आम् इजौक लाड़ - कुमाऊँनी कविता

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-:कुमाऊनी आम् इजौक लाड़:-

लेखिका: अरुण प्रभा पंत

ओ इजा उठ गो छै, नीन ऐछौ भलीकै
हिटपै नाण ध्वैण कर के खैल्हे, दूद पेलै
खाने कन इजा और खा च्यला
क्याप्प जौ तौ के पैर ल्हिरौछै!
अज्यान ऐसै पैरनी सब्बै
जेलै छु पै आब तु के पढ़ै लै कर रहे
भ्यार झन जै बेमारी फैल रै बल भौत्तै
होय मकं पत्त छु, हमार औनलाइन छु
पढ़ै लेखै, जम्मै इमैं भै सब दारोमदार
टैम पर खाण खै ल्हियै पोथा पै
होय होय कतु खां दम्म मोटै गेयूं

-: कुमाऊनी आम् इजैकि डांठ:-
हेराम घाम मुखपन एगो निउठै आय
कतु सित छै कुम्भकरण जौ आय जांलै
हद्द है गे नांण ध्वैण कर ,खा पै बस्स
न पढ़ाय न लेखाय एक डाब जौ खोल
टुक-टुक कर काम नै धाम खाय पी
बम बजाय,घरौक काम के मल्लब नै
कतु बीसी सैकाड़ हुनी पत्तनै खाल्लि
डबल बर्बाद जे हुन्होल अज्यान हो
कौ कड़कड़ानै रूं पिन सुकनै रूं
एक बज्यूण मोबाइल एक तनैरि कुटकुट 
एक हर बखतैक बातचीत
बस इज बाबून थैं बलाणैक फुर्सत नै

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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