
उत्तराखंडाक सामाजिक, आर्थिक हालात
(लेखक: दिनेश भट्ट)
उत्तराखंड राज्य बणि सत्र वर्ष है जाधे है ग्यान पर जाधेतर दूर-दराज गौंपन हालात खराबै छन। पछिल कैं अगर हम चॉनू त अंग्रेजोंक उत्तराखंड में ऊन है पैलि. करीब द्वि सौ साल पैलि पहाड़ि गौं आजाद आर्थिक इकाई थ्या। में राजमा दालकि बीस है जाधे किस्म ध्या। एक यसि स्वतत्र इकाई जो अपणि जरवतकि तमाम चीजोंक उत्पादक थ्या। सूत-कपास, ऊन, गुड, नाज, साग-पात, फल-फूलाक दगाड़, लुवा, तामा का भाना बर्तन, औजार-हथियार ले या बनाई जाँथ्या। अंग्रेजोंक उन बाद यांका ग्रामीण जवान फौज, पुलिस में भर्ति हुन, क्लर्क-बाबू, मास्टर, चपरासि, पटवारि बगैरह बणन लागि। अंग्रेजों ल भौत चालाकी करिबेर यांका बहादुर, कर्मठ लोगों क अपण साम्राज्यक सेवक बणै बेर उपयोग करि।
अंग्रेजों ल शिक्षाक द्वारा अपण तौर-तरिक, खाण-पैरण लै समाज में स्थापित करि दी। देश कि आजादी है पैलि बठे रोजगार, नौकरि, शिक्षाक लिजी ठुल शहरों कि तरफ पलायन होते रौ। भ्यार शहरों में गयी लोगन द्वारा गौ पन अपण परिवाराक पालन-पोषण खिन रुपया मनिआर्डराक रूप में भेजना को प्रचलन शुरू भ्योछ। धीरे-धीरे पलायन तेज होते ग्योछ और गौं का गौं खालि-उजाड़ होते ग्यान। पैलि जा उत्पादक गौं थ्या, जो परम्परागत व्यवसाय, नान-नान कुटीर उद्योग थ्या खतम होते ग्यान। गौंपन, तामा, लुवा को काम, कपास-सूत, ऊन, रेशा-रस्सी बाटनि, लाकड़ाक बर्तन बणूनी, ओढ़-मिस्त्री, दर्जी, काश्तकार, रिंगालाक शिल्पी-डोका-डाला बनेर लोग थ्या, धीरे-धीरे उनार यो परम्परागत शिल्प खतम होते गया।
भ्यार शहरों में रूनेर लोगों द्वारा भेजि डबलन ले एक आर्थिक चलि जाथ्यो। मनिऑर्डरोंक रुपया तमाम अलग-अलग व्यवसाय.............। पहाड़ में राजमा दालैकि बीस है ज्याधे किस्म थ्या। फॉकर, पल्थी, आलू, वगैरह प्रजातियोंक विशेष स्वाद और तासीर छी। आपदा, भूस्खलन हुनॉक वील खेत बगि जाणई। सैकड़ों सालन है जो माट में हुनेर फसलोंल, पुरो परिवार, गौं व इलाका पलि जाथ्यो, जब उन खेतों नैं रया त किसान काँ जाला, के कराला।
देश में काबिल सरकारोंक घोषित लक्ष्य छ कि शहरीकरण तेज होओ, गौंका किसान, मजबूर हवे बेर शहरोंकि तर्प भाजून, ताकि उद्योगों, कारखानों के सस्ता मजूरदार मिलि सकनू। पलायन हनाक वील जां पहाड़ोंक जनसंख्या घटन लागि रैछ, वांई तराईक नगरों व गौंवों कि जनसंख्या बढ़न लागि रैछ। जनसंख्या घटनाक वील यांकि विधानसभा और जिला पंचायत सीट कम हुन लागि र्यान। पिथौरागढ़ जिलाकि विधान सभा सीट कनालीछीना खतम भैछ, आब उसै ब्लॉक में चौसाल (गर्खा) जिला पंचायत सीट खतम है गैछ। सीट कम हुनाक मतलब छ राजनीतिक भागीदारी में कमी, राजनीतिक अधिकारों, आर्थिक बजट में कमी।
केन्द्र तथा राज्य सरकारों बठे जो सालाना बजट ऊंछ, साल खतम हुन तलक कोई-कोई विभाग आद् ले 'खर्च' नैं करि सकन। 'खर्च' करन जसि कि विभागीय कारिन्दोंक जेब खर्च हवे गयो। खर्च करि सकन ठीक नतीर क्वे बात नैं। योजना गौं वालोंकि जर्वताक मुताबिक, ठोस बणून और भलि गुणवत्ता क काम टैम पर पुर करि जाओ। के मतलब नैं भ्यो। आपदा उनै बाद हमार माननीय जनोल अपणि निधि कतुक, कां लगे, के बणा, के उपयोगिता छ उ काम कि, सार्वजनिक हुन चैंछ, अखबारों में ऊन चैछ। जनताक पसीनाकि कमै, मेहनत कि कमै कसिकै, काँ खर्च हुन लागिरैछ, कैकि खल्दि में, बटवा में जान लागिरयान के पत्त नै।

दिनेश भट्ट, चिमस्यानौला, पिथौरागढ़

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