त्यरै करम फइ रयीं

त्यरै करम फइ रयीं -कुमाऊँनी कविता,poem about unplanned development in hills,kumaoni bhsha ki kavita

त्यरै करम फइ रयीं 

रचनाकार: हीरा बल्लभ पाठक
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क्यलै पगली रौछै रे मनखी
त्यरै करम् फई रई।
डाव-बोट काटि ह्यैली
कुड़ि खन्यारि है रै
गबिल खेतन् में 
ग्यों-धान हुंछी भला-भल
कंक्रीटक् थुपुड़ लगै ह्यैली,
तब जागर लगैबेर क्य हौल।

पै-पै सोंकार सोच धैं जरा
क्यलै पगली रौछै रे मनखी
त्यरै करम फई रैई
म्यर ताग-दोष के न्हैति
मैंत् आफ्फी असन्ती रयूं
त्यर भल काँबटि करूं
क्यलै पगली रौछे रे मनखी
त्यरै करम् फई रई।

गोरू-बल्द बेचि ह्यैली
यूरियाक् खाद हैरौ
गैस और कैंसरकि् बीमारी हैगे।
तब उनैछै म्यर पास
मेरि न्हैति घात-मघात्
मैंत् आफ्फी डोई रयुं
अपण थान भित्येर
जहीं फाटों बादव् लै 
म्यर ख्वराक् मांथ
क्यलै पगली रौछै रे मनखी
त्यरै करम् फई रई।
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हीरावल्लभ पाठक (निर्मल), 05-06-2021
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर,रामनगर
 
हीरा बल्लभ पाठक जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी पर पोस्ट

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