथुआखान, राम गाड़, विनायक, भीमताल होते हुए चौरासी माल को चल पड़ा। वहां उसकी भेंट सोलह सौ सैनिकों की मुगल सेना से हुई। मुगल सेना का नेतृत्व सूरम व भागू पठान कर रहे थे। कल बिष्ट ने एक साल के पेड़ के तने को उखाड़ कर ऐसा घुमाया कि पूरी मुगल सेना तहस नहस हो गई।

कल बिष्ट सकुशल पाली पछाऊं पहुंच गया। दयाराम यह देखकर आश्चर्य चकित हो गया। माना जाता है कि कल बिष्ट ने चौरासी शेरों को मारकर राजा की भैंसों की रक्षा की। दयाराम को चेतावनी देकर कल बिष्ट कफड़खान पहुंच गया। वहां एक प्रेत रहता था जो कल बिष्ट की भैंसों को दुहने नहीं देता था। कल बिष्ट ने उसे परास्त किया और वचन लिया कि वह भूले भटके लोगों को परेशान नहीं करेगा और उनकी मदद करेगा।

जब श्रीकृष्ण के अनेकों प्रयत्नों से भी कल बिष्ट नहीं मरा तो उसने धोखे से उसे मारने के लिए अपने साडू हिम्मत सिंह को वहां भेजा। हिम्मत सिंह ने चुपके से कल बिष्ट की एक भैंस के पैर में कील ठोंक दी और सुबह कल बिष्ट से आकर कहा कि मेरे बच्चों के लिए दूध नहीं है, एक भैंस कुछ दिनों के लिए मुझे दे दो। कलुवा ने कहा कि गोठ से एक भैंस छांट लो। हिम्मत वही भैस लाया जिसके पैर में उसने कील ठोंकी थी ओर वह कील कुलुआ को दिखाने लगा। कलुआ कल बिष्ट जैसे ही कील निकालने के लिए नीचे झुका हिम्मत सिंह ने खुकरी निकालकर उसके पैर काट दिए। इस स्थिति में भी कालू ने हिम्मत को मार डाला। परंतु कालू की भी मृत्यु हो गई।

माना जाता है कि मरने के बाद कल बिष्ट की प्रेतात्मा ने पांडे खोला में श्रीकृष्ण के परिवार को सताना शुरू कर दिया। हिम्मत सिंह का वंश समेत विनाश हो गया। तभी से पाली पछाऊं में ओर अल्मोड़ा में इसकी पूजा प्रारम्भ हुई। इसे बलि दी जाने लगी और इसका जागर भी आरम्भ हुआ। मान्यता है कि पूजन से प्रसन्न होकर यह ग्राम वासियों को सुख समृद्धि प्रदान करता है।

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