शहर बटी पहाड़ हुं - कुमाऊँनी लेख

शहर बटी पहाड़ हुं - कुमाऊँनी लेख,shahar se pahad jane ka kumaoni kissa,visit from plains to hills in kumaoni

शहर बटी पहाड़ हुं 

लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली'

जब हम लोग शहर बटी पहाड जानू तो जसै हल्द्वाणि बटी अघिल बढनू तो एक नई उर्जा क संचार हुण बैठ जां।  ध्यान दिणी बात यो छ कि जब हम लम्ब सफर करिबेर उनू और थकावट हैरूं फिर ले जसै काठगोदाम पार करनू हमन यस लागौं कि आपुण देली में पुजि गेया और बस भीतर पुजणी वाल छियां।  एक बात और छ जब हम मैदान बटी पहाड जानू तो हल्द्वाणि तक ट्रेन या भल बस गाडि न में सफर करिबेर उनू।  लेकिन हल्द्वाणि बटी मलिके सफर बहुत कठिन हैजां,  केमू क गाडि न में सीट न में जाग कम हुणा वीलि घुन सीद नि करीन।  

रोडवेज छन लेकिन कम भै लेकिन वीक सीट केमु हैबेर जरा ठीक भै और मेर व्यक्तिगत अनुभव नानि गाडि नाक बार में ले के ठीक नहां।  वां ले कई ड्राइवर रफ चलूलनन और कोचाकोच अलग भै।  और फिर ठुल गाडि न में ज्यादे लोग हुणा वीलि एक अलगै माहौल बण जां।  कुमाऊ क अलग अलग जागा क लोग, सबनक बुलाण और शैली अलग।  अलग अलग उमराक लोग, हर बखत एक अलग माहौल बणते रूं और सफर क कष्ट भुली जां।
 
जब हम लोग मैदान में हुनू तो हमरि सोच एक अलगै है रूं, लेकिन जसै पहाड में प्रवेश करो तो हमर दिमाग और सोच क मोड चेन्ज हैजां।  क्वे कमी वेशी ले भै तो हम सोचनू क्वे बात नै, हम पहाडि आदिम भयां, कस कस झेली भै। द्वि चार घन्टै की बात भै, कटी जाल सफर।  फिर घर पुजणकि खुशी ले भै, खुशी में छोटि मोटि चीज आदिन अणदेखां कर दीं।  

लेकिन एक बात और छ, जब हम पहाड उज्याणि जानू तब हमरि मनोदशा दुसरि हूं।  हम भवालि, गरमपाणि, ताकुल या काठगोदाम पुजण पर अलगै लागौं।  एक उमंग हूं जब वापसी करण भै यो एक एक स्टेशन आते रूनी हमन नराई लागते रूं।  यस लागौं हम आपुण परिवाराक या मित्र लोगन छैं विदा ल्हिणयां।  हल्द्वाणि में वापसी में पुजबेर तो यस लागौं कि हम मैत बटी सौरास पुजि गेयां।

पहाड में जब हम जानू तो हल्द्वाणि बटी मली दोगांव बटी चाहा नाश्ता खाणक होटल शुरु है जानन और फिर हमार घर पुजण तक लगभग हर जाग हुनन(मी हल्द्वानी बागेश्वर मार्ग क जिकर करनयू। लेकिन और रूट ले लगभग यसै भाय)।  दोगांव, भवाली गरमपानी, खैरना, छडा, लोधिया, फिर अलमाड, ताकुला, बसौली या कोसी गरुड कौसानी, यो जागन आल चाण, रैत, पकौडी मिल जाल।

