सौंणक मैहैंण - कुमाऊँनी कविता

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सौंणक मैहैंण

रचनाकार: चम्पा पान्डे

सबू कैं उत्तराखंडक लोकपर्व हरियाली प्रतीक 
हर्यावक और सौंणक मैहैंणक बहारक 
भौत भौत बधै और शुभकामनाएँ 
🌱🌴🍀🌲🌳🌿🌾🌺🌻

सौंणा मैहैंणा की बात छौ न्यारी ,
रुमाझुमा बरसी रुछौ द्यौ का पाणी |

चारों तरफ फैली रुछौ ,
के भली हरियाली,,
मुरझायी लै खिली जानि ,
सब फूलों की क्यारी ,,
डाई बोटी लै हरिया है जानी,
रुमाझुमा बरसी रुछौ द्यौ का पाणी |

गुड़ाई -निराई लै हैगे ,
धान की रोपाई लै हैगे ,,
काहांण माहांण सब फुटी गो ,
हरयाव लै झक्क जामि गो ,,
काटि हरयाव तीनड़ा, ख्वरम धरनि ,
रुमाझुमा बरसी रुछौ द्यौ का पाणी |

सौंणक मैहैंणा कणी,
शिबजी कौ मैंहैंण माननी ,,
भाँग धतूरा, बेल पत्री,
भोले कणी भेंट चढ़ुनी ,,
शिवालय जानी ,दूध जल चढूनी ,
रुमाझुमा बरसी रुछौ द्यौ का पाणी |

यौ मैंहैंणा घर मन्दिरा ,
पूज -पाठ सब करनी ,,
कौ लगानी भोग मन्दिरा ,
कौ पुवा प्रसादी बनुनी ,,
शिबजी कैं मनुनी ,शिवार्चना करूनी ,
रुमाझुमा बरसी बरसी रुछौ द्यौ का पाणी |

भै बैणीक त्यार लैकी ,
सौंणक मैहैंण में आंछौ ,,
दाद भूली का हाथम ,
बैणी दीदी राखी बाधुछौ ,,
यौ रक्षा की लाजा द्वियै निभौनी ,
रुमाझुमा बरसी रुछौ द्यौ का पाणी ||
धन्यवाद
*चम्पा *पान्डे*, 19-07-2020

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