स्वर्ग बटि बौज्यूक आगमन

स्वर्ग बटि बौज्यूक आगमन-कुमाऊँनी कविता,kuaoni poem about old age life, interaction with late parents

स्वर्ग बटि बौज्यूक आगमन 

(रचनाकार: उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम")
 दगड़ियो सुप्रभात 
लियो पै प्रस्तुत छू आजैकि कविता

आज रत्ति रत्ति ब्यांण, स्वर्ग बटि बौज्यू ऐ पड़ीं।
मैल भैर हूँ चा, द्वार खोल बेर मणीं।
देखि जब भैर ठाड़ि, उनर जसि अनार।
चट्ट करबेर खोल दीं, मैल चाखाक द्वार।
य छै: बाजि लै घर पन मुंकूं, उजियाव नि दिखौ।
किलै आजि जां लै तुमूल, रत्तै ठाण उठंड़ नि सिखौ?

नानतिन कस छन, कस हरै तुमरि परिवारै कि गाड़ी।
किलै य के हगो तुमुंकूं, लागड़ों छा तुम द्वीऐ बुढ़ बाढ़ी।
नै नै बाबू हम घर पन, अब द्वी लोगै रै गईं।
नानतिन सब बिवै हाली, उ आपुंण घर न्है गईं।
हमार लै उमर हगे, द्वी द्वी राव्ट हम खानूं।
साल में एक आद बार, उनार पास लै न्है जानूं।

मैं भभरी गयूं यां तो, अब तुमर य शहर हगो ठुल।
रेल क्रासिंग बंद हैगईं , उनार मलि बंढ़ गईं पुल।
सड़क पार करण अब, भौत्ते हगो धो।
कदु जै हैगईं कार, मोटरसाइकल और टैम्पो।
लोग चलनै चलनै हाथ में ध, जानि के जै पढ़नईं।
कुछ आपुंण कान में हाथ धरि, मुड़मुड़ाट जस करणईं।

यां बाटाक बीचों बीच हिटणईं, गोरु बल्द और भैंस।
लागड़ों जस पागल जै हगईं, यां पन सब्बै मैंस।
कसि अब  बताओ तुमौर, हौल मंगल।
शहर तुमार बंणगईं, कंक्रीटाक जंगल।
तुम बतूंणों छा, य छू बिकाशैकि लहर।
मन में लै जहर, भैरकि हाव में लै जहर।

आबादी हगे भौत्तै, हर तरफ ठेलम ठेल।
खंबनाक मलीबै यां तो, चलै हालि मैट्रो रेल।
सब कूंणईं जिंदगी में, ऐगो भौत्तै फरक।
मुंकूं लागड़ों यां तो, जीवन जै हैगो नरक।
नकली दवै मिलणईं, मिलड़ों नकली साग।
बात करनैकि फुरसत न्है, हरै भागम भाग।

लोभ छल कपट बढ़ि गो, हरै मारा मार।
भाग हमार भल, छोड़ी य धरती टाइम पार।
स्वर्ग में हमार लिजी, भौत छू आनंद।
छल कपट ईर्षाक, द्वार छन वां बंद।
तुम कूंछा उन्नति हरै, मैं देखिणंयूं रिश्त गईं दरक। 
मलि लोक में य हबेर तो, सच्ची भल छू हो नरक।

उमेश त्रिपाठी (काका गुमनाम) द्वारा रचित एवं प्रसारित।

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