
चुफू और कुर्सी
रचनाकार: नवीन जोशी नवेंदु
चुफू ना्न एक बै ठुल एक में एक्कै साल में पुजि गोछी। पर ठुल एक बै द्वि में जाँण में उकैं द्वि साल ला्गि ग्या्य। वीकि यो तरक्की अघिल हुं लै इसी कै उरातार जारी रै। उकैं द्वि बै तीन में जाँण में तीन, तीन बै चार में जाँण में चार और चार बै पांच में जाँण में पांच साल ला्गीं, और उमर है ग्येइ इक्कीस। मल्लब, चुफू पांच पास हुंण जांलै है गो्य छ्वर-म्वर अयां्ण बै कानूनी तौर पारि लै पुर सयां्ण मैंस। घर पन आ्ब कां मन ला्गछी। बिड़ि सिलैक गुजारा्क लिजी तलि मावन हुं भा्जि गो्य, और एक सेठा्क वां नौकर है गो्य। काम द्वि परकारा्क हुनीं। एक-एक नंबर, द्वि-द्वि नंबर। सेठ द्वि नंबरी काम वा्ल भय। ‘यांक वां-वांक यां’ वा्ल काम भय वीक, पर उ करणा्क नौ पारि सिंणुका्क टोणि बेर द्वि नि करनेर भय। बस एक कुर्सि में भै रुनेर भय। और त के नैं, चुफू कें सेठैकि कुर्सि भलि ला्गि ग्येइ। मन में परण करि ल्यय-‘मिं लै भैटुंल तस्सी…तै है लै भलि कुर्सि में ए दिन।’
उसी चुफूवा्क कुर्सि पिरेमा्क क्वीड़ यै है लै पुरांण भा्य। उ कूनीं नैं-हुंणी च्याला्क गणंवै न्यार हुनीं। चुफूवा्क गणूं लै ना्न छनै बै न्यारै भा्य। उ ना्न छनै बै, तब बै, जब उ भली भैं बुलै लै न सकछी, ‘कुत्ती में बैथुंल’ कूनेर भय। य अलग बात छु कि वीक इज-बा्ब सो्चनेर भा्य, उ कुकूर में बैठुंल कूणौ। जब पैल फ्या्र वील इस्कूल में मास्यैप में कुर्सि में भैटी द्यख, वीक कुर्सि पिरेम और बढ़ि गो्य। तबै, जब उ माव बै घर हुं आ, कुर्सि कें सुरन में भै। कुर्सीक डिजैन वीक डिमाग में तैय्यार भै। कसी बैठुंल, कस ला्गुंल, कि करुंल, वील सब सो्ची भय। पर एक परेशानी भै कि कुर्सि बणूंण हुं वीक पास लाकड़ै न भा्य। बांक़ि त ऽ सब है जा्ल, पर कुर्सीक चार खुट ? उनूं तें कां बै आल लाका्ड़ ? आल्छ्यो-पा्ल्छ्यो, अड़ोसि-पड़ोसिन थैं कई जाओ-कि पत्त है जांछै जुगाड़। भगवानैकि किर्प-तीन खुट त बिना शर्त मिलि जांणा्य पर चौथ खुटा्क तें लाका्ड़ दिंण हुं बचुलि दि कूंण लागी-‘ला्कड़ त मैं दि द्यूंल, पर म्येरि ए शर्त छू। पैली मिं भैटुंल कुर्सि में।’ बचुलि दि और पगा्लोंकि चारि नि भै। आपंण तीन फेल चोर धुलौक परसाद वीक लै थोव लागी भै कुर्सिक सवाद। स्वींणौंकि जसि फाम भै उकें, जब एक रात वीक धुलौ कें बै एक कुर्सि चोरि ल्याछी। तब द्विय्यै स्यैंणि-बैग रात भरि वी में भै राछी। कस नस जस है गोछी द्वीनों कें। ओ हो रे ! कतू मा्ज आ रात भरि। पर नांश हो पुलिस वावनोंक, जो रात्ति ब्यांण धमकि आ्य मोव थें। कुर्सिक दगा्ड़ धुलौ कें लै ल्हिजानै रा्य, और धुलौकि जो मारि-मारि बेर छा्ल घाम लगै, उ अलग।
