बेखौप हैगीं दुष्कर्मी

बेखौप हैगीं दुष्कर्मी-कुमाऊँनी लेख, article about woman molestation by criminals, mahilaon ke sath dishkarm par kumaoni lekh

बेखौप हैगीं दुष्कर्मी

रचनाकार : पूरन चन्द्र काण्डपाल

दिल्ली बै चिट्ठी ऐरै 
कुर्मांचल अखबार अल्माड़ 9 अगस्त 2021

दिल्ली में ०२ अगस्त २०२१ हुणि एक नौ वर्ष कि च्येलिकि चार दुष्कर्मियोल दुष्कर्म करि बेर हत्या कर दी और जल्दीबाजी में लाश लै जलै दी। आरोपित गिरफ्तार है गईं। हमर समाज में नरपिसाचों कि संख्या दिनोंदिन बढ़नै जार। उनकै सजा या कानून क डर हैति। नानि गुड़िया जसि भी बटि बुढ़ी स्यैणि तक इनरि करतूतक शिकार बनैं रई। बलात्कारक रोजाना नई कांडों ल हैवानियत लै शर्मसार हैगे। रात छोड़ो दिन में लै स्वैणि-जात सुरक्षित हैंति। 

दुष्कर्मी बेखौप घुमें रई। यूं बहशियों क आपण क्वे नात-रिश्त नि हुन। यूं नरपिसाच देखण में आम मैंसों जास देखिंनी जो आपण लोगोंक बीच में लै हुनी पर इनरि पछ्याण करण भौत मुश्किल हिंछ। बलात्कारक मर्ज नरपिसाचों कि हैवानियत ग्रस्त लाइलाज बीमारी छ तबै त यूं एक छोटि गुड़ी जसि भी बटि अस्सी वर्ष कि बुढ़िय तक कैं आपण शिकार बनै दिनी।

आज हम सद्म में छ्यूं, हम दुखित छ्यूं, हम डर ल काप॑ रयूं क्यले कि हमार इर्द-गिर्द रोज बलात्कार कि घृणित घटना होते जा रई जनूं में दस घटनाओं में बै केवल एक घटना कि रिपोट पुलिस तक पुजीं। समाज विज्ञानियोंक मानण छ कि ९०% रेप केस पुलिस अविश्सनियता, न्याय में देरी और सामाजिक सोच (सोसियल स्टिग्मा) क कारण चुपचाप घुटन में छटपटानै हरै जानी। देश के २००५ क दिल्ली गेट रेप काण्ड, २०१० क दिल्ली धौलाकुआँ दुष्कर्म केस, २०१२ क दिल्ली निर्भया हैवानियत काण्ड, य बीच अणगणत रेप कांडों और २९ जुलाई २०१६ क बुलंदशहर हाइवे रेप-लूट काण्ड ल और मई २०१७ क उन्नाव रेप कांड ल देश कैं दहलै बेर घरि दे। उन्नाव रेप कांड पर १ अगस्त २०१९ हुणि सर्वोच्च न्यायालयक दखलक बाद रोजाना सुनवाई दिल्ली में ह्वलि।

दिनोंदिन बढ़णी रेप केसों क मध्यनजर पुलिस या कानून कि तरफ देखि बेर दुःख और निराशा हिंछ। बताई जारौ कि २९ जुलाई २०१६ कि रात जो हाइवे पर य घृणित कुकृत्य हौछ उ रात पुलिस रजिस्टर में उ क्षेत्र में छै पीसीआर वाहन ड्यूटी पर छी। अगर यूं वाहन ड्यूटी पर हुना तो यसि जघन्य बारदात नि हुनि।

नरपिसाचों के पुलिस क रवइय और अकर्मण्यता क पत्त हुंछ तबै ऊँ बेडर है बेर यस संगीन अपराध करनीं। पत्त नै य हमरि कुम्भकरणी नींन में स्येती पुलिस कब जागलि? चाहे ज्ये लै कारण हो हमार देश में न्याय में देरी लै एक अभिशाप छ। निर्भया ल २९ दिसंबर २०१२ हुणि तड़पि-तड़पि बेर दम तोड़ दे पर वीकि आत्मा कि आवाज आज लै हमार कानों में गूंजी, मानो उ हy हैं पूछे है, "कभणि मिललि ऊँ दरिंदों मैं फांसि ? कभणि मिलल मीकै न्याय ?" ७ वर्ष बाद ऊं चार दरिंदों क फांसी हैछ। 

बलात्कार कि शिकार स्यैणि-जात क असहनीय शारीरिक और मानसिक पीड़ है मुक्ति मिलण भौत कठिन छ। यै है लै ठूल छ सामाजिक पीड़क दंश। हमार समाज में क्वे लै स्यैणि या नानि दगै यसि घटना हुण पर 'इज्जत लुटिगे' कै दिनी जो भौत गलत बात छ और शर्मनाक छ। य सामाजिक दंश कि पीड़ यतू भयानक और अकल्पनीय छ कि कएक पीड़ित त आपणी कपोघात (आत्म-हत्या) तक कर ल्हीनी। य ठीक बात हैति। यस नि हुण चैन। य समाज क लिजी भौत शर्म कि बात छ। पीड़ितक यै में के लै दोष नि हय फिर उ आपूं कैं सजा किलै द्यो? अगर उ टैम पर उ य दंश क सम है उबरि जो तो उ आत्म-हत्या है बचि सकीं। उ बखत उकै सामाजिक, डाक्टरी और मनोवैज्ञानिक उपचार कि भौत ज्यादै जरवत हिंछ।

दुष्कर्म पीड़िता क य सोचि बेर हिम्मत बादण पड़लि कि उ आपूं के लिजी सजा द्यो? वील त क्वे कसूर नि कर और न वीक के दोष। सिर्फ स्वैणि-जात हुणक कारण वीक शिकार हौछ। उकै खुद आपूं मैं समझूण पड़ल कि उ एक नरपिसाच रूपी भेड़िये कि शिकार बनीं। उकै आपणि पीड़ के सहन करने, टुटि मनोबल कैं दुबार जगण पड़ल और नरपिसाचों क सजा दिलूण में कानून कि मदद करण पड़लि जो बिना वीक सहयोग दिए संभव नि है सका। उसी लै जंगली जानवरों द्वारा बुकाई जाण पर हम इलाजै करनू। हादसा समझि बेर य घटना कैं भुलणक दगाड़ यूं भेड़ियोंक आक्रमण है बचणक हुनर लै आब हरेक स्वैणि मैं सिखण पड़ल और हर कदम पर आपणि चौकसी खुद करण पड़लि।

बलात्कारियों के जल्दि है जल्दि कठोर दंड मिलो, य पीड़ित कि पीड़ के कम करण में एक मलम क काम करल। आब टैम ऐगो जब समाज क बुजर्गों, बुद्धिजीवियों, धर्म-गुरुओं, पत्रकार-लेखकों, सामाजिक चिंतकों और महिला संगठनों के जोर-शोर ल य कौण पड़ल कि यै हुणि 'इज्जत लुटिगे' या 'इज्जत तार तार हैगे' जसि बात नि समझी जो और नि कई जो। यूं शब्दों है मीडिया-टी वी चैनलों क लै परहेज करण पड़ल ताकि पीड़ और निराशा में डुबी हुई पीड़ित के ज्यौन रौणक बाट् मिलि सको।

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी, दिल्ली

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