पहाड़क अनमोल बोट

पहाड़क अनमोल बोट-कुमाऊँनी कविता,kumaoni poem about use of different pahadi fauna,kumaoni bhasha ki kavita

पहाड़'क अनमोल बोट

रचनाकार: हीरा बल्लभ पाठक

सानणक होव, द्न्याव, ठेकी दहाड़ी, डोंकाव, जन्हरेकी कोलि 
बांजक द्यखो द्न्यवक घन, कुटवेकी जाड़ी,
जान्हरेकी मुसयि,ल कड़ और क्वेल 
घा-पात हुनेरे भे बर्ख हैं भोते भलि।

आजकालक ब्वारी शेम्पू लगानी भीमू उज्यानि क्वे नि चानि     
भिमुवक गावेल ख्वरत सुजनेरे भे जूं तक मरि जनि 
ज्योड़, घस्यर ,खाटिक  बाण, छिलुक 
और दुदिल घा जलोणी लकड़ भोते हुनी।

बांसक बोट भोते भल! डाली, टुपर, 
गोठे हैं फडीक लैट बाछांक तेलक थ्योई 
मरनि बखत झ्यांजी, बंसरी तक बने है 
छाँ फाननी रयोड़ी बान्सेकी हुनेर भे।

आमक आम गुठाय्लक दाम,
काच आमक अचार दुनी में छाई रो 
पाकी आम बिदेस तक जाण लै रो 
घणी छाँव में पशु-पंछी और बटोही करनी आराम।

क्वंहाक डाव स्वां-स्वां लै रो,
सन्तरी जस ठाड़ है रो
छिलुक, तखत, बगटक क्वेल 
और लिसकी गाड़ लै रै।

तुणिक तख्त ब्ल्द्क कानिक जू ,
स्येव इतुक मन कों बठिये रों 
छाँचरी, तिमील,ख्योंड़ीयां, गेठी 
घा-पातेकी बहार है रै हो धिनाइल भरी रै ठेकी।

देवदारेकी बातें अपार खुसबू द्यखो भित्यर भ्यार 
भे -बैनियो सुणो बात न करो इनरी घात 
इन बोटन कै पालो-पोसो प्रकृतिकी अनमोल सौगात।
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हीरावल्लभ पाठक (निर्मल), August 8, 2014
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर,रामनगर
 
हीरा बल्लभ पाठक जी द्वारा फेसबुक ग्रुप पहरु पर पोस्ट

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