खैर, चुफू कें मुफत में तीन खुट दिणीं लोगन है लै सिदि बचुलि दि ई ला्गी, जो खालि पैली एक फ्यार कुर्सि में भैटंण हुं कूंणै। कि हुं कैकै भैटणैल। पैली बैठो, चाहे पछां। कुर्सि क्वे अन जै कि छु, जो जुठी जा्लि। चुफू भली भें जांणछी, जो ऐल बिना शर्तेकि बात करणईं, भो वीं पैली आं्ख दिखाल। ‘तसी सिद्योइल न चलल रे चुफुआ ! जरा टेढ़ि कर आपंणि दीठि‘ वीक मन भितेर बै अवाज ऐ। चम्म उठि बेर ठा्ड़ भै गो्य चुफू। हुत्तै आङ बरकंण जस ला्गि गोय वीक। कि करूं-कि नि करूं, सोच पड़ि ग्या्य उकैं। लका्ड़ इकबटी ग्या्य, आ्ब चैनेर भय ए भल सिपा्व मिस्तिरि, जो बणै दिओ कुर्सि। यो बीचै दिनैकि बात भै, ए मिस्तिरि सुद्याई गो्य। धो-धो कै ‘बीपै’ हुं खुरि-तुरि शुरू है ग्येइ मिस्तिरिकि। ‘यो ला्कड़ ट्यड़, यो ला्कड़ बाङ…. ’ आपूं में नौं नि धरियौ्ल कै मिस्तिरि ला्कड़न में खोट निकालनेर भय। खैर होते-करते ‘छनजर’ हुं है ग्येइ कुर्सी तैय्यार, पर ए खुट औरन है ना्न है गो्य। कुर्सि ढपकींणी है ग्येइ। कसीकै कुर्सि मणीं हलकली, घंटेका्क तें हलकते रौलि। आ्ब बारि ऐ भैटणैकि-बचुलि दी अघी ग्येइ। फटक मारि बेरि चड़ि ग्येइ कुर्सि में। कुर्सि ढपकि बेर हलकंण ला्गि ग्येइ। मिस्तिरि पिङव-पट्ट हई भय डरैल नड़क्याल कै। वां जै बचुलि दि कें झुलक मा्ज ऊंणय कुर्सि में भै बेर। चुफू सो्चणंय आ्ब जै उतरैलि बचुलि दि, आ्ब जै उतरैलि। पर बचुलि दि न उतरि। चुफू लै, और झंणि ले खाप तांणि बेर चा्इयै रै ग्या्य। रफ्ते-रफ्ते चा्ई-चा्इयै उना्र आं्ख ला्गि ग्या्य, मुनइ उलइ ग्येइ, घुनि-मुनि ज्येड़ी ग्येइ। उथां, बचुलिक आङ तांणी गो्य। उकैं आफी लै यस अंताज नि भय इतू मा्ज आल कै। वील य स्वींण में लै न सोची भय।
चुफूवैकि नींन सबूं है पैली टुटी। चांछियौ-बचुलि दि क्या्प-क्या्प जस बलांणैइ-‘हमि यस करुंल….हमि उस करुंल….हमिंल द्यखौ…हमि द्यखुंल….विकास हुंणौ….गरीबी जांणै….।’ और लै उठीं वीक बक्तर्याट सुंणि बेर, ‘बचुलि दि… बचुलि दी……ऽऽ’ बचुलि दि पा्रि के फरकै नैं। ‘बौई गे सैद बचुलि। कुर्सि कें खजबजूंण पड़ल, तब आलि होश में….’ एक कूंणय। वील कुर्सि जरा खजबजाछी, औरी माया है ग्येइ। ‘सबू कें झेल खिति द्यूंल, अलांण रनकर यस, फलांण रनकर उस…..।’ चुफू कें झसझसाट है गो्य, ‘कैं मरी न जा्नि बचुलि दि…..?’ वील जोर लगै बेर कुर्सि कें पकड़ि ल्यय, और उकें थिरथाम करणैकि कोशिश करंण ला्गौ। पर कुर्सि बौई ग्येछी सैद। वील चुफू कें ई पलि पत्येड़ि द्यय। पर चुफू भय जल्दी हार न मानणी। वील ए फ्या्र आ्जि कोशिश करण लगै। औरन थें लै जोर लगाओ कय। चारों तरफ बै दिवारन लै खुटन कें अत्या्ड़ लगै, अङवाल खिति ‘इक्कै जोरौ ऽ हइस्सा….ऽ’ कौ छियौ, कुर्सि रुकि ग्येइ। कुर्सि कि रुकी, जां्णि सारि दुंणी रुकि ग्येइ। कैकें आ्पंण होश नैं। सब अस्यंण-पश्यंण है बेर ए-दुसरौ्क मूंख चांणा्य। बचुलि नसि आ्इ कुर्सि बै। खैर, फिर सब तिर जस छी-उस्सै।
यं त भा्य भ्यारा्क हाल। भ्यार बै सब्बै चुप भा्य, पर ह्यि में सबूंकै कुर्सी भैटी भैइ। ‘हमि लै भैटुंल कुर्सि में…’ सबूं कै ह्यि में कुलबुलाट हूंणय। पर चुफूवैल साफ-साफ कै दि-‘कुर्सि म्येरि छु, मैंल बणै रा्खौ इकें। मिं भैटुंल कुर्सि में। शर्ता्क अनुसार बचुलि दि कें भैटै हा्लौ पैली, आ्ब मिं भैटूंल….और क्वे नैं।’ सबना्क ह्यिउंन का्ना्क जा्ग हवा्क फा्व जा्स घो्पी ग्या्य। बचुलि मांतर चुपै रइ। पर औरनैल जुबाब पा्त में जस धरि द्यय-‘सुंण रे चुफुआ! हमा्र लकाड़ लै ला्गि रईं कुर्सि में, और उं लै कुर्सिक खुटन में। तु न समजणयै हमैरि तागत। ए फ्या्र कुर्सि में भैटंण जै न दिंणयै। ला् हमा्र लका्ड़….धरि दे गिंणि बेर तीन।’ और उं जबरजस्ती आपंण-आपंण बांट ल्हिजानै रा्य। कुर्सि एक्कै खुट में रै ग्येइ। ठा्ड़ि कसी हुंछी-भतकि ग्येइ। बचुलिल चुफू कें मस्त नड़क्या्य। पर आ्ब के हे सकछी-कओ धैं। पर चुफू लै चुफू भय, घुरू न भय। फिरि लगा्य डिमांग। मिस्तिरि उत्ती भय। उकें चुफुवै्ल क्या्प-क्या्प जस समझा्य। खुरि-तुरि करी ग्येइ और कुर्सि इक्कै खुट में ठड़ी लै ग्येइ।
असल में घुरू ए फ्या्र भाबर बटी एक बैरिंग चोरि बेर ल्हि आछी। वी बैरिंग वील मिस्तिरि कें दिखा्य। मिस्तिरिल बैरिंग कुर्सिक एक खुट में ज्येड़ि द्यय। कुर्सि एक्कै खुट में न केवल ठा्णि है ग्येइ, और लै बढ़ी भें रिङणी लै है ग्येइ। चुफू खुशि है गो्य। औरना्क ह्यिओंन का्व भट जा्स भुटी ग्या्य। चुफू आ्ब हर बखत कुर्सि में ई भैटी रुनेर भय। गौं वा्ल भिं में भैटनेर भा्य। भिं में भैटि बेर उनूंकें चुफू भौत ठुल जस चिताइनेर भय। भितर बै भलै उं चुफू कें गा्इ हुतनेर भा्य, वीकि फुतफुता्इ करनेर भा्य, पर कुर्सि में भैटी चुफूवा्क सामंणि उनैरि ‘चूं’ न निकइनेर भै। उल्ट उं वीकि जै-जैकार करनेर भा्य। कुर्सि में भै बेर चुफुवा्क बचन लै बदइ ग्याई भा्य, और गौं वा्ल वीक बचनों कें कल्जुगी बिक्रमादित्या्क भैं बड़ि धियानै्ल सुंणनेर लै भा्य।
