
शकुनाखर - कन्दान में अंगुठ पकड़नों गीत
प्रस्तुति: तारा पाठक
छोडो़ छोडो़ दूलहा हमरी अंगुठिया,
हमरो अंगूठा अनमोल ए।
अब कैसे छोडू़ गोरी तुमरी अंगुठिया,
तुमरे दादा जी को बोल ए,
तुमरे ताऊ जी को बोल ए।
अब कैसे छोडू़ गोरी तुमरी अंगुठिया,
तुमरे बाबा जी को बोल ए,
तुमरे चाचा जी को बोल ए।
छोडो़ छोडो़ दूलहा हमरी अंगुठिया,
हमरो अंगूठा अनमोल ए।
अब कैसे छोडू़ गोरी तुमरी अंगुठिया,
तुमरे भय्या जी को बोल ए,
तुमरे बीरा जी को बोल ए।
तुमरे नाना जी को बोल ए,
तुमरे मामा जी को बोल ए।
छोडो़ छोडो़ दूलहा हमरी अंगुठिया,
हमरो अंगूठा अनमोल ए।
अब कैसे छोडू़ गोरी तुमरी अंगुठिया,
तुमरे जीजाजी को बोल ए,
तुमरे फूफाजी को बोल ए,
तुमरे मौसा जी को बोल ए।
(जब वर ब्योली अंगुठ पकणं उभत यो वर ब्योली बीच संवाद रूप में गाई जां।)

तारा पाठक जी द्वारा उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ पर पोस्ट से साभार
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