
सैणिनक घर
लेखिका-ज्योतिर्मयी पंत
हिरुली कैंज आपुण गोँ रूंण हु वापिस ऐगे-यो खबर सुणते ही मंके उनर दगड़ भेंट करण हूँ यस मन हैगे की पंख जै हुना त अल्ले उडि बेर वां पुजि ज्यान्यु। पर यस नि है संकछी। आब मंके के करू के नि करू जस हैगे। आपुणी घर गिरस्ती काम काज यसी एकाएक कसी छोड़ी बेर जई के मन कें समझै। नन्तिनाक बाबुल जै मेर मने की बात समझि बेर कै-`जा पै जै उंछी द्वी चार दिन, जै आ पै हम याँ जसिक तसिक काम कर ल्ह्यूल।
मंके और के चैंछी? हिरुली कैंज उसिक तो उम्र में हमन है ठुली भै पर नन्छिना बटी कै उनर साथ भौते अपनत्व छि आपुणी दोस्त जस लागनेर भै। तब मै एक हप्तक लिजी वाँ गयु। कतुक वर्षनक बाद आज मै अपुण मैत जान्यु के भौते ख़ुशी भै। खुट भीं में नि पड्नौछी कतुक लोगन कै भेटुल? के के बात होलिन?कतुक क्वीड़ क्वेंड ह्वाल? को काँ छू, के करणों, कस छू? मन में एतु उथल-पुथल है गे पैलिए मिल बेर के होल जाणी?
इज-बाबु जब बटी दाज्यू दगड शहर न्हैगे याँ उणों क मौके नि लाग .आब मै सिद्द बस स्टैंड बटी कैजाक घर पुज्यु। कैज ल तो देखते ही ख़ुशी मारि अंग्वाल हाली बेर, आंखन बटी अश्रु धारा ल नवे बेर मेर स्वागत करो। कतुके देर तक क्वे नि बलाण. फिर भीतर जै बेर चहा पाणी पी बेर हालचाल पूछन क टाइम मिल
उभत। कैंज एकली छि मेल सोचो और लोग भैर जै रै हुनाल। पर ब्याव जाने लै जब क्वे नि अया तब मैल पुछ- `कैंजा और को -को ए रई? काँ छन और जाणी क्वे नि दिखिने इथके उथके जै रई के?.....
कैंज थोड़ी देर चुप्प जै है गे, मेरी बात सुणि लै या नै? फिर थोड़ी देर देर में कूण लागी `-चेली में एकले ए रयूद्वी , चार दिन पैली मेर च्यौलक ड्राइवर या पुजेगो, घरेक साफ़ सफाई कर गो। राशन पाणी क इंतजाम कर गो मेर .... आब मै या एकले आपुणी घर गिरस्ती जुटूल पै, जब तक मकें दुसर घर जानौक मौक नि मिलन। कैजेकि बात म्यार समझ में नि ए, फिर पुछो-किले कैजा यो के कुणेछि? आब यो उम्र में च्याल, चेली, जवें, ब्वारी, नाती प्वाथ सबै छन, भरी पूरी परवार छू तुमार, फिर यो एकले रूणों दुसर घरेक बात के छू के पल्ल नि पड़ हो कैजा के बात हेरे? दुसर नई मकान कां छू?
कैंज बुलाणी` चेली ठीके कुणेछि तू-मकान मकाने भै मकान तो घर तबे बननि जब उमे मैंस रूनी। नंतर मकाने भै,.पर के पुछ्न्छी मेर घरे बात? काँक घर?कैक घर??