ढील-ढीलै, उनूं कें पत्तै न चल, कब चुफू उनर नेता है गो्य। देश में पैली पांच-पांच साल में हुंणी भोट साल-साल में लै है जांणा्य। चुफू लै भोटन में ठा्ण है गो्य, और जिति लै गो्य। आखिर कसी न जितछी। उकें कुर्सि में भैटणक औरन है बांकि अनुभव जै भय। आ्ब चुफू खा्लि चुफू न रै गो्य, नेताज्यू है गो्य। यो कुर्सि आ्ब पुरांणी ग्येइ। दिल्लीकि कुर्सि मिलि ग्येइ। बंग्यल लै मिलि गो्य, औरै चैंन है ग्या्य। चुफू कें ‘उद्घाटन मंत्रालय’ में मंत्री बंणाई गो्य। दनादन उद्घाटन हुंण ला्ग। कदिनै शराबैकि भट्टीक, कदिनै नांच-गीत हुंणी नांच घरना्क। मंत्रीज्यू कें लाल फीताशाही बिल्कुल पसंद नि भै। यो वास्ते उद्घाटन मंत्रालयैकि सब फाइलों में लालैकि जा्ग हरी फित बदई जांणा्य। दुसराैंक बंणाई पुल, इस्कूल, रोड, अस्पतालोंक उद्घाटन करंण में मंत्रीज्यू आपंणि इज्जत समझनेर भा्य। दुसरों कें निच द्यखूंण में उनूंकें अलगै मा्ज ऊनेर भय।
गौंक चौराहन में ठड़ी बोट का्टि बेर नंगि नांणी स्यैणियोंकि और बजारोंक चौराहन में नेताज्यूक बाबुकि मूर्ति लगाई जांणा्य। पर एक खास बात भै-मंत्रिज्यू हर बखत कुर्सि में ई भैटी रुनेर भा्य। ए दिन एक पत्रकारैल उनूं थें यैक कारण पुछि दी। मंत्रिज्यू उल्ट कें पत्रकारै थें जै सवाल पुछंण ला्ग। ‘दाज्यू, आज जब सारि लड़ै ई कुर्सीक लिजी छू, तब मिं किलै मंणी देरा्क तें लै कुर्सि कें छोड़ूं ?’ य कै बेर उनूंल आपांण द्वियै हात मलि उठै भीड़ा्क उज्यांणि ताई बजूंण्क शान करि दि। भीड़ जोर-जोरैल ताइ बजूंण लागी। पत्रकार फिरि क्वे दुसर सवाल न पुछि सक। उथां, उनर हर बखत भैटी रूंणै्ल कुर्सि भौतै परेशान भइ। मंत्रिज्यू उकें सांस ल्हिणैकि लै सुबुत न दिनेर भा्य। कभतै उं उठना, उ सांस पलटूनि। वीक हात धरणीं, भैटणीं, लधार लागणीं सब गद्द, अंजर-पंजर पिचकि ग्या्य।
पर मंत्रिज्यू वीकि फिकर न करनेर भा्य। होते-करते भौत दिन है ग्या्य। कुर्सीक अस्यंण-पस्यंण ऐ गो्य। अथांणि है ग्येइ। और ए दिन उ छन मंत्रिज्यूकै भिं में घुरी ग्येइ। मंत्रिज्यू पीड़ैल कलत्याई ग्या्य। आपंण ढ्यांङ पकड़ि बेर उठणैकि कोशिश करी, पर उठि न सक। हर बखत कुर्सि में भैटी रूंणै्ल उना्र खुट पैलियै लुली राछी। आ्ब पटक अलग ला्गि गेछी। कसिक उठि सकछी, न उठि सा्क। कैलै अस्पताल फूंन करि दे। अस्पताल वा्ल ‘स्ट्रेचर’ ल्हि बेर आ्ईं और चार का्नों में खिति ल्हि जानै रईं। मंत्रिज्यू बिहोश हई भा्य। आखिर भौत देर बाद जब मंत्रिज्यू होश में आईं, त सब तिर बदइ गोछी। उनर कई सही साबित भौ। उना्र कुर्सि में बै