कुमाऊँनी ग़ज़ल - कसिक

कुमाऊँनी ग़ज़ल-आँखरों में सारी बात कौंनू कसिक। मि सारै दिन सारी रात रौंनूँ कसिक।। Kumauni Gazal "Kasik"

"कसिक"

कुमाऊँनी भाषा में ग़ज़ल
रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी
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आँखरों में सारी बात कौंनू कसिक।
मि सारै दिन सारी रात रौंनूँ कसिक।।

तेरी माया का फेरों पराँण रिटौं।
य सुरों कैं अघिल कैं बट्यौंनूँ कसिक।।

फाँम का ग्वैर छ्न यौं आँखों का अघिल।
नीन गैरी पट्याई सितौंनूँ कसिक।।

बिना धुँ बिनैं राप छु विरह की निगुर।
आग हि सिलकनीं क निमौंनूँ कसिक।

जुग जुगों बटि लगन य अमर प्रीत की।
तेरी-मेरी कहानी बतौंनूँ कसिक।।

भाग आपणै आपण संग आपणैं करम।
कैकैं दोष दिबेर दोछ्यौंनूँ कसिक।।

भाव छ्न गैर छलकन सुवा के बतौं।
य हिया का उमाव लुकौंनूँ कसिक।।

भौतै छन क्वीड़ मन में लुकी 'मोहना'।
तुहैं बिन कई दुःख घटौंनूँ कसिक।।

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मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 03-11-2020

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