चौमास - कुमाऊँनी कविता

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चौमास

रचनाकार: पुष्पा

जब पहाड़ क चौमास कें सोच्नु और लिखनु
म्यर आखों में चौमासे कि अलगे जे फोटू ऐंजे
चौमासा क गाड़ गध्यार बादवों घिडाट बिणाट
हरि भरी पहाड़,जंगल, हरि-भरी पूरी सार हैजे....

तिमल क डावो में मोअ भरी तमिल पाक गईं 
घिघारू झाड़'म घिघारू पाकी बेर लाल हेंगी
बाड़ में हरि पापड़, खांगर में हरि काकड़ हेंगईँ
हरि लगुल में लोकी-गदुवे-तुमडणों कि बहार हैगईं  ...

सच्ची कूँ पहाड़'क पलायन दुख दिणो भारि
यकले रुनि यां क मैय-बाप और बुढ़-बाड़ी 
कहे कुनि दुख सुख,आदु पहाड़ हेगो खाली
चौमासा जस गध्यार म्यर आँखन में आणि....

भ्यारा मैस पहाड़ देखिहूं पहाड़ आगाईं
पहाड़ा क मैस भ्यारा जाबेर शहरे के हेंगई
पहाड़'क नानतिन डबल कमुँहू भ्यार नेहेगई
पहाड़े क घर कुड़ी खाली पड़ी उदास हेंगईं .....

आहारे चौमासा सबुक लिजि'क बाहर ल्या छे
म्यार पहाड़ा लीजिक मन मे उदेख ल्या छे
बाट-घाट-ग्वेट में निमखण कच्यार ल्या छे
गौर-बाछ क में खुरि म्यर खुट'म कद्य्या ल्या छे...

सुण पहाड़'क चौमासा अब तू जब ले आये
भ्यार गईं नानतिन'के आपण दगड़े ल्याये
सुख दुख बाटी बेर आदु के रवट दगड़े ख़्वाये 
पहाड़े बचाये हराणि संस्कृति कें ले बचाये.....

पुष्पा, 29*07-2021

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