
गौं वीरान यां
रचनाकार: राजू पाण्डेय
पिण्या पानी नल ना भै, शराबे दुकान यां
रोजगारे थें परेशान छ, पहाड़ो जवान यां
चहल पहल खूब जिन, गौं घरो में जोर छि
पाखा छिटकी मोल टूटी, बंजर मकान यां।
भाबर भासी जंगल, ढुङ्गा बजरी भंडार छ
चोरी चोरी चिरान हैरो, बजरी खदान यां
डबाडब भरिया गंगा गाड़, भाबर पूजि रै
बिन पानी का सुखि गया, हरि सैरान यां।
स्कूल अस्पताल बिना, कसौ विकास यो
मूलभूत सुविधा बिना, भया गौं वीरान यां
नयो राज्य भै सोचो, विकासे बहार आली
उम्मीद "राजू" धरि रैगे, बिकामा पधान यां।
शब्दार्थ :
पाखा - छत।
छिटकी - धंसना।
मोल - दरवाजे।
भासी - घने।
हरि सैरान - हरे खेत।
बिकामा - निकम्मे
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~राजू पाण्डेय, 29-10-2020

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