
रतेक भुली ब्याल घर पूजनयीं
लेखिका-ज्योतिर्मई पंत
आज पच्चीस साल बाद नान दा आपुन घर वापस पुज गे एकदम शहरी ठाठ वाल सब मिलण हुँ ऐ। मन में संकोच ल्हि बेर पैली ले एक द्वी बेर जब उ गौं अ ईं तो कक मुख्य नि लागु नेर भै सब लोग गॅवार अनपढ़े जस भै उनार लिजी, सिद साद नान्तिनान क ले उपहास करि बेर रुलै दि नर भै र भै उनार जाइ बाद घरवाल सबन थें माफी मांग ल्हि नेर भै आपुन घर में ले सब कामन में रोक टोक 'नै नै ईजा!' तौ दूद की मलाई हथैल किले नि कालन छी, तौ बोज्यू तो सब नान्तिनान के हाथै ल दाल भात ख ऊ ने। कतू धूल मात है रौ सब जाग?
वीक नखार देखि सबै हैरान! किले तू ले यासीके ठुल। किले सब भूल गोछे? आपुन जड़न के छोड़ी बेर कोई नई पनपन चेला!?
इज कनेर भै चेला! जसिक सब परवर याँ छू तू ले रौले. शहर कतुके भल हो पर आपुन तो क्वे नि हुनेर भाय। दुःख सुख में आपुणे काम ऊनि याँ ले तू के काम करि सकें छे पर तू नि मान ने पै के करूँ मैं यपर जब ले मन हो लो आई जायै। हम आस लगे राखुल तेरी वापसी कि। अब लॉक डाउन में छूट मिलते ही वापस ऐ गे आपुन घरवाली और च्योल दगड । इज बाबू तो खुशी मारी अलबले गयीं और आम तो भौते खुशी हैरै। कूँण लगी हे इष्ट देवो ! सन्मति दे त्वील आज।
और यो कोरोना जैले छ जस ले छु रे।
ओ कोरोना तू कतु के ले विनाशकारी है बेर ऐ रोछे पर त्वील सबै मनखीन के भल सबक सीखे दे। मान सम्मान,सद्भावना और संवेदना क पाठ फिर से याद दिल दे धन दौलत , लोभ लालच ले कभते व्यर्थ जस है जां, रत्ते भुली ब्याल घरपुज गयीं।
तेर ले धन्यवाद।
2-घर वापसी
आज खिमलि दिदि भौत सालन बाद आपुण गौं में पुजी। घरै क तरफ चढाई शरू कर छी कि कतके नानतिन ऐगे "आमा! काँ जांण छ?यो सामान दियो हम पूजे दिनु।"
खिमलि इथकें उथकें चाण लागि। यो आम कथें कूँण लाग रई। फिर आ फी हँसण लागि। ओहो ! मैं तो अब बूढ़ी है गयुं। अब कतुक बखत हैगे जब याँ बचपन बिता। खिमुली-खिमुली दिदि तक। फिर ब्या बाद सरास में कतुके रिस्त कतुके नाम, भैर वालन हूँ आंटी।।
घर पूजी बेर वील उ नान्तिनान के धन्यवाद कौ। फिर आपनि बोज्य थें के बेर उन केन चाहा पाणी पिवै. बेर विदा करो। पर वीक मन में आई लै "आमा"सम्बोधन घूमने रो। अब आप हूँ "आमा आमा "सुनि बेर तो बहुते आश्चर्य हैगे ... खिमुलि बै आमा ण तक यो उमरक सफर याद करते ही उ के आपूण बचपन सिनेमाक रील जैस घूमी गे। पुराण जमान में घर गौं में आमक पदवी कतु सम्मान वाली हुनेर भै। घर-द्वार अडोस-पडोस कैके के काम काज हो, हारी बीमारी हो .के ले परेशानी हो तो पैली आ मक सलाह चौनेर भै। घरेलु इलाज हो पूज पाठ हो ,सब जानकारी, गीत संगीत, कर्मकांड सब आमै बतु नेर भै आमतौर पर आपस में जो ले मतभेद हो। कहा सनी है जौ पर आम जे ले सलाह देली या फैसला करली। तो सब स्वीकार कर लिछी। किलैकि उ बुजुर्ग और अनुभव वाली हुनेर भै। सबै नानतिन ले आम दगड़ सब बात कर नेर भै । आपून इज बाबूक शिकायत ले निसंकोच कई दिनेर भै। काथ कहानि क आण नक खजान ले आम हुँछि। कोई ले आम सबनकि है जांछी। "जगत आम" है जानेर भै।
पर आज तो औरी बात देखि रै। सबै कोरोना वील दूर दूर ठाड है बेर बात करनी पर आज सबन दगड़ मिल बेर खुशी देखिनों ब और तो और आपुनि भाष में बलान सुणी बेर, देखि सबै अचंभित छन, फिर जब शहर शहर गांव गांव में यो कोरोना बीमारी हाल बतै और कसिक वीकी फैक्ट्री ले बंद हेगे मजदूर घर लौट गे और जसिक तासिक तीन चार महीन तो कटिगे। पर अघिल के हॉल के निश्चित नी है सक तब उकैं आपुन इज बाबू भै बैनी याद ऐगे।
गौंन में शायद आजि ले यो परंपरा जिंदा हुनली तबै यो अनजान नानतिन खिमुली थें आम बुले बेर मदद हूँ ऐगे।
शहरन में तो बाते और हैगे। आस पड़ोस तो छोडो घर में ले दादी नानी तो अब विलुप्त प्राणी जस हण लग रई.घर में या तो बेकार सामान जस परिस्थिति ,या घरक काम में मदद गार च्यल-ब्वारिनाक अधीन। अधिकतर आम बड़बाज्यू लोग तो उ म रक अंतिम पडाव में वृद्धाश्रम में जिंदगी काटण हँ मजबर छन।
खिमुलि तो कुछ समयक लिजी ऐ रैछी। आज नानतिनक संस्कार और गौं वालनक प्यार देखि वील याँ रूणक मन बणे हालो।

उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ से साभार
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