
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
भल जौ
हुनै ......
" नेता "
बँणनैं ?
............
पहाड़ जै बेरै
पत्त लागौं ....
कतु बीसी
सैकड़ हुँनीं।
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फसक मारण में
के लागों .......
फटया्व जस
लगाते रौ।
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घाम .....
मोव है न्है ग्यो ......
आ्ब
भोल'क इंतजार कर।
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देयि में
कुकुर बेठों ....
तु
भतेर बैठी कर।
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पुछौड़ हल्कै
पेट भरि जा्ल
मगर ......
भूख लाग्यै रौलि।
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पहाड़न में
सूर्ज .....
दिन-दोफरि ले
"अस्त" हे जांरौ बल!
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बखत पर
अकल नि ऐयी त
बोट
कभै "हरीं" नि हौ।
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पहाड़न में
मनखी
भभरीन न्हाँ .....
शहरन में
"बा्ट"
मिलनै न्हाँ।
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जानवर
पच्छयाँणड़ सितुल छ
ध्वा्ख .....
मनखी मैयी हुनेर भै।
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बा्ब बणिँ बेरै
पत्त लागों ....
कि , नान्तिन पावण
"बौं -हाथा खेल" नि भै।
.................
बाबू
ठीक कूँछी ....
आ्ब जै बेरि
समझ आ।
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हमा्र
"द्वि पत्त" छी
नान्तिनांक् ........
एक्कै रै ग्यो!
...................
नान्तिन
पुछनीं ...
"गरुँ"
काँ छ?
..............
धन्नी हौ
ते बिकास कैं .....
गौं ' कि त
शिरी ईईई उड़ि गे।
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शब्दार्थ:-
भभरीण - भटकना,
सितुल - आसान,
ध्वा्ख - धोखा,
द्वि पत्त - स्थाई और अस्थाई दो पते,
गरुँ - गाँव का नाम,
शिरी - शक्ल सूरत
April, 19, 21 2018

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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