
कुमाऊँ के भूत देवता गंगनाथ
लेखक: दुर्गा दत्त जोशी
पहाडों में भूत पूजा देव पूजा से अधिक प्रचलित है। किसी तरह की शारिरिक पीड़ा रोग आदि हो जाय तो ग्रामीण लोग ईलाज की जगह भूत पूजा ज्यादा करते हैं। भूतों के नाम के जागर लगते हैं बकरे चढते हैं। पहाडों में जगरिए डंगरिए भूत पूजा में ब्यस्त रहते हैं। कभी कभी शहरों में भी इनके कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
आज से लगभग ढाई सौ साल पहले की घटना है। डोटी के राजा वैभवचंद का पुत्र पिता से लड़कर साधु हो गया। घूमता घामता वह पट्टी सालम के गांव अदोली में एक ब्राह्मण जोशी की पत्नी के प्रेम पास में फंस गया। जोशी अल्मोड़ा में नौकर था जब उसे यह खबर लगी तो उसने झपरूवा लुहार की मदद से अपनी गर्भवती पत्नी साधु रूपी राजकुमार को मरवा दिया। बताते हैं ये तीनों प्राणी भूत हो गए और लोगों को चिपटने लगे। अतः अदोली में सर्वप्रथम गंगनाथ का थान बनाकर पूजा कर दी। तकुनिया, ल्याली, नरई में इनके थान बने।
कहते हैं गंगनाथ ज्यादातर बच्चों व खूबसूरत औरतों को चिपटता है। जब कोई भूत प्रेत से सताया जाता है या किसी अन्यायी के फंदे में फंसता है वह गंगनाथ के की शरण में जाता है। उसकी गंगनाथ अवश्य रक्षा करते हैं। अन्यायी को दंड और भूत प्रेतबाधा को दूर करते हैं। गंगनाथ को पाठा छोटा बकरा, पूरी मिठाई माला वस्त्र जोगिया झोला जोगियों की बालियां और भाना को आंगड़ी, चद्दर नथ बच्चे को कोट तथा कड़े चड़ाए जाते हैं।
आइ गड़ा बायो, डोटी बटी उठायो, काली तीर आयो।
जोगी रे गंगनाथ काली तीर आयो।
डंगरिया इन शब्दों का उच्चारण करता है।
आजकल लगभग पूरे कुमांऊ में गंगनाथ की पूजा होती है।
संदर्भ ग्रंथ: कुमाऊं का इतिहास
चित्र साभार
दुर्गा दत्त जोशी जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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