
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
पहाड़ ल्ही बेरै
म्यार ले
द्वि फाड़ है रयीं ....
एक त
सिद-सा्द भै
वी लिजी
ना्न-ठुल
पौंण-पछी
त्यो-म्योर
के नि भै ...
पहाड़ जसि
जिन्दगी में ले
सब हरिया-हरीं भै
मगर ...
दुहौर 'कि नि पुछौ
उ रत्तै बटी ब्याव जांणै
"थिकाव 'न"
बदलण मैयी रुनेर भै
जस बा्ज
उसो नाँचनेर ले भै
खाड़ हाली
पिनाऊ चार
क्याप'क-क्याप
देखीनेर भै ....
सोचूँ !
यतु हैयी बाद ले
मनखी भितेर
एक मनखी
"ज्यूँन" रुनेरै भै।
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हिसालु त्वाप जसी
..... तु
किनमड़
नि खैयी कर.....
किनमड़ खै बेरि
जब खित्त पाड़ि
हँसि दिंछी त.....
भात 'क सित जा
दाँत
का्व गिजन है
भ्यार ऐ बेरि
बिजुलि जस क्याप
भैम करै दिनीं....
औड़ाट-घौड़ाट त
के सुँणीन न्हाँ, मगर
को जाँणों...
भतेर जंगल में
कां "पैर" पड़ि जाऔ
और हरिया- हरीं
एक शालु 'क बोट....
आजि
उताँण है जाऔ।
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शब्दार्थ:
द्वि फाड़ - दो भाग,
पौण पछी - मेहमान/आने जाने वाले,
थिकाव' न - कपड़ों को,
खाड़ हाली - जमीन में घुसा हुआ,
पिनाऊ - घुईय्याँ,
क्याप'क-क्याप - कुछ का कुछ
भात'क सित - पके चावल का दाना,
गिज - मसूड़े,
भैम - भ्रम,
औड़ाट घौड़ाट - बादल और बिजली चमकने की आवाज,
पैर - बरसात में बिजली के साथ चट्टानों का खिसकना,
उताँण - ढह जाना
(शब्दार्थ,भाव पर आधारित हैं। जानकार लोग सही अर्थ बताने की कृपा करेंगे।)
Nov 15, 16 2017

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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