मै-चेली और बौल बुति (भाग-१३)

कुमाऊँनी धारावाहिक कहानी, मै-चेली और बौल बुति, long kumaoni story about struggle of as single mother and her daughter, Kumaoni Bhsha ki Kahani

-:मै-चेली और बौल बुति:-


->गतांक भाग-१२ है अघिल->>

हमरि मनकस फाम है जियादे पाथर जै कठोर हाणनी पहर हमन कं कभै नि भुलीन। बेर बेर वीक टीस मन कं हक्क कर दैं। ऐसि मन कं सतूणी पाम रमा और जिबुलिक ,आपण ब्रा कं ल्हिबेर आय तक मन में जाम् भाय। चंपाक ब्या भली कै देख परखि बेर है गोय पर फिर लै द्वियै शैणी भली कै आपण मन कं थिमथाम नि करि सकणाय। जदिन रमा दिद और जीवा कोटा बै जाणि वाल छि उदिन रत्तै बै द्वियै जणि उदास आपण सामान एकबटै बेर जब स्टेशन पुजिं चंपा और वीक दुल्हौ भूपेश और आम् सास सौरन दगै तो मन में संतोषाक दगै कैं कैं शंका लै छी।

फिर जब जब चंपाक उज्याव मुख देखनेर भ्या तो आत्मसंतोष लै हुनेरै भौय। लगभग चौबीस घंट मांथ द्वियै जणि आपण ड्यार में पुज ग्याय कुंछा। अघिल दिन जीवाल आपण इज रमा दिद थैं अल्माड़ौक कारबार छाड़ि बेर वैं भीमताल हिटणाक लिजि कौय तो रमाल कौय---" कुछेक म्हैण मकं ऐं रूण दे यां कामकरणि छनै छन तब तक मैं त्यार ऐं बदय करूणैकि तजवीज करनूं, एकाद म्यार पछ्याणाक छन यां।
जीवाल कौ --"इजा तस नि करौ, मैं यां ऐगोयै तो वां क्वे नि आलपढ़ून हुं भौत्तै तकलीफ वाले जाग छु और वां फिर उन चेलिन कं को पढ़ाल ?
आब मैं पढ़ाइक कीमत समझ गेयूं, उन चेलिन कं मैं इजा कैसि छाणुं?"
रमा कं पैल्ली तो धक्क जौ लागौ पर फिर उकं जीवाक बातैकि गहराय समझ ऐ।
ऐसिकै फिर दुसार दिन जीवा लै आपण नौकरी में न्है गे। आब रमाल आपण मन कं मजबूत कर बेर वी घर में कुछ भौत्तै दयनीय दाश वाल घरनैकि खोज करण शुरू कर बेर आपण अघिलौक जीवन फिर से यकलै चलूंणैकि तंग्यारी करी। लगभग द्वि म्हैण में रमा ऐस तीन चेलिन कं आपण दगै लै बेर संगीत और 'अ,आ,क,ख' सिखूण लागीं। बीच बीच में जीवा लै उनि रुनेर भै और एक बार चंपा आपण दुल्हौ दगै आपण आम् रमा और इज जीवा दगै भेंट करण हुं एयीं।

एसिकै दिन म्हैण बर्स बित। एक बार जीवाक स्कूल में ठुल अधिकारिनौक जब निरीक्षण भौं तो अचानक द्योक तौहड़ में बाट् जांणि लेकौकै नि रौय तो उ रात सबन कं वैं रूण पड़ौ तो जीवाल जैसि सब प्रबंध करौ आफि सीमित साधनन में खाण पकै बेर खवा और अघिल दिन चपैंण, फिर दोपहरिक खाणैकि व्यवस्था करी उकं देख सबै प्रसन्न भयीं। उनन में एक शिक्षा अधिकारी कं जीवा आपण च्यालाक लिजि सही जीवनसंगिनी लागी तो सब तजवीज कर बेर उ सिद्द वीक इज रमाक घर पुज गोय तालै।

रमा तो जीवाक दुबारा ब्याक पक्ष में छनैछी पर मुख्य निर्णय तो जीवाकै हाथ में भौय। अतः एक दिन रमा आफि अचानक जीवाक ड्यारन पुज गे और बिना लागलपेट पुरि बात बतै वीक उत्तर जाणनहुं वीक मुख चै रै। तब जीवाल जे कौ उ एकदम फरक--"इजा सबनैलै म्योर फैद उठा पर मैं तब पराश्रित छि। आब जब तुम जास गुरु हम मै चेलिन कं मिली तो हमौर दुहौर जन्म है गोय एक किस्मैलि।

आब जब मकं यो अन्यारपट्ट गौंक भटकी मैसन कं बाट् देखूणौक मौक मिल रौ तब मैं सिर्फ आपण सुखाक लिजि यनन कं नि छाड़ सकन्यू अदमजार में,जैसिक तुमुल हमन कं नि छाड़ आपण रिटैर हैयी मांथ। पर यैक यो मल्लब न्हां कि मैं दुबारा ब्याक खिलाफ छुं। मैं आय लै ब्या कर सकनूं अगर क्वे यां म्यार दगै रै बेर म्यार काम में हाथ बटाऔ तो।"

जीवाक बातन में दम छि। और फिर ऐस कुनी कि जीवाल आपण पुर जीवन उ गौक स्त्री शिक्षा में, वांक चेलि बेटिनैकि दाश सुधारण में लगै दे। पछा रमा लै जीवा दगै वैं ऐ गे और रमाक अल्माड़ बिनसराक घरैकि विरासत उ तीन चेलिनैल संभाली जनन कं रमाल बाट् देखा।
एक दि जो रमाल जगा वील फिर उज्याव होते रौ।
इति--

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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