चकान् चौमास - कुमाऊँनी दोहा और चौपाई

चकान् चौमास - कुमाऊँनी दोहा और चौपाई, Doha and chaupai chhand in kumaoni language, kumaoni Dohe, kumaoni chaupai

"चकान् चौमास"

रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
दोहा-🌹 सतझड़ जै नि लागा जब, के देखियुँ चौमास। न दिन सूरज क् मुख देखिं ,न जून देखिं अगास।। चौपाई -🌹 हौल भेटछ उ स्यो का बगीच। भादोव म्हैंणा फवों घिचमिच।। छिट् मारनैं उँ बन्धारी तहड़। भरिया तुमड़ा भरियै रौंनीं घड़।। ग्वैंट में पाणीं कि धार बगैं। रौली गध्यारा कि छीत लगैं।। भिकान् तिड़नीं उँ पिनगटी त्यूड़। तितुर गज्यौंनि गाज्यो का भूड़।। भिजनैं भिजनैं काना ठिकुरा। फटाँन नैं बादोव यौं निगुरा।। घामैकि झूँ इनरैंणीं बणैं। वी सात रंगों कैं रोजै गिणैं।। जब अखरि जाछ उ अगास। कलिबलि हैं उ दुणकाटी घास।। फूल अनेक रंगिल क्यारी में।किर्साण बौड़ी झुकि उँ स्यारी में।। गाजी में रस दुपाई रसिल। छकल पाँणि कि सबै गिलैगिल।। कात् लागि बाट् उँ रणणीं जास्।अहा कदु भल चकान् चौमास।। 🌹🌹🌹🌹🌹

................................................................
मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 08-05-2016

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