पहाडक सफर और खोर रिंगाई लागि रूं, पेट पणीं रूं, कई बार तो के ले मुख में धरण जसि नि लागि रूनि।  उल्टी लि अलगै बिडौव है रूनी, फिर ले हमन गाडि रुकणक इन्तजार हूं।  हम उतरबेर एक दुसराक देखा देखी.. हम ले कूनू - लगाना दाज्यू एक प्लेट .. (प्लेन क भाइसाहब शब्द हमर खाप बटी गायब हैजां)।  अब कि लगूण छ उ दुकानदार पर निर्भर भै, चना पकौडी लगाउ या रायता पकौडी या आलू चना।  आब  खाण जसि तो सब चीज लागि रूनेर भै, हमर जवाब होल .. चना पकौडी लगा दो।  

आब दुकान दार पुछौल, रायता भी मार दूं..!  बस यस सुणबेर दिल खुश.., हम  होय होय कैबेर उ रैत आल चाण वगैरह खूण बैठ जूल।  उ चर पर सवाद अलगै उ जिबडी में, खैबेर सन्तोष हूं।  फिर हम आपु  आप छै कून.., खै हालौ आब उल्टी ले होली तो देखीनी रौलि।  वी बाद एक चाहा ले चलनेरे भै।  पहाडि आदिम क तो चहा मुख शुद्धि भै या यो कै सकछा कि जीवन की आघारभूत आवश्यकता।  यो खाणकि प्रक्रिया लगभग हर स्टेशन पर हुनेर भे।  उखावते रओ खाते रओ, किलै कि हम यो स्वाद कें आपुण दगाट ल्हिजाणकि कोशिश करनू, शहर जैबेर यो कां मिलौल।
  
गाडी क सफर में ले जो आदिम मिलनन उनार दहाड ले एक आत्मीयता बण जां।  हल्द्वाणि बटी जब चलला तो सब जागाग ह्वाल और भाषाई विविधता, जसै जसे चलते जाला तुमर जिल्लक, इलाकाक, तुमार गौं क लोग मिलते रौल, हमन एक अलगै संतोष मिलते रूं.. और घर जाण या वापसी में अलमाड लोधिया या बागेश्वर बटी बाल मिठाई जरूर खरीदण भै और खरीदण बखत जरा - टेस्ट कराना तो दाज्यु ..!
शहर बटी पहाड़ हुं - कुमाऊँनी लेख,shahar se pahad jane ka kumaoni kissa,visit from plains to hills in kumaoni

ताकुला में खाण क टैम पर - एक डाईट साठ या सत्तर में (आजकल ) जमें रोट, दाल, टपकी साग, झोली और प्याज सलाद और मोट चावल।  लेकिन यकीन मानो उ ले भलै लागौं।  किलै कि उमें हमर पहाड क प्यार और अपुड्याट चिताई और खिलूणी वाल जब.. दाज्यू .. रोटी, दाज्यू भात, कूं तो यस लागौं होटल में ना कति कैके घर में खाणयां।

प्रसंगवश जिकर करनयूं - ताकुल में एक आमा क होटल छी, आम कूनेर भै - ईजा कि चें.. रोट।   एक आजि खाई जाल, थ्वाडै भात लूं कि, अरे क्वे दाल दिओ यां।  आम हर ग्राहक दगाड एक रिशत बणै ल्हिनेर भै।  एक बार जब आम कें पत्त लाग कि मैं खान्तोईक छ्यूं, आमलि मेछे पन्तज्यू क्वे चेलि बताया!  मेर च्यालै तें कौछी।  और जाण बखत आम आशीष ले दिनेर भै.. ईजा तुम जां जाणौछा तुमर भल हैजौ।  तुमर परसाद मी ले खाणयूं, जल्दी आया पोथी ..।
 
यस हमार पहाडनै में देखी सकी, हालाकि आब कुछ खानपान बदली गो।  चौमीन मोमो ऐगो, कुॆछ दुकानदार व्यावसायिक ले हैगेईन।  पर कूनन नैं उजड गयी तो फिर भी दिल्ली..!  पहाड तो पहाड ही हुवा और हर पहाडी भितर बटी एकनसे जस ..।

विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार), 12-06-2021
M-9411371839
विनोद पंत 'खन्तोली' जी के  फ़ेसबुक वॉल से साभार
फोटो सोर्स: गूगल 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