
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
कसिक कै दियूँ के
चोरि नि करन्यूँ कै
त्वीलि चायै न्हाँ -
यो दुहैरि बात छ।
आपण हिसाब' लि त
सब ऊनेरे भ्या
तु आयी नि आयी,
यो दुहैरि बात छ।
बखत'क हिसाब'लि त
के नि रै ग्यो
छो आजि ले फुटौं
यो दुहैरि बात छ।
यो दुन्नी भै,
याँ दुन्नियाँ टटम ले भये
हमैलि एक नि मानी
यो दुहैरि बात छ।
बेयी स्वैणां ले ऐ रै छियूँ
मैं ड्यार में
त्वीलि पछयाँणै न्हाँ
यो दुहैरि बात छ।
गाड़-गध्यार, रौड़ ले भयै
हमार गोंन में
आब तालुन मा्ंछ नि भै
यो दुहैरि बात छ।
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बखत जा्ण में
बखत जि लागौं....
जांणि
पोरुवैं की बात हौओ
जब मोव थैं
बर्यात पुजी और
डोलि बटी
भ्यार ऊँन-उनै
धान जा फोगी ग्या
हमा्र पटाँङण में...
पिंङौव पट्ट है गेछी
आर-पार जांणैं....
और रंगाई पिछौड़ में
लाल गोल-गोल जा
कतुकुप सूर्ज
दगाड़ै ए पुज
खुटकूँण'न लै.....
भतेर ऊँण बखत
द्वार में थापी
त्यार आँगुवनै छाप
और
साँक-घाँट ...
मैं आजि ले देखूँ
आजि ले सुँणू त
कसिक कै दियूँ
कि बखत जांण में
बखत लागौं कै।
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शब्दार्थ:-
करन्यू - करता हूँ,
छो - सोता,
फुटौं - सोते से पानी आना,
तालुन - ताल में,
मांछ - मछली
पिंगौव पट्ट - बसती ऱंग फैल जाना,
कतुकुप - बहुत सारे,
खुटकूण - भीतर आने की सीढ़ी,
साँक घांट - शंख घंटी,
कसिक - कैसे
Dec 17,19 2017

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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