
पहाड़ैक पीड़
रचनाकार: भारती दिशा
छिल हैली छाती मेरी,
रुखैन के काटकर,
छलनी कियो भितैर बटी,
डायनामाइट फाट्ट कर।
लील हैली पगडंडी,
सड़कैन कै भैंट्ट कर।
सबै जंगली जानवरै लै,
गौं घरैक बाट्ट कर।
धारें, नौले सुखै दियां,
बांज्यां बोट छांट कर,
नदी हैले बांधै दियो,
बांधन को टैट्ट कर।
नी धरयो ध्यान मेरा,
सबन लै ठाट्ट कर।
खुशी है रैछा के सबै,
खड़ी म्यारी खाट कर?
अब जंगल लै आग छ,
बड़ी भौते, ताप छ।
पिघल बेर ग्लेसियर,
गिरै रैछै खाट्ट कर।
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