गौं बटि बुबूकि चिट्ठी ऐरै

कुमाऊँनी कविता-गौं बटि बुबूकि चिट्ठी ऐरै, घरकि चिंता झन करिया।  कैदिनै मौक लागलत यक चक्कर जरूर लगाया।Kumaoni Poem about the message of Grandpa living far in village

गौं बटि बुबूकि चिट्ठी ऐरै
रचनाकार: दुर्गा दत्त जोशी

गौं बटि बुबूकि चिट्ठी ऐरै।
नानतिनो, भ्या बैणियों भाल् है रया।
जां लै छा, जिलै करण लागि रौछा सबै सुखारि रया।
घरकि चिंता झन करिया।
कैदिनै मौक लागलत यक चक्कर जरूर लगाया।

घराक गोल्ज्यू, गाड़क मसाण, धार मेंकि देवि, भुतणिक थान सबै जाग।
तुमरनामक द्यू जगाहा।
सबै द्याप्तन्हैं हाथ जोड़ि हालि।
हे नरैंणां म्यार प्वाथन बचै राखिया।
बस साल् में यक चक्कर जरूर घरैं लग्यै दिया।

मैंकें तुमरि नरै लागि रै।
बाट मैंनि द्येखि न राख।
नतरि यक दिन मैंलै जरूर ऐ जनी।
देवा आब तुमरि आस छ।
मैंकें म्यार नानतिन दिखै दे।

धें कास् है रयी।
कि पत्त आब कदुक दिनक पराण छ बल।
तदुक निर्मोही केहीं भई म्यार नान्।
कदुक साल है गई।
कि पत्त घरक पत्त भुलि गई।

कुमाऊँनी कविता-गौं बटि बुबूकि चिट्ठी ऐरै, घरकि चिंता झन करिया।  कैदिनै मौक लागलत यक चक्कर जरूर लगाया।Kumaoni Poem about the message of Grandpa living far in village

दुर्गा दत्त जोशी, May 2, 2020

दुर्गा दत्त जोशी जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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चित्र साभार

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