
-:हमार साग-पात:-
रचनाकार: अरुण प्रभा पंत
बिन सागै बिन टपकी कभै नि रैयां
के नि लै भयौ तबलै बणनेरै भै
केहैजौ चारपात हरि द्विआल एक मुल
बण गोय साग,स्वादौक भकार
के नि भयौ तौ एकआल थेच या
थेच द्वि मुल मुणी बांट हाल बणाय
हमुल खाय दणकाय र्वाट पेट भर
केनि भयौ चौमासैक झड़ि में तो
कठपयो बणाय और पेट भर खाय
कभै बिन सागै बिन टपकी नि रैंया
खाणा बाद टपटपाट लागौ तो भयै
गुड़,मिशिर चिन,आंखोड़
इजाक खजान में, भनार में के कमी नि भै
ह्यून हौ या रूढ या भीषण चौमास
सबै दिनन हमार इज थैं सबै भौय
सबनैक इज आम् भइन होअन्नपूर्णा
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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