
आमै’कि मंसा
लेखिका: रेखा उप्रेती
नब्बे बरसैकि उमर खै बेर पिछाड़ि हप्त बड़बाज्यु परलोक सिधारि गईं। जैल लै सुणि, झट्ट ऐ पुजिं, लंब-चौड़ परवार, इस्ट-मित्र..., फिर उणि जाणियाँ’क हिलधार...। आम्-बड़बाज्यु कं दिल्ली बसि लै मस्त टैम है गो, फिर लै पहाड़ बटि उनार नान भै-बैणि, भद्या, भाण्ज, भतिजी सब्ब एकबटि रैइं। सूतक’क घर भौय, फिर लै माहौल कौतिक’क जस है रौ। तलि रिस्या में इकोई खाणियाँ हूँणि अलग चुल लागि रै। पै दुसर मंजिल में ऊणि जाणियाँ हुँ चहा और खाण-पिण’क अलग इंतजाम छु।
ब्यावै बखत ... आम् भिंपन बिछाई दिसाण में खुट तार्-तार् करि, दिवाल में लधार लगै बैठि रै...। नानि आम्, जेड्जा और ठुलि बु उत्ति भै बेर आपण सुख-दुखां में लागि रीं।
“आमा! तेरि बड़बाज्यु दगै भेंट कसि भै?” मी खिचरोइ करहूँ पूछण्यु ...
“दै!! तदु याद ककैं छु? उ जमान में नानछिना बेव्यै दिनेर भाय... क्याप भौय इजा ...”
“फिर लै! सबसे पुराणि याद... के त हुनैली...” मी आम् क हात मसारि बे कूण्यूँ ...
आम्’क मुख में कदुकै भाव रींगण भैगीं ... यस लागण रौ आम् बड़बाज्यु कं ढूँढंण् हुँ आपण पुराण दिनन में न्है गे...।
“ दुरगुण फेरि बे त्यार बड़बाज्यु दगै सौरास हूँ बाट लागि रौछि च्याला! उ दिनां पैदल जानेर भाय, मीं नानि-नानि भयुं, के अक्कल जै के भई ...”
बड़बायज्यु’कि फ्रेम कराई फोटू कं चै रै आम्... जाणि उनारै पिछाड़ि बाट् लागि रै...। पै जै कूँण लागि... “आब तौ तs खमाsखम अघिल कैं हिट दि, मी रुन-रुनै पिछाड़ी लागि भौय..., मीं कं तनु देखि बे येसि रीस आई भै आब के बतूं....!
द्वारहाटै बजार में पूज त मीं कं एक पुड़ि में मिट्ठे दि और आपुं दुकान में जै बेर चहा पिहूँ बैठ ग्याय…, मीं कं त लागि भै औरीs खाsर...। मील उ पुड़ी त भूड़ पन खीति दि..., मन-मनै सोचणय - ऐलs यौ मैस मर जा छियों त कदु भल हुँ छी ... मी सिद्द आपण घर हुँ भाजि जाँ छी..।”
.. ...
“पै आमाs तेरि मंसा पूरि भई कि ना ... !!” द्वारहाट’क बजार बै मैत जाण हुँ बटि रैय आम् कं लौटै ल्यूहूँ मी पुछण्यूँ ..
“कां बटि!!.. तौ आब जबे मरणाय ...”
रेखा उप्रेती, 18-02-2021
0 टिप्पणियाँ