
ओहो! दाज्यु कस बखत् ऐगो।
रचनाकार: हीरा बल्लभ पाठक
🌹🌿🌹🌿🌹
एक बखत् उ लै छी, एक बखत् यौ लै छू,
बौज्यु धोति पैरछीं च्यल् जीन्स पैरण फैगो
और त् और नंगचुइयै घुमण लैगो।
ओहो! दाज्यु कस बखत् ऐगो।।
झुंगर, मडू खैबेर खूब मशक्कत् करछीं,
एक पिड़े ब्वझ हाथै पर उठै ल्यूछीं,
द्वी-तीन मैल दूर तक खेति हुनेर भै
एक्कै लपाक में हौव्-दन्याव है जानेर् भै
ओहो! दाज्यु कस बखत् ऐगो।।
नौकरी वाल क्वे नि भाय,
घर-आंगण में बहार हुनेर भै,
सगड़ में आग जागै बेर ,
चहा भौत्तै भलि बणनेर भै।
पलायनक् दोष लैगो
ओहो! दाज्यु कस बखत् ऐगो।।
🙏🏼🌿🌺⚘🌺🌿🙏🏼
हीरावल्लभ पाठक (निर्मल), 25-11-2020
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर,रामनगर
हीरा बल्लभ पाठक जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी पर पोस्ट
0 टिप्पणियाँ