नान्छिना बै इज-बाबू दगड़ रयाँ, उ हमर मैत छि घर नै, हम पर्ये अमानत पर्ये धन भयां। रोज रत्ते ब्याल यो इ मन्त्र सुणन भै-सरास जली आपुण घर जाली। आपुन मन कि वाई पूरी करिए शान शौकत सबे। ब्या हुन तक आपुण घर कि कल्पना में मगन है रूनी चेली, फिर ब्या क बाद सरास में आपुण घर बनून में आपुनी जान कुर्बान कर दिनी। नाम मात्रक घर हु उ, आपुण के ले नै, घरक काम काज सारणी ब्वारी बना। के चीज़ हो, इच्छा हो मने की मने में धारण भै, हमर आपुन के नि भै। फिर नानतिन है गई उनर पालन पोषण में दिन रात कथां हु गयी के पत्त नि लाग। फिर उ ले ठुल है बेर पढ़न लेखन-नौकरी चाकरी हु शहरन हूँ न्हैगे, उ लोग। वांके हैगे गों कि जिन्दगी आब उनर बस में नि रेगे कुणी उ आब. वाँ को रे सको उतू कष्टं में- यस कुनेर है गयी आब। सबै आपन कार बार में व्यस्त हैगे। पैलि तो उन जाण बन्दे भै, फिर जब नानतिन वाल भै तब हमरि याद ऐ।
आब आया नौकरानी चैन हैगे पर उ रूपे पैंस ल्हि बेर काम करनी फिर ली भरोस लायक नि भै टाइम बे टाइम छुट्टी मार दिनी। बाल बच्च घर में ऐकले रुन्तुन्गान है रूनी। तबै चाल ब्वारी हमन कै शहर लिग़े -इज घर संभाल ल्हेली नान तिन पाललि। बाबु बाज़ार क काम कराल सौद पत्त ल्याल नाती प्वाथन कै स्कूल पुजाल वापिस ल्याल, पार्क में घुमै ल्याल।
च्योल बुलानो `इजा आब या ऐकले के करंछा? दगडे हिटो सब दगड़ रूल हमरि तो ख़ुशी मारि होशे जै उडि गे। कटुक संस्कारी पुत्र छू? अहो भाग्य हमार!
जस वील कै हमल उस कर, शहर में वीक शानो शौकत देखि हमर आँख खुलिये जै रेगे। पर धीरे धीरे यो बात म्यार समझ में ऐ गे कि यो घर लै म्योर न्हा। छ्यल ब्वारी नक् ब्यवहार बिल्कुले अजनवी जस हैगे नानतिन लै ठुल ह बेर इथके उथके हुन लागी बुड बाडिन दगड़ के करछी? फिर यो त्यार भिन्ज्यु लै परलोक हु न्हैगे। अब घर में मेर के अस्तित्व के नि नि रे एक बेकार पुराण सामान जस मै कटी कै ले पटकी है रयू।
सारी जिन्दगी यो सोचन मै बीते दी कि कदिने अपुन घर होलो के जै करूँ ल कतु निहाल हून. पर कां?
अब मके यो यकीन है गो की असल में सैनिनक घर हुने न्हा, तू इ बता हुन्छे कई? कैजे की बात सुणि बेर मै ले सोच में पड़ी गयु, फिर कैंज कूँड़ लागि-हम लोग सारी जिन्दगी येक घर वीक घर कई आपुण समझते रे जानू पर यो बात सांचि नि हुनि। ये के लिजी वा परिवार क बीच में एकले गुमशुदा रून है भल तो योई छू कि थोड़ी दिन जो बाकि छन शांति क साथ रे सकूँ। हालाकि उ लोग यो ज़मीन और घर लै बेचीं-बाचि बेर शहर में कोठी बनून चाहनी। तबै मै तब तक यां छु जब तक भगवान आपुण घर नि लिजान।
आब उ घर कस होल के जाँनी? उ लै मेर घर सदा हु होलो या नै फिर योई धरती पर ऊंड पडल?
तब मै यो सोचन लाग्यु कैजकि बात लै ठीक छू।
मकान कै तो घर में रूणी वाल लोग घर बणे दिनी घरवाली घर संसार बणों पर घरवालिनक-सैणिनक घर काँ हू?
कोई बताओ धें??
ज्योतिर्मयी पंत, 17-08-2018

फेसबुक ग्रुप "कुमाउनी शब्द-संपदा" से साभार
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