उतरनै उनूंकें ता्की क्वे दुसर नेता उनैरि जा्ग कुर्सि में भैटि गो्य। के कमी जै कि भै नेताओंकि। इथां, उना्र बखत में हई पांच हजार करोड़ रुपैंक ‘कुर्सि घोटा्ल’ लै खुलि पड़ौ। हर तरफ उना्र नौंकि और उना्रै घोटालै्कि चर्च है रैछी। और नेताओंक चारि उना्र लिजी लै यो शरमैकि नै इज्जतैकि बातै हुनि। उं लै चांछी कि यो चर्च कें उं ‘घ्यामड़ घुरू जसि’ जनताक सामंणि ठा्ड़ है बेर आपंण नौं और अघिल बढ़ै सकनी। पर उं यस न करि सा्क। किस्मतै्ल उनूंकें यैक लैकै न छ्वड़। उना्र खुटों में फालिज पड़ि गोछी। खुट लुली ग्याछी। आ्ब उं आपंण खुटों में ठा्ड़ हुंण चांछी। कुर्सि बै मोहभंग है गोछी। पर किस्मता्क ल्येखी ह्ना्र को मिटै सकूं। डॉक्टरनैल उनूंकें ‘ह्वीलचेयर रिकमंड’ करि दे।
आ्ब नेताज्यू ए बारि फिरि कुर्सिक एक नई औतार-घ्वीर वा्इ ह्वील चेयर में पुजि ग्या्य। वी किस्मत बणि ग्येइ उनैरि। उथां, सीबीआइ वा्लनैल कच्छेरि बै ‘वारंट’ निकाइ हा्ल उनर नौंक। हर तरफ बै फंसि ग्या्य बिचा्र। जब के समज न आई, ए दिन उं दिल्ली बै घर हुं भा्जि आ्य। पत्त नैं पै उनैरि कुनइ में ई यो ल्येखी छी कि करमा्क दानै पिंड़ाणाछी। या कि कुर्सि ई आपूं पारि हई अत्याचारोंक बदव ल्हिणैछी, उनैरि के समज में न ऊंणौछी। खुट पैलियै लुली ग्याछी, आ्ब टैम-बिटैम दिन में कुर्सि में बै कतुकप फ्या्र घुरी जनेर भा्य। पत्तै न चलनेर भै, कसी घुरींणी कबेर। मनै-मन मांफि मांङनेर भा्य। कान पकड़नेर भा्य। पर सैद आजि कुर्सिक डंड पुरी न रौछी। सैद वीक कल्जौ्क दहा आजि न निमी रौछी। ए दिन मंत्रिज्यू ब्याव हुं कुर्सि में भैबेर घुमंण हुं घर बै निकईं। पत्त नैं कसिक, कुर्सि उनूंकें ल्हिबेर भ्योव हुं तेज घुरीते न्है ग्येइ। पत्तै न चल नेताज्यूं कां पुजीं। उनर के चिनांड़ न मिल।
कुर्सि जरूड़ मिली दस-पनर दिन बाद। गाड़ में बगि बेर दस-पनर मैल टाड़ पुजि ग्येछी। पर जस हुंण चैंछी-उस क्ये न भय। कैलै उ कुर्सि कें फिरि न बगा्य। वीक खपिर-खपिर, पुर्ज-पुर्ज रक्तबीजा्क चारि नईं-नईं कुर्सि बंणि ग्येईं। और पगाल मैंस, सब पड़ि रई वीक पिछाड़ि चुफूवैकि ई भें उकें हत्यूंण हुं। सब नेता ई बडंण चांणईं। भग्वान करौ तनूं कें छींक अकल ऐ जओ। और नौंमेट है जौ त कुर्सीक कु‘नौंक।
उत्तराखंडी पत्रिका "कुमगढ़" में प्रकाशित
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राष्ट्रीय सहारा कार्यालय, पॉपुलर कंपाउंड, मल्लीताल, नैनीताल।
पिनः 263002। उत्तराखंड।
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