ईजा क खेत - कुमाऊँनी कविता

ईजा'क खेत - कुमाऊँनी कविता, poem in kumaoni language, Kumaoni bhasha ki kavita, kumaoni kavita

ईजा'क खेत

रचनाकार: पुष्पा

ईज क रत्ती ब्याव दिन दोपहरी दगड़ी भ'य खेत
हियूंन हो, रियूड हो चौमास हो ईज भैं'य खेत'म
ईजा कम जे हमरी भै'य सकर खेतों की भैं'य
जब ले जरूरत पड़ी ईज'कि, धात लगुण भैं'य
ईजा ओ ई, तब जाबेर ईज होई कुनर भैं'य।

कभ्भें गुड़ाई निराई कटाई, कभ्भें खेतों'म मौवऊ डाली'ईं
काभ्भें खेतियो'क गीत सुणे,काभ्भें खेतो'क कान काटीं'ईं
खेत'म जाबेर खेतों की हैं'जे, घर कुड़ी सब भूलि'ईं जांयें
मिल सोची कि ईजा तू हमरी ईज छे तू तो खेतों'ले छे
तू खेतों'क ले अपड नानतिना चारी पाव छे सेतिं'ई छे
उनर दगडे बात करी छे येक लीजि तू स'बुं की ईज छे।

ईजा'क हम नानतिन विकास लीजि दूर शहरों'म ने'ह गई
ईज बुढ प्राण'न आज ले कटि'रूं नानतिनों लीजि
वण'क ढुङ्ग पलि पलि सरक गो'य,खेत ईजा'क मुख चाणी
बंजर पड़ी खेती देखी ईज'क आंखों में पाणी भरी ल्याणि
के करूं ईजा मिले इकले रे'गयउँ और बुढ है'गयूं
है देवो मेर पितरुं जमीन अब तुमार हाथों में सौप'नूं।

के करूँ पहाड़ पहाड़े रे'गय हम शहर में फस ग'य
शहर'क विकास यतूं हो'य कि द्वी रोट मिल ग'य
वां ईज चेय'रे हुं'लेली, मेर खेत आसी लाग रयूँनाल
अब पहाड़'ल बाटुई लगाई, द्वी रोट यां'ले मि'जाल
नानछिना की याद'म खेत व इज'क संवाद, हमुकेँ याद छू
हम समझ बेर ले अंजान छि,अब वापस पहाड़ जाण छू
कभ्भें कभ्भें हिटन हिटने खेतों दगड़ी बात करी लि'छि
कभ्भें कभ्भें खेतों कि बात'क मणि मणि समझ लिछि
ईज बुलुणे खेत बुलूँणी काम काज सब अपड छू
शहर कभ्भें अपड नी'हय पहाडे आपण छू।।

बस ईज और ईज का खेते अपण छू।।

शब्दार्थ
ईजा-माँ, रत्ती-प्रातःकाल,
व्याव-शाम, दगड़ी-साथी, 
ह्युंन-सर्दी का मौसम,
रियूड- गर्मी का मौसम,
सकर-ज्यादा, 
धात लगुण- आवाज लगाना,
धन्यवाद

पुष्पा, 25-06-2020

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