पैल्लियोक जौ खाण आब कां

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-:पैल्लियोक जौ खाण आब कां:-

लेखिका: अरुण प्रभा पंत

जतार या चाक आब कां छु चौल
आब कैंकैं फरालौक पिसनी सामान
उलै मिलने रै भै बजार में अज्यान
पैल्ली चाकौक पिसी कं छाणबेर
छाडंनी में बची मोट पिसुऔक हलु
घ्यु में तरबरान, चुलबुल उ अमिर्त्त
गाइक छां में बणयी काकौड़ौक रैत
भुटी जिरधणी वाल घौल हाली नय
आलुनौक भर्त के भुलणी चीज भैयी
सिमसिम चुलाकआग मेंपाकी गुटुक
लुऐक कढ़ै में पाकि रस दगै भात काप,
टिमाटरौक रस में हाली बाड़ौक धणि
भुटी घराक मिठ च्यूड़न में आंखोड़
झटपट पकयी पालंगौक तिनड़ि कं
गरम र् वाटमें धर खाणी मैंल कभै लै
निगिण आपण र्वाटनऔर खाणकं
जिरजंबू, हींगौक धुंगार हमनकं खाण हुं न्यूंत जौ दिनेर भौय, 
हम अल्बलानै, इजाक मुखतिर ठाड़ हैजांछी
गदुआक टुकनौक साग दगै कैल गिण भाताक डेल
पालंग जवाण, आल-चौलाय पकौडि
नि भुलीन, उनन कं और गरम रौटि, हलु खाण में
हम सबनौक जिबौड़ चिसी भौय भौत्तै
कणिकनैक दड़बड़ि खीर, थापचिनिक भात,
चौमास में मिलाई जुलायी साग,चावलाक छोलि
सब मकं निस्वासी द्युं, आजाक प्रसिद्ध खर्चिल खाणन में 
जेब तो हल्की है जैं पर मन भारि है जानेरै भौय।
उ बखत हमार योयी आनंदाक पल भाय
नि दिखावा न कैकी हौसमें हम भयां
ऐसिकै ठुल है गेयां, आजलै नि भुलां
उ घर उखाण उदिन उ बखत उ खौंताव।
मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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