हमर गों - कुमाऊँनी कविता

हमर गों - कुमाऊँनी कविता,poetic description of atraditional kumaoni village,apne ganv par kumaoni mein kavita

हमर गों

रचनाकारघनश्याम पाठक

चारों तरफ पहाडोंलि घेरी रों, हमर गों,
खेत पात लै घाटी में, किनार पै गाड़, ले बगों।

घरों  कै पिछ्याडि बे जंगल भौत, घिरी रों,
हमेशा इनोंमे बारों महैंण हरियाली बढ़ी रों।

पैली यो सबै जाग में महर बसी हुई छी,
येकै लिजी यो जाग कैं महरगाडी ले कौंछी।

बाद में पाठक लोगों  आयी बे, माजखेत कई जाँ,
कतुक  भल गौं छ हमर, कतुक भल मानी याँ।

जन्म भूमिक याद हमर खूनक हर बूँद में बसी रों,
 गों भे भ्यार रौणैकि, मज़बूरी हमरि हमेशा बढीं रों।

बाँज बाखई दुखी देखिनीं, यो आश आज ले लगोंनी,
क्वे आबे आवाद करौल इनोंकैं, यो रोज धात लगोंनी।

तुमि भ्यार नि जावो, अपंणि जन्म भूभि कैं सवारों,
पहाडोंक ठंड पाँढी, ठंडी हवा, वातावरण सुधारो।

खेतन में फसल बगीचों में खूब शाग शब्जी उगावो,
बजारक आयी खराब शब्जी निखैबरे ताजी बनाओ।

शराब छोड़िबे, गोर भैंस पालों, दै-दूध, मख्खन, घी बनाओ,
डेयरी बँणाओ भ्यार नि जैबेर अपण घर द्वार सजावो।

जो भाई बन्द,भ्यार बशी छन, वों समय पर घर ले आवो,
हमर जड़ पहाड़ै में छ, घर आबेर भेट घाट करि जावो।

होई, दिवाई, घ्यूत्यार, हर्याव, पूस्यूणी बग्वाव इनोंकैं मनावो,
नौमिक, त्र्योदशी, कार्तिक  पुन्यों म्याल, देखी जानी।

दुतियाक च्यूड, कार्तिकक शिरौव जेठाक उम खै जया,
द्यों द्यापतों थान नैनाँग, जागर, पूजा पाठ सब लगै  जया।
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घनश्याम पाठक, 02-07-2021
घनश्याम पाठक जी की फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा पर पोस्ट से साभार
फोटो सोर्स: गूगल 

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