
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
लगढोल, दम्मू, नङा्र
और मसकबीन ल्ही बेरि
जो चार मैंस ऐ रयीं
ऊँ आपण दिगा
पहाड़ ले लै रयीं......
हुड़ुक'कि दुँङ-दुँङ
मसकबीन'कि पींई ईईई में
ढोल - दम्मू लागों त
पधानी लाली
तीलै धारु बोला ....
ओ लाली ... ईईई
लखनौ वा्ल
अतैरि जानीं....
और गोमती किनार
गरुड़-सैमेश्वर बटी ल्हीबेरि
धारचुल - मुनस्यारि जाँणैं सब
आफि है थापी जा्ँछ....
मौक देखि बेरि
हमा्र पुरन'दा
का्न.में हाथ लगै
"जोड़" लगूँनी त..
एक दुहार'क हाथ थामि
स्यैंणि, बैग
नान्तिन, बुड़-खुड़
सबासब कौतिक'क रंग में
रंङी जानीं, मगर
सोचणै बात....
कि, बरसन बटी
कौतिक में ऊँनेर
इन कलाकारनै'कि
असल जिन्दगी में
" कौतिक "
कभै देखाँ नि हुन।
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ह्यूँन में
ह्यूँ न पड़ त
के फैद ....
चौमासन
गाड़ न आयी त
के फैद .....
चैता म्हैंण
काफल नि पा्क त
के फेद .....
भुख पेटन ले
कफ्फू न बा्स त
के फैद .....
भागी !
यसी कै
मैलि ......
फाम करी
ते
बाटुयि नि लागी त
के फैद।
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Dec 26, 2017, Jan 05, 2018

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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