नानतिना लीजी कतु काम कर्यो बाबै ले

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नानतिना लीजी कतु काम  कर्यो बाबै ले 

रचनाकार: विजय लक्ष्मी मुरारी

नानतिना लीजी कतु काम  कर्यो बाबै ले।
स्कूलै फीस लत्ता कापड़ा दवै पानी सबै करि
कसर वहां लै नै छोड़ि जो निकाल्यो खापै लै।

पूरा दिन भ्यार रूंछि सांझ पढ़ि घर ऊंछि,
तब लै सिकन नै रूछि मुंख में उनर,
द्वी रौटा प्रेम ले खांछि एकै सागै ले।

क्वे ले कमी नि छोड़ि हमरी तरक्की में,
हमर हाथ किताब दी खुद 
 लिजांछ्या ग्यूं मडुवा थैला चक्की में,
उधड़िया कपाड़ा सिलछ्या रजाई धागै ले।

कभै पघार चिन्यो कभै आंगन पालि ऊंछि,
कभै लकाड़ा फाड़ि,कभै धान मांड़ि ऊंछि,
खालि बख्त उपला पाथ्या गोबरा थापै ले।

ना समझ तो हमले थ्यां पर समय दुसरो थ्यो,
कभै कल्लानो नै पड्यो उनूं ले, 
हम त डरि जांछ्यां उनर मुखा भापै ले।

जबाना संग आब सोच बदली गै,
पिज्जा बर्गर में ले मुख निचोड़निन नानतिना आज-कल क,
हम त कतु खुस है जांछ्यां पालका कापै ले।

बुढि अकाल ईजा बाबा दुख दिया झन,
उन संग जोड़ि राख्या तुम अपनो मन,
सब विपदा टलि जालि
हर मंजिल मिलि ज्याली
ईजा बोज्यू जापै ले।

विजयलक्ष्मी मुरारी-वेब ग्रीन-मुरादाबाद


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