के के लिखूं - कुमाऊँनी कविता

के के लिखूं - कुमाऊँनी कविता, kumaoni poem about changing lifestyle of pahari people, kumaoni kavita, kumaoni bhasha ki kavita

के के लिखूं
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रचनाकार: पुष्पा

मि जब पहाड़ क लीजि
लिखण'क सोच्नु
तब तब मि सोचुनु
मि के के लिखूं
त्यर खिली बसन्त
भरी जंगव लिखूं
चौमासा'क गाड़ गधर
हरि भरी सार लिखूं।

हर म्हण त्यार कि रौनक
चेत म्हण चेलियों'क भिटौई लिखूं
चौमासे'कि बेयसी
देवता की जागरी लिखूं
गाड़ गधरा फन
गंव मसाण लिखूं।

मि के के लिखूं
त्यर उदेखि खेत
सुखी नोव, धार लिखूं
सैणीयो क धुर
खेत पाति बात लिखूं
खुटों पड़ी चिर
हाथो का छाव लिखूं।

खांण पीण की बात लिखूं
मडु झुंवर'क बालड़
कहांण, महांण'क बाहर लिखूं
मदुव् रवोट'म सिसुण साग
गधर क घट लिखूं।

मन करूँ
खालि पड़ी पहाड़ कि पीड लिखूं
स्वास्थ्य'क
अनदेखी बात लिखूं
बिन इजाल क
सुरुवे की सैणी
तेजुवे इज की मौत लिखूं।

स्कूल की बात लिखूं
पाटि म तव के झोल
कमेट की दवात लिखूं
अब नानतिना बिन बाज पड़ी
स्कूल व शिक्षा' लिखूं।

एक बात आई लिखूं
म्यर पहाड़'कि पीड़
द्वी बख्त रवोट लीजि
परदेश जाणे की टीस
खनयरि कुणी लिखूं
सरकार'ल नि समझी
अब इंकलाब लिखूं
नई जोश नई वोट
नई सरकार कि बात लिखूं।

पुष्पा, 25-07-2020

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