नैंनांग दिण - हमार पहाड़न में एक परम्परा
लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली'
हमार पहाडन में एक परम्परा छ नैंनांग दिण। नई फसल हुण पर वीक पैल भोग भगवान कें आपुण इष्टदेव कें लगूणक प्रचलन छ। सार गौं वाल जैबेर मन्दिर में पुज पाठ पन्चामृत करिबेर वैं खाण बणैबेर खानन। असल में यो परम्परा भगवान क आभार मानणक एक तरीक छ कि हे सर्वशक्तिमान प्रभू तुमाैर प्रसाद हम खाणया। साल भर प्राकृतिक आपदा, डाव, ह्यूं, अतिबृष्टि बटी तुमैलि हमरि फसलैकि रक्षा करी।
यैहै अलावा यो सामूहिकता सामुदायिकता ले बढूण में सहायक छ और दगाड में एक जंगल क बीच में सुरम्य स्थान में एकबटी बेर प्रभु स्मरण क साथ सामूहिक भोज एक आधुनिक पिकनिक क प्राचीन रूप जस ले भै। मेके याद छ हमार गौं में ले धौलीनाग ज्यू, नौलिंग, बन्ज्यैण, छुरमल, देवीथान में समय समय पर नेंनाग दिणक प्रचलन छी जो आजि लि विधिवत और निर्वाध रूपलि चलि छ।
गौं क सयाण निश्चित दिन कौल कि भोव नैंनाग दिण आया हां!
अगर दिन पौ परवी वाल होल और हर साल उदिन नैंनाग द्याल तो लोगन पत्त होल उ आफि ऐजाल नतर सूचना दीबेर एकबट्याई जाल। सूचना ले पुर गौं में घर घर जैबेर दिणैकि जरवत नि भै। बस एक द्वि आदिमन बतै दिओ उ दूसारन बताल और चेन चलते रौलि साब लोगन कें पत्त लागि जाल। आब हर घर बटी पूज क और खाण पीणक सामान जमा हुण बैठ जाल। जो परिवार बटी जदुक आदिम जाल उदुक हिसाबलि राशन ले धराल। चूंकि सामूहिस पुज भै तो आदिनकि सख्या निश्चित नि भै। जो आदिम के कारणवश नि जै सकाल उ दुसरा हात जुगुत भेजि द्याल।
जुगुत कुछ यसि हुनेर भै - अच्छयत पिठ्या धूप बात फल फूल तेल नैबेद, दै दूध घ्य आदि खाद्य सामग्री में चाओ पिस्यूं हल्द मस्याल तेल दाल साग पात। जैक पास जदुक छ के बाध्यता नि भै। पर जो फसलक नैनांग दिण भै उ जरूर धराल, कैकी कुटी पीसी नि होल तो तबले चल जाल। गौं एस परिवार जस भै, कैके भीतर बटी ले न्हैगे तो चल जाल। क्वे गोरु दूद द्याल तो बताल कि यो गोरु क दूद छ ताकि पन्चामृत में काम ले ल्हि सकनन।
आब मन्दिर जैबेर सब सामान एकबट्याई जाल, चावलन में चावल, पिस्यू में पिस्यू, साग क दगाड साग, तेल क दगाड तेल। तसी के हल्द मस्याल लूण घ्यू जाम करि जाल। यो जो सामान इकठ्ठ है जाल उ देखण मेॆ पंचमेवा या यो कै सकीं की छप्पन भोग जस देखी। जदुक घर उदुक प्रकाराक चावल, तसे अलग अलग प्कारक साग, आल तोरी लोकी गेठी फ्रासबीन सुट सग्गि खुश्याणि, गडेरी। तरह तरहक क दाल . . आब जब यो मिक्स दाल, मिक्स चावल, मिक्स साग पकाई जाल तो सोचो यैक सवाद कस हुन हुन्योल, आहा! दगाड में थ्वाडै हल्लू, महाप्रसाद, खीर, पुरि, खाते खाते धौ नि हुनेर भै। किलै कि घर में यस मिक्स चीज बणन असंभव भै।
सब जाणी मन्दिर में आपुण आपुण काम आफि सभाल लिनेर भाय। क्वे साग काटणौ, क्वे चावल घ्वैणौ, क्वे पाणि लूणौ, पिस्यू ओलणी अलगै लागि ह्वाल। पहाडन में क्वे आयोजन हो और चहा नि बणौ यो कसिके होल। बीच में एक बार फस्कलास चहा ले बणौल जुगुत तो भई। सबसे मजेदार काम करणक तरीक . . किलै कि कई मन्दिर दूर हुनेर भाय तो ज्यादे सामान भानकुन लिजाण कठिन भै तो वां बिकल्प तलाशी जानेर भाय। जसिके पिस्यू ओलणा लिजी एक चकौव पाथर, कबै मन्दिरकि चौखि ( एक आयताकार पत्थर स्थापित होता है)। पुरी निकालणा लिजी एक डन्ड कें तीख बणैबेर, पुरि उतारिबेर धरणते पत्याल . ., आल छिलणा लिजी ढूंग में घोसण।
खै पीबेल प्रसाद वगैरह लिबेर फिर जब घर आल तो उनार लिजी चार पुरि हल्लू और प्रसाद पुज्याई जाल जो नि ऐ सक मन्दिर और सबन केॆ याद रौल - उ मन्दिरक खाणक स्वाद!
विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार), 22-05-2021
M-9411371839
फोटो सोर्स: गूगल

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