द्वि शैणनौक संवाद

कुमाऊँनी कविता, द्वि शैणनौक संवाद, Kumaoni Poem about dialog between two mid age ladies

-:द्वि शैणनौक संवाद:-

लेखिका: अरुण प्रभा पंत

के चल्लौ पै अज्यान भुबनिक इजा
के चलुं बज्यूण उसै भौय बुती बुति
एक मिलटैक लै फुर्सत नै, बिशूणहुं
और तुमार के है रैयीं, ब्वारि कां छु?
केने उसै भीतेरपन हुन्यैल ढिलि छु
एक कम है रौ कूणूजौ ब्योथ पाप 
फोन बजिरौ, बर्बादी, हर बातपुजि जैं
के खा के पे सब बतूण भौय सबन कं
त्यारा ब्वारिअसल छु लागी रै बुति में
तुलै चंपा इजा के जाणछा! वी फोन
खाणि बातचीत, खाणि गीद, खाणि के
न चुल, न सगड़,न भदाव न भड्डू
न पाल न चुल लिपण, न कुड़ उछिटण 
न गेरु, न बिस्वार, न ऐपण, न पुज पाति 
न सिल पिशण न जतार न दातुल
फिर लै गौंमें रुनू पुरि कहानि बदय गे
न नौल बै पाणि सारण धुर नै जंगल
पुर ख्यात अधि लगयी बस बाड़ै बाड़ रैग्यान 
फिर लै नकै भयां सास भयां नै
तस तौ भयै चंपा इजा चलौ के करनू
सब बचि रैयी चैंनी कां बै ल्यूं दुसार
यो दुन्नि भै भुबनी इजा कसिकै संचनै
हिटनू पै भितेर धौं के के कर राखौ
मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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