
शकुनाखर - कन्दानक् गीत
प्रस्तुति: तारा पाठक
बाबुल खोलो परद वर देखिये।
बाबुल खोलो परद वर देखिये।
बाबुल हम गोरी, वर सांवरो।
वर आयो है जेठ की धूप में,
वर आयो है माघ तुषार में।
बेटी एही गुन वर तेरो सांवरो।
बेटी अयोध्या में रामी चँद्र सांवरे,
बेटी मथुरा में श्रीकृष्ण सांवरे,
बेटी गया में गजाधर सांवरे।
बेटी मत करो मन को पछतावना।
बेटी दादी गोरी दादा सांवरे,
बेटी ताई गोरी ताऊ सांवरे।
मइया गोरी बाबुल सांवरे,
चाची गोरी चाचा सांवरे।
बेटी मत करो मन को पछतावना।
बेटी वर आयो जेठ की धूप में,
बेटी वर आयो माघ तुषार में।
भाभी गोरी भय्या सांवरे,
बहुवा गोरी बीरा सांवरे,
नानी गोरी नाना सांवरे,
मामी गोरी मामा सांवरे।
बेटी मत करो मन को पछतावना,
बेटी वर आयो जेठ की धूप में,
बेटी वर आयो माघ तुषार में।
बहिना गोरी जीजा सांवरे,
बुवा गोरी फूफा सांवरे,
मौसी गोरी मौसा सांवरे।
बेटी मत करो मन को पछतावना।
(पैंली जबान में नानों ब्या मै बाब ठैर्यूंछी, वर -ब्योली एक दुहर कैं देखी लै नि हुंछी।यै वील ब्या दिन कन्दान करण बखत पर्द हुंछी।अच्यालों कै पर्द आपण मनक् ठैर्याई ब्या हुनी।)

तारा पाठक जी द्वारा उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ पर पोस्ट से साभार
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