गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु (भाग-११)

कुमाऊँनी नाटक, गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु, Kumaoni Play written by Arun Prabha Pant, Kumaoni language Play by Arun Prabha Pant, Play in Kumaoni

-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-

कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)

->गतांक भाग-१० बै अघिल->>

अंक पच्चीस-

नरैण - कस लागि जाग?             
पद्मा - वां क्वे छै न्हां।
नरैण - तबै तौ सस्ती छू जाग, नंतर इतु फरांग ठुल जाग यो शहर में मिलनी!  पर आय तक  हमार अगल-बगलाक सबै पिलौट बेचि गेयीं हमार पिलौटाक सामुणि और बगल में सड़क बणैलि बल, तबै कुछ महंगि छु औरन हैबेर जियादे फर्क न्हां।
नरैण - मकं बतै दियै जे तेर मन में छु, वी हिसाबैल इंतजाम करण होल, भोल पोरूं जांलै बतै लियै।
पद्मा - भोल पोरू किलै, अल्लै बतूंणयूं ल्हिण तौ भई, बस तुम जरा तुम आपण हाथ कस राखिया, "जे देख, ते ल्हि वाल" आदत सुधारण पड़ैलि।
नरैण - तु मकं फाम कराते रै मैं असल मैं आपण नानतिननौक मुख उदास नि देख सकनूं,के करूं?
पद्मा - हम यो सब उनारै लिजि तो करणैयां, आपण दगाड़ जे के लि जूंल।
नरैण - तु जीती भागी मैं हार गयूं तुकं खुट्टी सलाम।
नरैणैल हस बेर कौ तो पद्मा मुस्कुराण लागि।

सुनीता - बाबू बाबू उ देखौ चांट
नरैण - तू तौ चांट खानि न्हांतै, तुकों झौई लागौल।
सुनीता - और तौ खाल बाबू, तुम लै खाला फिर इज कं घर जै बेर आराम मिलौल।
नरैण - भौत्तै अकलदार है गे यो मेरि मोती (नरैण कभै कभै आपण चेलिन कं हीरा, माणिक, मोती,लै कुनै रूंछी) रीता हीरा भै, नीता माणिक,और सुनीता मोती।
पद्मा - खवै दियौ एक भल कामैल ऐ रैयां। अरे रुकौ- उ देखौ हनुमान ज्यूक मंदिर पैल्ली वां हाथ जोड़ ल्हिनु, परसाद चढ़ूनू फिर चांट खूंल।
नरैण - त्यार जतु अकलदार मैं नि भयूं, सांच्चि कुणंयु।
पद्मा - तुमन कं शीप छु बलाणौक पर मैं तुमार बार में जेजे कूण चांनू, कूण में मकं सरम लागैं।
नरैण - आज तु बतयी दे के कूण चांछै, मैलै तो, शुणु।
पद्मा - केनै  धन भाग म्यार जो तुमार आंचौव लाग्यूं और के नै।
नरैणैल पद्माकं पछिल बै पकड़ बेर वीक कान हल्क बै दबै दे।
पद्मा - छाड़ौ क्वे देखौल नानतिन आब ठुल है गेयीं।

अंक छब्बीस-

मंदिराक पास में  कुछ बैग जा मैस साड़ि पैर बेर ताइ बजै बेर नांचणाय।  आय तक पद्माल और नानतिननैल तस नि देखि भौय, तो पद्माल सानैल पुछौ- तो के हुणौ?
नरैण - तौ हिजाड़ छन, जब कैका वां  क्वे खुस्सीक काम भयौ, तौ नाच गीद करनी और फिर डबल लुकुड़ और खाणी सामान लिजानी और बदाव में खूब आसिरबाद दिनी, तनन कं सब खुस्सि कर राखनी, यां सब तनरि नाराजी कं भौत खराब समझनी।
पद्मा - ओइजा मेरी तैसी तौ सबन कं पत्त चल जाल के तौं हिजाड़ छन, बड़ि सरमेक बात नि भयी!
नरैण - आब के बतूं पै मैं, मैल लै यैं ऐ बेर देखौ।  हमार पहाड़ पन नि दिखीन हिजाड़ नै।
पद्मा - तुमन कं बतूं उ जो भागुलि बुब छन नै उनार दुल्हौ तसै छिबल मकं सासुल बताछी।
नरैण - ओहो तसौ शिबौ शिब शिब

क्रमशः अघिल भाग-१२->>

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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