जिम कार्बेट पार्काक् शेर......

कुमाऊँनी भाषा में शेर-शायरी, ज्ञान पंत जी द्वारा  Kumauni Sher-Shayari by Gyan Pant, Kumaoni Shayari

जिम कार्बेट पार्काक् शेर......

रचनाकार: ज्ञान पंत

घर 
बँण 
जंगल ...
जां ले देखछा 
"ढोर-ङंगर" देखींनी ...
मनखी, पत्त नै 
कांहीं हराणों कूँछा। 
...............
जगैरि 
भगैरि 
और ङगैरी 
के चैन है रयीं ...
अच्छयान मनखी 
आफि है 
"अतर" जनेर भै। 
.................
चौमास ' कि बात 
दुहैरि है जैं ....
नन्तरी 
गाड़ 
गध्यार 
रौड़ 
और गूल ....
सब एकनसै छन। 
...............
जंगव ' न ले 
नरुँण कर देला त 
बाघ- भाल् सब 
कां जाल कै हरौछा।
..............
दिन 
द्योफरि ले 
बाघ-भाल ऊँण बै ग्या त 
समझ ल्हियौ ....
कि  गौंन 'क 
के पुरसाहाल नि भै। 
...............
जस 
जस 
विकास हुँण लागि रौ 
तस - तस 
पहाड़ 
खालि हुँण लागि रौ।
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तुम आऔ त सई 
उज्याव 
आफि है जनेर छ 
बा्ट पन ....

जो पिरूल फोगी रौ 
वी तव मुणिं 
सिद - सपाट 
भलो बाट छ बल 
जै द्वियै तरफ 
मनखी चार ठड़ी रयी 
शालु'क बोट 
कै कैं ले 
भभरींण नि-दिन .....

फिर ले 
ठिन्की ढुँङ 
आजि ज्यूँनै भये ....

उल्लै बटी 
तलि पन चाला त 
पाखन में बैठी 
गद्दू-तुमाड़ 
खबर करि द्याल ...

कि , योयी बखाई छ 
जां अन्यार हुन-हुनै 
एक द्वि 
रोज जगण बै जां ....

लोग - बाग बतूँनीं 
कि , आ्म 
आजि ले ज्यूँन छ बल। 
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Nov 20, 22 2017
...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार

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