फाँम में - कुमाऊँनी ग़ज़ल

कुमाऊँनी भाषा में ग़ज़ल, फाँम में, Gazal in Kumaoni Language, Kumaoni Gazal

"फाँम में"

कुमाऊँनी ग़ज़ल
रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी

रात स्वैंणों में देखींछै दिन भरी पट्याई में छै।
  आँखों का अघिल जाँणी तू भरी अंग्वाई में छै।।

   तेरी आँखी की पुतई झप्प- झप - झप झपकनैं।
  मेरी आँखों का सामणि तू हिया की माई में छै।।

 बोल का आँखर सजीवन छ्न पराँणों का लिजिक।
  खित्त मुलमुलू हँसी तेरी जाँणी गुफाई डाई में छै।।

  रसिल मुखड़ी  बाँन तेरी भलि छीप छू नि भुलणीं।
  जून उ पुन्यूँ जसी तू पूरब की ढाई में छै।।

  जनम-जनमों बटि दगड़ तू घ्यू जसि पर्याइ में छै।
  शंत का दमसैंण में छै अशंत की उकाई में छै।।

  दिन रात छै तू फाँम में झिट स्योव में झिट घाम में।
  दुरमुर उज्याव में छै तू चिलकैली परछाई में छै।।
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मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 30-03-2021

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