लुप्ति के कगार पर कुमाऊँनी लोक संस्कृति - 1

लुप्ति के कगार पर कुमाऊँनी लोक संस्कृति- भाग १,article about the extinction of old kumaoni folkart forms, kumaon ki lokkala, kumauni Lokkala

लुप्ति के कगार पर अपना स्थान खोजती कुमाऊँनी लोक संस्कृति

लेखिका: प्रेमा पांडे
भाग :-.....१

कुमाऊँ लोक संस्कृति मे भित्ती सज्जा:- 
कला अर्थात लोक-चित्रकला .. क्षेत्र में  चित्रकला को संजोये रखने में कुमांऊँ की नारी अपना स्थान बनाये रखने मे आगे है।  धार्मिक उत्सवो पर इस चित्रकला की गुरु व शिष्या दोनों हैं  ।  घर के बड़ी दादियां ताई चाची माँ  गुरु है, तो पुत्री शिष्या। इन्हीं दो गुरु-शिष्य परम्परा से ही यह चित्रकला निरंतर प्रगति कर रही है।  कुमांऊँ में अपने पारम्परिक व प्रचलित ऐपण के नाम से विद्यमान यह कला अब भारत वर्ष के अन्य भागों में भी दिखाई देने लगी है।  कुमांऊॅं की चित्रकला में अधिकॉश प्रतीक धार्मिक होते हैं।

वर्तमान में यहॉं की चित्रकला का एक अद्वितीय रूप दिखाई देता है।  कुछ पर्व पर पूजन हेतु पट्टे बनाये जाते है, पूजा की दिवारो पर सुन्दर तरीके से भद्र बनाये जाते है , ज्यूति पट्टा, जन्माष्टमी पट्टा, राम, लखन, सीता, अन्यारी व उज्यारी देवी, मॉं लक्ष्मी, विष्णु, गणेश, ब्रह्मा, स्थानीय देवता भोलेनाथ, गणपति अपने वाहन सहित  बनाये जाते हैं।  जो दीवारो पर चित्रकारी द्वारा महिलाऐ सामूहिक रुप से पूरा करती है।  जो दीवार पर कमेट सफेद मिट्टी से पोतकर उसमे डिजाइन करती है।  पर अब यह कला लुप्त सी हो गई है।  
       
चलिये जानते है ये बर-बूंद भद्र मँडल जो दिवार-सज्जा कहलाती क्या है।  आज की पीढी को जानना आवश्यक है।

बर-बूंद भद्र-मँडल का अपना महत्व है।  सामान्यत: लोग इसको सजावट का रुप मानते है पर शोध द्वारा सिद्ध होता है कि यह अभिरुप वस्तु विभिन्न प्रकार के अलग-अलग मँडल है।  कुमाऊं में यह दिवार पर अलग-अलग रँगो से चित्रित किये जाते थे।  इसका रुप छोटा होता था।  एक कोने में यह भद्र मँडल तैयार किये जाते थे तथा एक ही भद्र मँडल को (36) छत्तीस बार पुनरावृत्ति की जाने के कारण इसके रुप इस प्रकार मिले कि मुख्य अभिरुप की पहिचान कठिन हो गई।  दो भद्रो के बीच में रँगो की सजावट के कारण उनका मुख्य रुप अस्पष्ठ हो गया।

बारह बिन्दु भद्रमँडल:-
बारह बिन्दुओ को सीधी पँक्तिमें रख कर उनके ऊपर बारह बिन्दु सीधे रखे जाते है।  बिन्दुओ को आपस में जोड़ दिया जाता है।  इसे भीत्ति में भी रँगो द्वारा चित्रित करते है। 

उन्नीस बिन्दुओ का भद्र:- 
इस भद्र की संरचना उन्नीस बिन्दुओ से की जाती है, पूजा स्थान और भीत्ति दोनो स्थानों पर इसे चित्रित किया जाता है।  यह भद्र बारह बिन्दुओं के भद्र की तरह ही बनता है 

चौबीस बिन्दुओं का भद्र:- 
चौबीस बिन्दुओं का यह भद्र भित्ति में रँगो द्वारा चित्रित किया जाता है।  पट्टो के चारो ओर से इसकी संरचना बड़ी सुन्दर लगती है।  इसे गौरी तिलक भी कहते है। 

छत्तीस बिन्दुओं द्वारा निर्मित:-
छत्तीस बिन्दुओं द्वारा निर्मित भद्र भी  भित्ति में  रँगो द्वारा ही बनाया जाता है।  इस तरह के सभी भद्र ज्यूतिपट्टो के चारो-ओर और विवाहादि शुभ अवसरो पर बहुत सुन्दर ढँग से बनाये जाते है।  इसमें लगने वाले रंग मुख्यत: लाल, पीला, काला, हरा व सफेद होता है।  चौबीस और छत्तीस के भद्र बर-बूंद कहलाते है।

सर्वतोभद्र चक्र:-  
सर्वतो भद्रचक्र बहुत ही मांगलिक एवं कल्याणकारी माना गया है । इस भद्र के दो अर्थ है।  जिस चक्र में सब ओर भद्र नामक कोष्ठक समूह हो उसे सर्वतोभद्र समूह कहते है।  इस चक्र में प्रत्येक दिशा में दो-दो भद्र बने होते है, अत: ये सार्थक है। 

दूसरा अर्थ है जो पूजक का सब ओर से कल्याण करे।  सर्वोतोभद्र द्वारा नियत स्थानो पर अक्षत पुंजों अथवा सपारियो से मँडल स्थल पर देवताओ का आवाहन कर पूजन किया जाता है।  इन्द्रादि देवताओ, मातृ शक्तियो तथा ऋष्यादिको के अतिरिक्त, पर्वत, नदियां, नाग, किन्नर, यक्ष, अप्सराओं, सप्त सागर, आयुधों आदि का भी स्मरण एवं पूजन किया जाता है।

इतने बड़े संस्कृति की धनी कुमाऊँ समाज को  विरासत से मिली सँस्कृति पर गौरव होना चाहिये । मगर दुख होता है कि विकास की अँधी दौड़ में हम अपनी इस विरासत को पीछे छोड़ते जा रहे हैं , जिस कारण आज ये कला विलुप्ती की कागार पर खड़ी है । आईये हम सब मिल कर इस विलुप्त होती संस्कृति को बचाने के लिये प्रयास करें व अपने बच्चों को इन की जानकारी दें व उन्हें प्रोतसाहित करें कि वो संस्कृति से जुड़ें व इस के प्रचार प्रसार में अपना योगदान दें।
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>मेरे द्वारा बनाये गऐ निर्मित चित्र।👇

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