भिजणा लिजी.. जरुड़ी न्हें

कुमाऊँनी कविता-भिजणा लिजी.. जरुड़ी न्हें, poem about specialty of hill region, kumaoni poem about uniqueness of kumaon hills

भिजणा लिजी.. जरुड़ी न्हें

रचनाकार: भीम सिंह बिष्ट

भिजणा लिजी.. जरुड़ी न्हें
कि..माथबै द्यो है जाओ

हमर पहाड़ में..
अटांग-इकान्त है बेर
तुम ठड़ी जाओ क्वे गाड़ा किनार्
बिस्वास धरो..
बगन पाणि थामी जाल्
और तुम बगि जाला..
आपण सोच-बिचार में
दूर...दूर जालें और
तुम भिज जाला।

हमर पहाड़ में..
सुरु भै जाओ तुम
क्वे घटै काख 
रिङ्गन घटक कलाट सुणि
घटक बानक छिछाट सुणि
तुमलै छोई जाला
नानछिनाक याद में
तब तुम भिज जाला।

हमर पहाड़ में..
भै जाओ क्वे उच्चौ धार में
ठंडी पौंन चलेलि
थाकि-पटै सब बिसै जालि
छप-छ्पी पड़ेलि पराणि में
भलीकै पुर आंग नवै जालि 
और तुम भिज जाला।

हमर पहाड़ में
 रात पड़ी जब
तार् उज्येइ जांनी
और जून झलिक ऐं
भितेर.. चाख तक
जुनेकि जुन्यालि में
 तुमलै घोयी जाला  
चकोरमन निझूत है जाल
और तुम भिज जाला,
तुम भिजि जाला।।

भीम सिंह बिष्ट, चौखुटिया, अल्मोड़ा, 01-10-2021

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